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घर का पूत कुंवारा डोले पाड़ोसी का फेरा


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झुंझुनूंटॉप न्यूज़देशराजस्थान

घर का पूत कुंवारा डोले पाड़ोसी का फेरा

घर का पूत कुंवारा डोले पाड़ोसी का फेरा

राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक

झुंझुनूं : एक मारवाड़ी कहावत बहुत प्रचलित है कि घर का पूत कुंवारा डोले पाड़ोसी का फेरा । यह कहावत जिले की गौशालाओ पर खरी उतरती है । गौशाला के संचालन करने वाले खुद को परम गौ भक्त का खिताब भी खुद ही ले लेते हैं उनको सड़कों पर लठ्ठ व कूड़ा कचरा खाता असहाय गौवंश दिखलाई नहीं देता बल्कि अन्य राज्यों से गौवंश लाकर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं । राजस्थान का गौवंश जैसे नागौर की सुहालक नस्ल, सिरोही और जालौर की काकरेज नस्ल, बीकानेर जैसलमेर की राठी नस्ल व थारपारकर नस्ल जो उच्च क्वालिटी की नस्लें है इनका दूध भी पौष्टिक होने के साथ साथ औसतन 15 से 20 लीटर दूध देती है । जब राजस्थान मे उच्च नस्ल का गौवंश पाया जाता है तो अन्य राज्यों से गौवंश का लाकर इस बात को इंगित करता है कि यह गौशाला का संचालन नहीं बल्कि डेयरी का संचालन किया जा रहा है । सूत्रों की मानें तो उन गौवंश के दूध पर पहला अधिकार उन भामाशाहों का होगा जिन्होंने इनको लाने में आर्थिक सहयोग किया है । जब गौशालाएं सार्वजनिक है और हर आम आदमी अपनी हैसियत से गौवंश के लिए करता है तो इसको प्राईवेट लिमिटेड कंपनी बनाने का किसको अधिकार है ।

सच्ची गौसेवा वहीं है और सच्चा गौभक्त कहलाने का अधिकारी भी वही है जो बाजार सड़कों पर घूम रहे असहाय गौवंश को देखकर उसका दिल पसीज जाए न कि गौशालाओं की आड़ में बैलेंस सीट देखें कि कितना मुनाफा हुआ है ।‌ इसलिए गौशालाओं के संचालन की आड़ में डेयरी संचालन कर पाप के भागीदार वे कथित डेयरी संचालन करने वाले बनते ही है बल्कि वे भामाशाह भी पाप कमा रहे हैं जो इन गौशालाओं को उदारमना से आर्थिक सहयोग दे रहे हैं । गौदान सनातन धर्म में श्रेष्ठ दान की श्रेणी में आता है । जब गौदान गौशाला को किया जाता है तो संकल्प भी परम पिता परमेश्वर के नाम ही किया जाता है ।‌

 

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