मजदूरी के बोझ तले दबा बचपन
मजदूरी के बोझ तले दबा बचपन

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : चंद्रकांत बंका
झुंझुनूं : किसी भी देश की युवा पीढ़ी उसकी रीढ़ होती है । युवा वर्ग वह स्तम्भ है जिस पर सशक्त भारत की बुनियाद रखी जाती है । भारत युवाओं का देश है लेकिन यदि बचपन और युवावस्था में तालमेल बैठा लिया तो देश को सफलता की बुंलदियों को छूने से कोई नहीं रोक सकता है ।
बाल श्रम एक ऐसा अभिशाप है जो बच्चों को शिक्षा, स्वतन्त्रता व स्वास्थ्य जैसी मूलभूत आवश्यकताएं छीन लेता है । यह बालक की उन्नति में बाधक तो है ही बल्कि देश की उन्नति में भी रोड़ा है । देश की आजादी का जश्न मनाने के साथ ही हम विश्व की पांचवीं अर्थव्यवस्था बनने के साथ ही विश्व गुरू बनने की और अग्रसर है व दूसरी तरफ करीब एक करोड़ से ज्यादा बच्चे श्रम मजदूरी करने के साथ ही मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित हैं । बाल मजदूरी एक अभिशाप होने के साथ ही मानवता के खिलाफ अपराध भी है । भारत जैसे देश में अत्यधिक गरीबी , समाज व परिवार के दबाव के कारण 14 साल से कम उम्र के बच्चों को श्रम करने के लिए मजबूर किया जाता है ।
बच्चों के कल्याण के लिए कल्याणकारी योजनाओं का संचालन व प्रचार प्रसार स्वैच्छिक संगठनो व सरकार द्वारा जागरूकता अभियान चलाने के बावजूद गरीबी रेखा से नीचे ज्यादातर बच्चे रोज बाल मजदूरी करने को मजबूर हैं । बाल मजदूरी एक सामाजिक समस्या भी है देश के आजाद होने के बाद इसको रोकने को लेकर बहुत से कानून बने पर कोई भी कानून प्रभावी साबित नहीं हुआ । इस समस्या से बच्चों का मानसिक , शारीरिक, सामाजिक और बौध्दिक तरीके से विनाश हो रहा है ।
कृषि व होटल कारोबार में बाल मजदूरी की दर उच्चतम है । स्वस्थ बचपन किसी भी देश का उज्ज्वल भविष्य होता है । जब बचपन ही बाल मजदूरी की वजह से बूढ़ा हो जाता है तो युवा कहा से बनेगा । मंहगी शिक्षा व शिक्षा का व्यवसायीकरण के कारण अभिभावक अपने बच्चों को शिक्षा से वंचित कर देते हैं क्योंकि जब जीवनयापन के लिए ही पैसा नहीं तो बच्चों को शिक्षा दिलवाना दूर की बात है । अतः उनके पीढ पर किताबों के थैले की बजाय कठिन श्रम का बोझ लाद देते हैं ।
इस सामाजिक बुराई को लेकर देश में बहुत से एनजीओ है जो प्रभावी तरीके से काम कर रहे हैं पर यह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। सरकार को इस दिशा में प्रबल प्रयास करने व इसके लिए कानून में कठोर प्रावधान के साथ ही गरीबी से नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों के लिए मजदूरी की व्यवस्था के साथ ही उनके बच्चों की पढ़ाई के लिए भी खर्च वहन करने की दिशा में प्रयास होने चाहिए । सामाजिक संगठनों को भी सामूहिक प्रयास से इस सामाजिक बुराई को खत्म करने की दिशा में अपनी उर्जा लगाने की जरूरत है क्योंकि आजाद भारत में आज भी नौनिहाल आजाद न होकर बाल श्रम की बेड़ियो में जकड़ा हुआ है ।