कायमखानियों के 668 सालों के इतिहास एवं संस्कृति पर काम कर रहे हैं डा. जुल्फिकार
कायमखानी कौम के कई अनछुए पहलुओं को 14 विषयों दो चरणों में करेंगे उजागर

झुंझुनूं : राजस्थान रण की भूमि रही है और इस भूमि में कई वीर जातियों और समाजों का इतिहास इस तरह का है कि उस पर हर राजस्थानी को गर्व है। राजस्थान में कई वीर जातियां और समाज रहे है उन्हीं में से एक मार्शल कौम है ‘कायमखानी’। कायमखानी कौम का इतिहास करीब 668 साल पुराना है लेकिन इतिहास में हुए कई युद्धों में कौम के इतिहास का जल जाना, वंशावली का सही से अंकित नहीं होना जैसे कई कारण है जिनके चलते आज मार्शल कौम ‘कायमखानी’ के बारे में लोगों की जानकारी बहुत कम है। इसी कौम से ताल्लुक रखने वाले स्वामी विवेकानंद पर पीएचडी और देश- विदेश में शोध कार्य करने वाले भीमसर गांव के डॉ. जुल्फिकार कायमखानियों के 668 सालों के इतिहास एवं संस्कृति पर काम कर रहें हैं। डा. जुल्फिकार ने बताया कि कायमखानियों के 668 साल पुराने इतिहास एवं संस्कृति पर 14 विषयों पर दो चरणों में पूरा किया जायेगा।
उन्होंने बताया कि पहले चरण में
(1) ऐतिहासिक परिदृश्य एवं कायमखानी रियासतों का इतिहास।
(2) कायमखानी- राजपूत संबंध कल, आज और कल।
(3) कायमखानी रीति-रिवाज और परम्पराएं: कालांतर से आज तक।
(4) कायमखानी भाषा, परिधान, आभूषण, भोजन उत्सव आदि की परम्परागत विशेषताएं।
(5) कायमखानी योद्धा-ऐतिहासिक व वर्तमान सेना में उपलब्धियां।
(6) कायमखानी गोत्र परम्परा का इतिहास।
(7) ख्यातनाम कायमखानी महिलाएं और उनकी उपलब्धियां, योगदान।
दूसरे चरण में
(8) कायमखानी धार्मिक महापुरुष व उनके उपदेश।
(9) कायमखानी कलां, साहित्य, संगीत में ख्यातनाम व्यक्तित्व एवं उनकी उपलब्धियां।
(10) कायमखानी स्थापत्य कलां की विशेषताएं तथा उल्लेखनीय वास्तु शिल्प।
(11) कायमखानियों की वंशावली और लेखन की परम्परा।
(12) समाज उत्थान के लिए कार्यरत व ऐतिहासिक संगठन, उनकी उपलब्धियां।
(13) आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक क्षेत्र में कायमखानी उपलब्धियां।
(14) कायमखानी शहिदों व सैनिकों के परिवार के अतिरिक्त अन्य कई विषयों को इसमें शामिल किया गया है।
कायमखानी कौन है
उन्होंने बताया कि कायमखानी वंश का उदभव करीब 668 वर्ष पूर्व हुआ था। चूरु जिले में एक ‘ददरेवा’ नामक स्थान है जहां मोटेराव चौहान नामक राजा शासन करता था, उनके सुपुत्र राणा कर्मचंद फिरोजशाह तुगलक के समय सन् 1356 ई. में इस्लाम धर्म कबूल कर कायम खां बने। बाद में कायम खां के दो भाई जैनुदीन खां व जुबैरुदीन खां ने इस्लाम धर्म अपनाया इन्हीं की सन्तान आगे चलकर कायमखानी कहलाई। कायमखानी समाज दो रिति – रिवाजों का मेल है जिसमें छठी की रस्म,भात,आरता जैसे अनेक संस्कार और रिति-रिवाज राजपूतों से है। इसका कारण यह बताया जाता है कि कर्मचंद कायम खां तो बन गये लेकिन राजपूताना गौरव से नाता जोड़े रखा। तेरहवीं सदीं से लेकर अब तक राजपूतों के साथ कायमखानीयों का अटूट रिश्ता बना हुआ हैं।
14 जून को मनाते है कायम खां डे
कायमखानी समाज के प्रथम पुरुष और महान योद्धा नवाब कायम खां 14 जून 1419 ई. को शहीद हुए थे, उनकी याद में ही कायमखानी कौम 14 जून को हर वर्ष नवाब कायम खां डे मनाती है।
जिले के पहले कायमखानी रत्न डॉ. जुल्फिकार
भीमसर गांव के युवा लेखक व चिन्तक डॉ. जुल्फिकार राजस्थान कायमखानी शोध संस्थान जोधपुर द्वारा सातवें कायमखानी प्रतिभा सम्मान समारोह में कायमखानी समाज के सर्वोच्च सम्मान ‘कायम रत्न’ से सम्मानित हो चुके है। डा. जुल्फिकार को यह सम्मान सन् 2015 में पूर्व मंत्री युनूस खां व पूर्व आईजी व मंत्री लियाकत खां ने कायमखानी समाज को गौरवान्वित करने पर दिया। झुंझुनूं जिले में यह सम्मान प्राप्त करने वाले डॉ. जुल्फिकार पहले कायमखानी है।
एक्सपर्ट व्यू
कायमखानी एक मार्शल कौम है | इस कौम का इतिहास करीब 668 साल पुराना है। अब यह ऐतिहासिक काम 14 विषयों पर दो चरणों में पूरा किया जायेगा।~~डॉ. जुल्फिकार।