जिंदगी बड़ी होनी चाहिए… लंबी नहीं
मां, देखना… एक दिन मैं ऐसा काम करूंगा कि दुनिया याद करेगी…
ये लाइनें मेजर मुस्तफा बोहरा अपनी मां से हमेशा कहा करते थे। आखिरकार उन्होंने इसे सच भी कर दिखाया। देश सेवा करते-करते अक्टूबर 2022 में उन्होंने अपनी कुर्बानी दे दी। 5 जुलाई को मरणोपरांत मुस्तफा को शौर्य चक्र दिया जाएगा। यह सम्मान मुस्तफा की मां फातेमा, पिता जकीउद्दीन और बहन डॉ. अलीफिया मुर्तजा अली रिसीव करेंगी।
हमारे मीडिया कर्मी ने मुस्तफा के घर पहुंचा और उनके परिवार से बात की। आज गर्व के साथ ही पूरे परिवार की आंखें नम भी हैं। पढ़िए पूरी रिपोर्ट..
घर में बधाइयां देने वालों का तांता लगा है। मां रह-रह कर सभी से चाय पूछतीं हैं तो कभी अपने हाथों से बनाए खाना खाने का आग्रह करती नहीं थक रही हैं। इतनी चहल-पहल के बीच मन कहीं खोया हुआ है। अंदर ही अंदर उस बेटे का चेहरा सामने घूम जा रहा है, जो अब इस दुनिया में नहीं है। उस बेटे का नाम है मुस्तफा। जी हां… मेजर मुस्तफा बोहरा। मां बार-बार मुस्तफा के उस कमरे की ओर जाती हैं और लौट आती हैं। उन्हें लगता है कि बेटा वहीं है। अभी बोल पड़ेगा कि मां इतनी भीड़ क्यों है? खाने में क्या बना है? शायद उस बहन को ही पुकार ले जिसे वह कंधे पर बैठा कर स्कूल ले जाया करता था।
नए घर में शिफ्ट होने से पहले ही शहीद होने की खबर आई
हमारे मीडिया कर्मी के उस कमरे का जिक्र करते ही मां फातेमा की आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं। वह कहती हैं- मुस्तफा को नेचर से प्यार था। जब उसकी सेना में नौकरी लगी तो उसने उदयपुर के बेदला में 30 लाख रुपए का लोन लेकर जमीन खरीदी थी। उसका बड़ा मन था कि पहाड़ों के आसपास एक आशियाना बने, जहां मैं और उसके पिता रहें।
मुस्तफा ने जो घर की पहली मंजिल पर अपना रूम बनवाया। पूरे कमरे को इस तरह डिजाइन किया कि उसमें उसके जीवन की पूरी कहानी आ जाए। उन्होंने एक तरफ एक वॉल ऐसी बनाई, जिसमें वे अपने बचपन से आर्मी तक का सफर बयां कर सकें। ये कमरा उनके लिए खास था। कमरा तैयार तो हुआ लेकिन मुस्तफा उसमें एक दिन भी रह नहीं पाए। नए घर में शिफ्ट होने से पहले ही उनके शहीद होने की खबर आ गई।
वो दीवार खाली ही रह गई
मां फ़ातेमा कहती हैं- मुस्तफा की मेडल वाली दीवार खाली रह गई। आज भी खाली है। बेटे की इच्छा पूरी करने के लिए जी तो बहुत करता है कि उसके मन के मुताबिक इस दीवार को सजा दूं। लेकिन, भारी कदमों से फिर लौट आती हूं। हिम्मत ही नहीं होती बेटे के बिना वो दीवार सजाने की… बस सफाई भर कर देती हूं। यही इंतजार करती हूं कि वो लौटे तो उसे अपने सपनों का कमरा वैसा ही मिले जैसा वो छोड़ कर गया था।
खाली रह गई पसंदीदा वॉल
मां कमरा दिखातीं हैं और कहती हैं- ये मुस्तफा की पसंदीदा वॉल थी। ग्रे कलर दिया है ये ब्लैक भी नहीं है… खूबसूरत कलर दिया ताकि इस पर लगी फ्रेम उभर कर आए। अपने जीवन की यात्रा यहां दिखा सके। वह दूसरों के लिए जीना चाहता था और उसी भावना को यहां लगाना चाहता था। स्कूल के दिन से लेकर सेना तक की यात्रा का सफर लगाना चाहता था… 2022 में जब वह शहीद हुआ उन्हीं कुछ महीनों में नए घर में आने की तैयारी थी। लेकिन, मुस्तफा ने जो अपने मन से बनाया उसमें वे रह नहीं पाया।
तकिए पर लिखा- जिंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं…
मुस्तफा के रूप में एक उसका कट आउट लगा है। मां फातेमा उसी को देख कर अपने बेटे के पास होने का एहसास करती हैं। पास में बहन के साथ बिताए पलों की सुन्दर यादें हैं। आर्मी में देश के लिए काम करते वक्त की तस्वीरें हैं, सर्टिफिकेट हैं। बेड पर एक तकिया है। जिस पर लिखा है- ‘जिंदगी बड़ी होनी चाहिए लंबी नहीं’…
मां कहती हैं- वो कब बनाकर लाया यह तो नहीं पता लेकिन उसने उस पर जो स्लोगन लिखा वह जरूर याद हो गया। मुस्तफा की सोच सरल और सहज थी।
बेवजह सामान खरीद लेते थे मेजर मुस्तफा
मां बताती हैं- मुस्तफा बहुत साधारण था। वो सड़क किनारे सामान बेचने वालों से जरूरत नहीं होने पर भी चीजें खरीद लेता था। हम पूछते तो कहता- मेरी वजह से किसी के घर में पैसे आ जाएं तो क्या बुरा है मां…
मुस्तफा जब 11वीं में था, तब उसको पूछा क्या करेगा आगे, सोचा क्या। उसका एक ही जवाब था कि मै ऐसा करूंगा कि दुनिया याद करेगी। आज मुझे मेरे बेटे के वो शब्द याद आते हैं और अब समझ में आया कि वह क्या कहना चाहता था। उसकी सगाई भी उदयपुर में तय कर दी थी। धर्म गुरु से बस तारीख निकलवानी थी।
पिता बोले- मेरे सपनों का साथी
मुस्तफा मेरे सपनों और मेरे विचारों का साथी है। मैं विदेश में रहता था। इसलिए मुझे उसके साथ ज्यादा वक्त बिताने का समय नहीं मिला। जब भी मैं उसके रूम में आता हूं तो उसके कट आउट से मुझे लगता है कि वो मुझे हाय डैडी बोल रहा है। मैं भी उसको हाय-हेलो करता हूं। जब तक मै रूम में रहता हूं तो मुझे लगता है वो मेरे साथ है और मेरा सहयोग करता है। यहां रहता हूं तो लगता है वो जिंदा है, मेरे साथ खड़ा है।
पापा कुवैत में रहते थे
मुस्तफा के पिता जकीउद्दीन बोहरा कुवैत में रहते थे। उनकी वहां जॉब थी। मुस्तफा की मां ही घर संभालती हैं। मुस्तफा की याद में बनाया शहीद मेजर मुस्तफा ट्रस्ट भी संभालती हैं। उनकी बहन डॉ. अलीफिया मुर्तजा अली अभी दुबई शिफ्ट हुई हैं। बीडीएस पास अलीफिया की दिसंबर में ही शादी हुई है।
45 किमी डेली अप डाउन करते थे
मां कहती है कि वे उदयपुर जिले के वल्लभनगर विधानसभा के खेरोदा गांव में रहते थे। ये गांव उदयपुर शहर से करीब 45 किलोमीटर दूर है। मुस्तफा ने शुरुआती पढ़ाई गांव में ही की। बाद में कुछ समय भींडर में पढ़ा। 2009 में उसका एडमिशन उदयपुर में सेंट पॉल्स स्कूल में करवाया। तब वो कक्षा 9 में पढ़ता था। मुस्तफा उस समय सर्दी, गर्मी और बारिश हर सीजन में 45 किलोमीटर डेली अप डाउन करता था। उस समय कभी बस नहीं मिलती तो मिनी ट्रक में आता और कभी दूध की गाड़ी में। प्रतापनगर चौराहा पर कभी उतार दिया जाता तो वहां से स्कूल तक करीब 6 किलोमीटर पैदल ही सफर पूरा करता।
बारहवीं बाद एनडीए में गए
मां फातेमा ने बताया- 14 मई 1995 को जन्मे मुस्तफा का बारहवीं पास करते ही राष्ट्रीय सैन्य एकेडमी (NDA) खड़कवासला पुणे में चयन हो गया। एनडीए में उनकी 174 वीं रैंक थी। पहले ही अटेम्प्ट में सिलेक्शन हुआ था। उनका 22 दिन का इंटरव्यू हुआ, जिसमें 18 दिन मेंटल और 4 दिन मेडिकल से जुड़ा था। एक साल ट्रेनिंग के बाद 11 जून 2016 को भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्त हुए। 2018 में उनका पायलट बनने का सपना पूरा हुआ।
विमान में आग लग गई और आबादी से जंगल में ले गए
जुलाई 2022 में उनका आखिरी स्थानांतरण हुआ। आर्मी एविएशन स्क्वॉड्रन लिकाबाली असम में उनको पोस्टिंग मिली। 21 अक्टूबर 2022 को सह पायलट मेजर विकास भाम्भू के साथ एक खुफिया मिशन को अंजाम देने वाले थे। विमान में तकनीकी खराबी की वजह से आग लग गई। आग लगे विमान को उन्होंने आबादी से दूर जंगल की तरफ मोड़ दिया। उसके बाद विमान क्रैश हो गया और वे शहीद हो गए। उनका पार्थिव शरीर 23 अक्टूबर 2022 को उदयपुर लाया गया।
आज तक शहीद के नाम सड़क और स्कूल नहीं
मां को इस बात का दुख है कि मुस्तफा के नाम आज तक न ही कोई सड़क है, न ही स्कूल। उनकी इच्छा है कि उदयपुर के फतहसागर के पीछे वाली रानी रोड का नाम और खेरोदा गांव के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय का नाम शहीद मेजर मुस्तफा के नाम पर कर दिया जाए। यह दोनों काम तो आसानी से हो सकते हैं। अफसाेस आज डेढ़ साल बाद भी कुछ नहीं हो पाया। उनको भूखंड या मकान देने की फाइल यहां सैनिक कल्याण बोर्ड से पेपर वर्क पूरा होने के बाद चली गई। राज्य सरकार को उसकी मंजूरी देनी बाकी है।