अज़ीम स्वतंत्रता सेनानी नवाब बंगाल सिराजुद्दौला
अज़ीम स्वतंत्रता सेनानी नवाब बंगाल सिराजुद्दौला

अज़ीम स्वतंत्रता सेनानी नवाब बंगाल सिराजुद्दौला : भारत की आज़ादी के लिए फिरंगियों के ख़िलाफ़ सब से पहली कोशिश प्लासी का युद्ध 1757 थी।
1757 ई को बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला एवं ब्रिटिश इस्ट इंडिया कंपनी के मध्य प्लासी का युद्ध मुर्शिदाबाद के निकट नदिया जिले के प्लासी नामक स्थान पर हुआ। इस युद्ध में ब्रिटिश सेना का नेतृत्व रॉबर्ट क्लाइव कर रहे थे। सिराजुद्दौला को इस युद्ध में हार का सामना करना पड़ा, और अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की जीत हुई।
जैसा कि उल्लेखनीय है कि सिराजुद्दौला बंगाल के पूर्व नवाब अलवर्दी खां के पौत्र थे। यह वही अलवर्दी खां थे जिसने सरफराज की हत्या करके बंगाल की सत्ता हथिया ली थी। 1756 में जब अलवर्दी खां का निधन हुआ तो उसकी बेटी के एक लड़के यानी सिराजुद्दौला को बंगाल का नवाब बनाया गया। किंतु सिराजुद्दौला की मोसियो की नज़र बंगाल के तख्त पर ही थी। ऐसे में इस स्थिति का फायदा अंग्रेजों ने उठाया और सिराज के विरोधियों को अपने साथ मिला लिया।
गौरतलब है कि प्लासी के युद्ध से पहले अंग्रेजों और सिराजुद्दोला के बीच छोटी छोटी झडपे होती रही। इसमें एक घटना ब्लैक होल के नाम से जानी जाती है। इसके तहत अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला पर यह आरोप लगाया कि एक कमरे में सिराजुद्दौला ने अंग्रेजों को बंद करके मार दिया। लेकिन इस घटना की वास्तविकता पर मतभेद है , अंग्रेजों का असल मकसद सिराजुद्दौला को बदनाम कर साम्राज्य का विस्तार करना था।
प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला के सेनापति मीरजाफर , दीवान राम दुर्लभ , मौसी घसीटी बेगम, व्यापारी अमीन चंद्र और बैंकर जगत सेठ । इन सभी ने अंग्रेज़ो का साथ दिया और सिराजुद्दौला के साथ गद्दारी की।
वहीं दूसरी ओर मीर मदान एवम् मोहन लाल सिराजुद्दौला के वफादार सेनापति थे जिन्होंने मरते दम तक का उसका साथ दिया। प्रसिद्ध बांग्ला कवि नवीन चंद्र सेन ने प्लासी युद्ध से संबंधित कहा है कि “प्लासी के युद्ध के बाद भारत के लिए शाश्वत दुःख की काली रात का आरंभ हुआ”