गहलोत के सियासी दांव-पेंच में फंसीं स्मृति ईरानी:छत्तीसगढ़ में पायलट नहीं कर पाए कमाल; पूनिया के पास थी हरियाणा की कमान, क्लीन स्वीप से चूके
गहलोत के सियासी दांव-पेंच में फंसीं स्मृति ईरानी:छत्तीसगढ़ में पायलट नहीं कर पाए कमाल; पूनिया के पास थी हरियाणा की कमान, क्लीन स्वीप से चूके

जयपुर : राजस्थान के कई दिग्गज नेताओं को कांग्रेस-भाजपा, दोनों ही दलों ने चुनाव प्रभारी बनाकर दूसरे राज्यों की बागडोर सौंपी थी। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, सचिन पायलट, डॉ. सी.पी.जोशी, सतीश पूनिया और भंवर जितेंद्र सिंह जैसे नाम प्रमुख हैं। तीन बार के मुख्यमंत्री रहे गहलोत को केवल एक सीट के लिए प्रभारी बनाकर भेजा गया था। सतीश पूनिया को सत्ता विरोधी लहर के बीच हरियाणा तो वहीं सचिन पायलट को नई जगह छत्तीसगढ़ की जिम्मेदारी दी गई। इन नेताओं के लिए ये जिम्मेदारियां अग्नि परीक्षा से कम नहीं थी।
1. अशोक गहलोत : तीन बार के CM को अमेठी भेजा, स्मृति ईरानी चुनाव हारीं
कांग्रेस के लिए अमेठी सीट कितनी महत्वपूर्ण थी। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी ने केवल एक सीट के लिए तीन बार के मुख्यमंत्री रहे अशोक गहलोत को वहां चुनाव प्रभारी की बागडोर सौंपी। कांग्रेस ने बीजेपी की स्मृति ईरानी के सामने गांधी परिवार के नजदीकी व स्थानीय नेता किशोरीलाल शर्मा को टिकट दिया था।

2019 के लोकसभा चुनाव में स्मृति ईरानी ने अमेठी सीट से कांग्रेस के राहुल गांधी को हराया था। लेकिन अपनी खोई हुई परंपरागत सीट पर कांग्रेस दोबारा कब्जा करना चाहती थी। गहलोत ने प्रभारी बनने के बाद कहा था कि राहुल गांधी ने खास प्लान के तहत यह सीट छोड़ी है।
अमेठी में किसका चला जादू? : अशोक गहलोत सात दिन अमेठी रहे। यहां वे पार्टी प्रत्याशी केएल शर्मा के प्रचार-प्रसार में जुटे थे। अमेठी सीट जीतने में कांग्रेस सफल भी रही। कांग्रेसी रणनीति के तहत पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय सचिव के.एल. शर्मा ने रिकॉर्ड वोटों से स्मृति ईरानी को हराया।
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. वरुण पुरोहित का मानना है अमेठी की जीत में प्रियंका गांधी का भी अहम रोल रहा। इसको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह बात दीगर है कि गहलोत अपने पुत्र वैभव को जालोर में नहीं जिता पाए।

पार्टी में गहलोत की भूमिका पर असर: राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले गहलोत पर कांग्रेस को हमेशा भरोसा रहा है। जब वे गुजरात कांग्रेस के प्रभारी थे, उस समय 2017 में राज्य सभा चुनाव में अहमद पटेल की जीत में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस घटना के 7 साल बाद एक बार फिर कांग्रेस ने प्रतिष्ठा की सीट बन चुकी अमेठी की जिम्मेदारी गहलोत को सौंपी।
अमेठी में भी पार्टी को उनके तजुर्बे का भरपूर फायदा मिला। अमेठी की जीत प्रदेश प्रभारी होने के नाते उनके खाते में दर्ज होती है। गहलोत कांग्रेस की गठबंधन समिति में भी थे, जिसका कांग्रेस और उसके गठबंधन दल को भरपूर फायदा मिला। ये सभी समीकरण उन्हें जल्द ही बड़ी जिम्मेदारी मिलने की ओर इशारा कर रहे हैं।
2. सतीश पूनिया : हरियाणा में संभाली कमान
राजस्थान के पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया को लोकसभा चुनाव से पहले 21 मार्च को हरियाणा का प्रदेश चुनाव प्रभारी बनाया गया। हरियाणा में जातीय समीकरण को देखते हुए पार्टी ने उन्हें यह जिम्मेदारी दी थी। गौरतलब है कि हरियाणा में करीब 28 फीसदी जाट आबादी है। जाट यहां लोकसभा की 4 और विधानसभा की 30 से अधिक सीटों पर अच्छा प्रभाव रखते हैं।
पूनिया को पूर्व प्रभारी बिप्लब कुमार देब की जगह नियुक्त किया गया। कहा जाता है कि उनकी सलाह पर ही पूनिया को हरियाणा की जिम्मेदारी दी गई। पूनिया के साथ राष्ट्रीय मंत्री व राज्यसभा सांसद सुरेंद्र सिंह नागर ने पहले की ही तरह सह प्रभारी का कार्य संभाला।

चुनौतियों से घिरे रहे सतीश पूनिया
सतीश पूनिया को चार दशक का सियासी तजुर्बा है। बेहतरीन चुनाव प्रबंधन कर ज्यादा वोटिंग कराने की जिम्मेदारी थी। इन पर प्रदेश के नाराज धड़ों काे साधने की बड़ी चुनौती थी।
बीजेपी ने हरियाणा में एंटी इनकम्बेंसी को पहले ही भांप लिया था। इसी कारण पार्टी हरियाणा में लगातार सत्ता और संगठन में बदलाव कर रही थी। पूनिया को दिल्ली बाॅर्डर पर चले किसान आंदोलन, बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ मोर्चा खोलने वाली महिला पहलवानों से उपजे हालात को संभालने सहित कई मोर्चाें पर संघर्ष करना पड़ा।
चुनाव में क्या फायदा मिला? : चुनाव से पहले बीजेपी ने हरियाणा सीएम मनोहर लाल खट्टर को हटाकर नायब सिंह को प्रदेश की कमान सौंप दी। मनोहर लाल को करनाल लोकसभा सीट से मैदान में उतारना सही फैसला साबित हुआ। हरियाणा में कांग्रेस व आप पार्टी गठबंधन कर चुनाव लड़ी।

चुनाव के दौरान सतीश पूनिया की सक्रियता ने खासी सुर्खियां बटोरी। उन्होंने पीएम मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा की सफल रैली आयोजित कराई। लेकिन हरियाणा में बीजेपी इस बार क्लीन स्वीप नहीं कर पाई। 2019 में बीजेपी ने दस सीटें जीती थी लेकिन इस बार केवल 5 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा।
सतीश पूनिया के सियासी भविष्य पर असर
राजनीतिक विश्लेषक कुंजन आचार्य मानते हैं कि विपरीत हालात में पांच सीटें जिताना महत्वपूर्ण है। पूनिया के प्रदर्शन को किसी भी सूरत में खराब नहीं कहा जा सकता। यह भी सही है कि चुनाव प्रभारी के रूप में पूनिया को कम समय मिला। उन्हें केंद्र या प्रदेश संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है।
3. सचिन पायलट : छत्तीसगढ़ में कैसी रही ‘पायलट’ की उड़ान
राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट को कुमारी शैलजा की जगह इस बार छत्तीसगढ़ का प्रभारी नियुक्त किया गया। इसके साथ ही उन्हें उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट पर ऑब्जर्वर नियुक्त किया गया था। यहां कांग्रेस प्रत्याशी कन्हैया कुमार को जिताने की जिम्मेदारी सचिन पायलट के कंधों पर थी।

सचिन पायलट के सामने थी ये चुनौती
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं में हताशा थी। सचिन पायलट ने रायपुर में डेरा जमाया और चुनाव प्रबंधन से लेकर कैंपेनिंग की जिम्मेदारी संभाली। बतौर स्टार प्रचारक उन्हाेंने कई रैलियां व रोड शो किए। इस बीच राजस्थान सहित अन्य राज्यों की गुर्जर बहुल सीटों पर पायलट सक्रिय रहे। हालांकि छत्तीसगढ़ के परिणाम आशा के अनुरूप नहीं आए।
कुल 11 लोकसभा सीटों में से बीजेपी ने 10 और कांग्रेस ने केवल एक सीट पर जीत हासिल की। जबकि 2019 में कांग्रेस ने दो सीटों पर जीत दर्ज की थी। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी राजनांदगांव से चुनाव हार गए। उधर उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट पर बीजेपी के मनोज तिवाड़ी ने कन्हैया कुमार को हराया।

सचिन पायलट के राजनीतिक भविष्य पर असर: राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं छत्तीसगढ़ में पार्टी की हार के बावजूद इनके राजनीतिक भविष्य पर अधिक असर नहीं पड़ेगा। कांग्रेस के पास वैसे भी युवा व ऊर्जावान नेताओं की कमी है। सचिन पायलट संयमित राजनीति करते हैं और वे युवाओं में बेहद लोकप्रिय हैं। ऐसे में पार्टी उनके अनुभव का फायदा आगे के चुनावों में भी लेना चाहेगी।
वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ कहते हैं कि छत्तीसगढ़ सचिन पायलट के लिए नया इलाका था। वहां पहले से विपरीत हवा बह रही थी। ऐसे में वे कुछ कर नहीं सके।
4. भंवर जितेंद्र सिंह : एमपी में बीजेपी के ‘भंवर’ में फंसे जितेंद्र
कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव भंवर जितेंद्र सिंह पहले असम के चुनाव प्रभारी थे। लेकिन उन्हें 23 दिसंबर 2023 को रणदीप सुरजेवाला की जगह मध्य प्रदेश का अतिरिक्त प्रभार भी दे दिया गया।
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित हार के बाद कांग्रेस लोकसभा चुनाव में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती थी। ऐसे में मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष रहे भंवर जितेंद्र सिंह को कमान दी गई।

एमपी में कांग्रेस को भारी पड़े प्रयोग : एमपी कांग्रेस में कमलनाथ के प्रदेश अध्यक्ष रहने के दौरान पांच प्रभारी बदले गए थे। जिनमें से सवा साल में ही तीन प्रभारियों को बदला गया। विधानसभा चुनाव से पहले जेपी अग्रवाल की जगह रणदीप सुरजेवाला को प्रभारी लगाया गया।
जेपी से पहले मोहन प्रकाश, दीपक बावरिया, मुकुल वासनिक जैसे प्रभारी बदले जा चुके थे। विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद कमलनाथ की जगह जीतू पटवारी को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया। संगठन में बार-बार परिवर्तन और बीजेपी की कड़ी चुनौती के चलते कांग्रेस एमपी में एक भी सीट नहीं जीत सकी।
नतीजा ये रहा कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने सभी 29 सीटों पर कब्जा कर लिया। कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई। पिछली बार जीती हुई छिंदवाड़ा सीट भी कांग्रेस ने गंवा दी। उधर असम में भी कांग्रेस को 14 में से केवल तीन सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। कांग्रेस के बड़े स्तर पर सर्जरी करने के बावजूद एमपी व असम के राजनीतिक मैप में कोई बदलाव नहीं हुआ। पार्टी के लिए कोई भी प्रयोग असरदार नहीं रहा।

भंवर जितेंद्र सिंह के सियासी सफर पर असर:
पूर्व केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं। वे यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। यह सही है कि असम व एमपी में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान जितेंद्र सिंह के कंधों पर दो राज्यों का भार था। ऐसे में माना जा रहा है कि एमपी में एक बार फिर कांग्रेस पार्टी किसी नए चेहरे को कमान सौंप सकती है।
दिल्ली व पंजाब में इन नेताओं को भी मिली जिम्मेदारी
कांग्रेस ने दिल्ली की चांदनी चौक लोकसभा सीट पर डॉ. सी.पी. जोशी को ऑब्जर्वर बनाया। यहां कांग्रेस के जे.पी.अग्रवाल का मुकाबला बीजेपी के प्रवीण खंडेलवाल से था। प्रवीण ने जीत दर्ज की। वहीं बीजेपी ने दिल्ली में अल्का गुर्जर को सह चुनाव प्रभारी का जिम्मा सौंपा। दिल्ली में क्लीन स्वीप करते हुए सभी 7 सीटों पर बीजेपी ने कब्जा कर लिया।

कांग्रेस आलाकमान ने पूर्व कैबिनेट मंत्री व कांग्रेस विधायक हरीश चौधरी को पंजाब में स्पेशल ऑब्जर्वर बनाया। हरीश चौधरी पंजाब कांग्रेस के प्रभारी रह चुके हैं। पंजाब कांग्रेस में गुटबाजी के बीच तालमेल बैठाने के लिए उन्हें जिम्मेदारी दी गई। पंजाब में कांग्रेस ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। यहां कांग्रेस ने 13 लोकसभा सीटों में से 7 जीती हैं। बीजेपी को पंजाब में एक भी सीट नहीं मिली।
क्या कहते हैं एक्सपट्र्स
वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ कहते हैं- जब अनुभवी नेता को चुनाव प्रभारी बनाकर भेजा जाता है तो उसका लाभ पार्टी और उस राज्य को भी मिलता है। सचिन पायलट व सतीश पूनिया दोनों ही अपनी-अपनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं और दोनों भविष्य के नेता हैं। लेकिन अशोक गहलोत की तुलना में अभी इनका राजनीतिक अनुभव आधा ही है। अगली बार जब इन्हें जिम्मेदारी दी जाएगी तो इनके पास अनुभव होगा और ये इस तजुर्बे के साथ अच्छा कर पाएंगे।
राजनीतिक विश्लेषक कुंजन आचार्य कहते हैं- अमेठी में भले ही गहलोत को चुनाव प्रभारी बनाया गया। लेकिन उनका पूरा ध्यान जालोर में अपने बेटे को जिताने में था। जहां उनका जादू नहीं चल पाया। वह अमेठी कम समय के लिए रहे थे। अमेठी की जीत प्रदेश प्रभारी होने के नाते उनके खाते में दर्ज तो होती है लेकिन अब उन्हें केंद्र में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिले ऐसा लगता नहीं है। इंडिया गठबंधन का कुनबा पहले ही बहुत बड़ा है।
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. वरुण पुरोहित का कहना है सचिन पायलट को छत्तीसगढ़ का चुनाव प्रभारी बनाया गया, साथ ही कन्हैया कुमार को जिताने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई लेकिन दोनों ही जगह इन्हें सफलता नहीं मिली। कांग्रेस का टिकट वितरण सही नहीं होने के कारण एनडीए को चुनाव में इतनी सीटें मिली हैं। कांग्रेस ने कई टिकट ऐसे लोगों को दे दिए जो चुनाव लड़ना ही नहीं चाहते थे।