भाजपा ने दिए किरोड़ीलाल मीणा से बातचीत के संकेत:प्रदेशाध्यक्ष बोले-बैठकर बात करेंगे, वे जिम्मेदार व्यक्ति हैं; मंत्री ने ऑफिस जाना बंद किया
भाजपा ने दिए किरोड़ीलाल मीणा से बातचीत के संकेत:प्रदेशाध्यक्ष बोले-बैठकर बात करेंगे, वे जिम्मेदार व्यक्ति हैं; मंत्री ने ऑफिस जाना बंद किया

जयपुर : कृषि और ग्रामीण विकास मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा के इस्तीफा देने की अटकलों के बीच भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी ने संकेत दिए हैं कि पार्टी उनके इस्तीफे को लेकर बातचीत कर सकती है। शुक्रवार दोपहर को जब जोशी से मीणा के इस्तीफे के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि आप किरोड़ीलाल मीणा के पीछे क्यों पड़े हो?
जोशी ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है। मीणा पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं और जिम्मेदार व्यक्ति हैं। बैठकर उस विषय पर बातचीत करेंगे।
माना जा रहा है कि कृषि और ग्रामीण विकास मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा ने मंत्री पद से इस्तीफा देने की तैयारी कर ली है। डॉ. किरोड़ी लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद सचिवालय, और कृषि भवन के दफ्तर नहीं गए हैं।
सरकारी गाड़ी भी छोड़ दी है। सरकारी कामकाज से भी लगभग दूरी बना ली है। इस्तीफे की घोषणा से पहले डॉ. किरोड़ी के ये संकेत काफी कुछ इशारा कर रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक इस्तीफा लगभग तैयार है, उसके सीएम को भेजने भर की देरी है। अगले दो से तीन दिन में इसकी औपचारिक घोषणा कर सकते हैं। फिलहाल डॉ. किरोड़ी ने इस मुद्दे पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। पूरे मसले पर उन्होंने चुप्पी साध रखी है।
किरोड़ी ने कहा था-पीएम ने 7 सीटों की जिम्मेदारी दी, ये हारे तो इस्तीफा
डॉ किरोड़ी ने लोकसभा चुनावों के प्रचार के दौरान घोषणा की थी कि अगर बीजेपी उम्मीदवार दौसा सीट हारा तो वे मंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे। इसके बाद उन्होंने घोषणा की थी कि पीएम मोदी ने उन्हें 7 सीटों की जिम्मेदारी दी है, इन सीटों पर बीजेपी हारी तो वे मंत्री पद छोड़ देंगे।
बीजेपी दौसा सीट हार गई और पूर्वी राजस्थान की करौली-धौलपुर, टोंक-सवाईमाधोपुर और भरतपुर सीट पर भी पार्टी को हार मिली।

रिजल्ट के दिन लिखा- प्राण जाइ पर वचन न जाइ
लोकसभा चुनावों के रिजल्ट से पहले रुझानों में बीजपी को 11 सीटें हारते देख ही मीणा ने दोपहर में ही सोशल मीडिया पोस्ट करके इस्तीफे के संकेत दे दिए थे।
उन्होंने रामचरित मानस की चौपाई- रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाइ पर वचन न जाइ, लिखकर संकेत दिए कि वे अपनी घोषणा से पीछे नहीं हटेंगे।
न मनचाहा पद मिला, न भाई को टिकट
किरोड़ीलाल मीणा ने लोकसभा चुनावों के नतीजों से पहले ही इस्तीफा देने की घोषणा के पीछे सियासी कारण हैं। विपक्ष में रहने के दौरान उन्होंने अकेले दम पर गहलोत सरकार के खिलाफ कई मुद्दे उठाए, खुद धरने प्रदर्शन किए। पेपरलीक से लेकर कई घोटाले उजागर कर लगातार गहलोत सरकार को घेरते रहे।
जब किरोड़ी को राज्यसभा सासंद रहते हुए विधानसभा का चुनाव लड़वाया तो माना जा रहा था कि उन्हें सरकार में कम से कम डिप्टी सीएम या पावरफुल मंत्री बनाया जाएगा। जब सरकार बनी तो उन्हें कृषि और ग्रामीण विकास मंत्री बनाया, इन विभागों के भी टुकड़े करके दिए।
बताया जाता है कि सरकार बनने के बाद से ही वे असहज महसूस कर रहे थे। लोकसभा चुनावों में किरोड़ीलाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा दौसा से बीजेपी टिकट के दावेदार थे। बीजेपी ने दौसा से जगमोहन मीणा को टिकट नहीं दिया, उनकी जगह कन्हैयालाल मीणा को टिकट दिया। कन्हैयालाल मीणा बड़े अंतर से हारे।

सीएम के पास इस्तीफा नामंजूर करने का विकल्प खुला
किरोड़ी ने अगर सीएम को इस्तीफा सौंप दिया तो पार्टी और सरकार के खिलाफ आगे भी उन्हें मनाने का विकल्प खुला है। मुख्यमंत्री उनका इस्तीफा नामंजूर करके मामले का समाधान कर सकते हैं। सीनियर नेता और सीएम बीच बचाव करके मामले को सुलझा सकते हैं। इस्तीफा नामंजूर करने से मामले को सुलझाने की दिशा मिल सकती है।
डॉ. किरोड़ी की घोषणा भी पूरी हो जाएगी, उन्हें विरोधियों को चुप कराने का मौका मिल जाएगा और वे यह नहीं कह सकेंगे कि इस्तीफा नहीं दिया और उधर पार्टी और सरकार की दिक्कत भी दूर हो जाएगी। लेकिन यह मामला इतना सीधा नहीं है।
इस्तीफा मंजूर हुआ तो पैरेलल विपक्ष बन सकते हैं
किरोड़ीलाल मीणा मंत्री पद से इस्तीफा देकर सरकार से बाहर आए तो एक नया मोर्चा खुल सकता है। मीणा का सियासी ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो वे हमेशा आक्रामकता से मुद्दे उठाते रहे हैं। लोकसभा चुनावों में बीजेपी की हार के मुद्दे पर वे सरकार से बाहर आते हैं तो सरकार के साथ बीजेपी के लिए भी असहज हालात पैदा होंगे।
आगे पांच विधानसभा सीटों के उपचुनावों और निकाय-पंचायत चुनावों में भी नरेटिव खराब हो सकता है। अब तक सरकार में रहकर कई मुद्दों पर शांत रहने वाले किरोड़ी को मुखर होने का मौका मिल जाएगा। किरोड़ी सरकार में नहीं रहे तो मुद्दे उठाने के लिए आजाद हो जाएंगे।
ऐसा होने पर सरकार के खिलाफ मुद्दे उठाने का प्रभावी मंच बन जाएंगे। बेरोजगारों और आम आदमी के मुद्दों पर बोलना उनकी मजबूरी हो जाएगी। कई पीड़ित भी उनके पास पहुंचेंगे, ऐसे हालात में वे न चाहते हुए भी पैरेलल विपक्ष बन जाएंगे। इन सब भावी सियासी खतरों को देखते हुए ही बीजेपी का एक खेमा उन्हें मनाकर सरकार में ही रखने की पैरवी कर रहा है।