पति नहीं साबित कर सका कि पत्नी झगड़ती है:10 साल चला केस; जयपुर के कोर्ट ने अपील खारिज की, कहा- अब दोनों साथ रहें
पति नहीं साबित कर सका कि पत्नी झगड़ती है:10 साल चला केस; जयपुर के कोर्ट ने अपील खारिज की, कहा- अब दोनों साथ रहें

जयपुर : जयपुर मेट्रो-प्रथम की फैमिली कोर्ट ने तलाक से जुड़े एक मामले में पत्नी पर झगड़ा व गाली-गलौज कर मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक चाहने वाले पति का तलाक मंजूर करने से मना कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पति केस दायर करने के 10 साल में भी यह साबित नहीं कर पाया है कि पत्नी ने उसके साथ मानसिक क्रूरता की है।
पति ने केवल कयासों व बातों के आधार पर ही तलाक की अर्जी दायर की है जो उसकी तलाक की इच्छा ही जाहिर करते हैं। यदि पति को मानसिक क्रूरता के आधार पर पत्नी से तलाक लेना है तो उसके सबूत देकर साबित भी करना होगा। वहीं कोर्ट ने पत्नी की अर्जी मंजूर करते हुए प्रार्थी पति को निर्देश दिया कि वह उसके साथ वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना करे।
जज अजय शुक्ला ने यह आदेश पति की अर्जी खारिज व पत्नी की साथ रहने की अर्जी मंजूर करते हुए दिया। मामले से जुड़े अधिवक्ता डीएस शेखावत ने बताया कि प्रार्थी पति ने 2014 में कोर्ट में पत्नी से तलाक की अर्जी दायर की। इसमें कहा कि उनका विवाह अप्रार्थिया के साथ 13 फरवरी 2005 को नागौर जिले में हुआ। इस दौरान जुलाई 2006 में उनके एक बेटा हुआ।
जुलाई 2013 में वह अपने गांव आया तो पत्नी ने उसके बेटे को स्कूल नहीं जाने दिया और गाली-गलौज की। वहीं उसे दहेज प्रताड़ना केस में फंसाकर नौकरी से निकलवाने की धमकी दी। वह जुलाई 2014 में जयपुर आया तो पत्नी व बेटा उसे बताए पते पर नहीं मिले। पत्नी का यह आचरण मानसिक क्रूरता है इसलिए उसे तलाक दिलवाएं।
पत्नी का दावा नहीं की मानसिक क्रूरत
जवाब में पत्नी ने कहा कि पति ने उससे दस लाख रुपए दहेज की मांग की और उसने कभी भी अलग रहने के लिए नहीं कहा। वहीं उसके पिता ने पति को नौ लाख रुपए दिए जिससे उसके ससुर ने एक प्लॉट खरीदा। बाद में उनके दिए आठ लाख रुपए से दिल्ली में फ्लैट खरीदा।
उन्होंने कोई मानसिक क्रूरता नहीं की है और वह तो पति के साथ रहना चाहती है। सुनवाई के दौरान पति तलाक के लिए बताई गई मानसिक क्रूरता को साबित नहीं कर पाया। जिस पर कोर्ट ने उसकी तलाक की अर्जी खारिज कर दी।
मानसिक क्रूरता के लिए आधार साबित करना जरूरी
हाईकोर्ट के अधिवक्ता दीपक चौहान ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के लिए मानसिक क्रूरता के आधार पर कहा है कि मानसिक क्रूरता इस हद तक होनी चाहिए कि जीवन साथी का साथ रहना और वैवाहिक जीवन बिताना असंभव हो गया हो। इसे सहने की सीमा हर दंपती की अलग-अलग हो सकती है। उच्च शिक्षित व्यक्ति का जीवनसाथी की प्रतिष्ठा, करियर को खराब करना भी मानसिक क्रूरता ही है। मानसिक क्रूरता के लिए आधार को साबित भी करना जरूरी है।