सवाल: आप वैभव का प्रचार करने जालोर-सिरोही क्यों नहीं गए?:सचिन पायलट बोले- मैं जाना चाह रहा था, मैंने कहा भी था, वहीं से कार्यक्रम नहीं बन पाया
सवाल: आप वैभव का प्रचार करने जालोर-सिरोही क्यों नहीं गए?:सचिन पायलट बोले- मैं जाना चाह रहा था, मैंने कहा भी था, वहीं से कार्यक्रम नहीं बन पाया

जयपुर : राजस्थान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के सियासी भूगोल को समझना बेहद जटिल है। वे कभी दौसा, सीकर, टोंक-सवाई माधोपुर में चुनाव प्रचार करते दिखते हैं तो दूसरे ही दिन जम्मू-कश्मीर से लेकर केरल-आंध्र तक कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना रहे होते हैं।
इस नजरिए को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि सचिन असरदार नेता हैं। लेकिन, एक पहलू ये भी है कि उनकी प्रचार की रणनीति में अपनी राजनीति भी है। मीडिया ने कम मतदान के असर, 25-0 में बदलाव के संकेतों और जालोर से दूरी बनाने से जुड़े सीधे सवाल किए, पायलट के सधे और शालीन जवाबों में कई सियासी संदेश भी हैं…
राजस्थान में पहले चरण में 2019 की तुलना में 6.40% वोट कम पड़े। किसका वोटर बूथ तक नहीं पहुंचा? कम पोलिंग की क्या वजह मानते हैं?
जनता निराश है। भाजपा के खिलाफ वोटिंग हुई है। पहले चरण ने बदलाव के संकेत दे दिए हैं। इस वोटिंग ने यह भी साबित कर दिया है कि भाजपा जो 400 पार की हवा बना रही थी, उसे अब जमीनी हकीकत का अहसास हो गया है। कांग्रेस के वोटर ने अपना वोट दिया है, भाजपा ने बड़े मतदान के रिकॉर्ड की बात कही थी, कम वोटिंग ने उनका यह दावा भी तोड़ दिया।
2014 और 2019 के चुनाव में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला था। कम वोटिंग के बाद भी भाजपा फिर से क्लीन स्वीप का दावा कर रही है। कांग्रेस को कितनी सीटें? आपका आंकलन क्या?
इस बार भाजपा से ज्यादा सीटें कांग्रेस को मिलेंगी। अधिकांश रुझान कांग्रेस के पक्ष में हैं। भाजपा की बौखलाहट का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि सरकारी एजेंसियों का खुला दुरुपयोग हो रहा है। झारखंड, दिल्ली के मुख्यमंत्री जेल में डाल दिए गए। कांग्रेस के बैंक खाते सीज किए। इलेक्टोरल बॉन्ड को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक बताया, और कैसे इसका इस्तेमाल हुआ है, देश ने देखा है।
कांग्रेस ने सीकर, नागौर, बांसवाड़ा में गठबंधन किया है, इन सीटों पर कांग्रेस मजबूत रही है। क्या आप गठबंधन के पक्ष में थे?
मेरे पक्ष में रहने या नहीं रहने से फर्क नहीं पड़ता। किसी भी पार्टी को अपनी राजनीतिक जमीन देने में दिक्कत आती है, लेकिन विरोधियों से लड़ने के लिए समझौते करने होते हैं। गठबंधन का फायदा भी दिख रहा है। राहुल गांधी ने देशभर में एनडीए से लड़ने के लिए कई सीटें इंडिया गठबंधन को दी हैं।
जयपुर-भीलवाड़ा में टिकट बदले गए और राजसमंद में प्रत्याशी ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया। बांसवाड़ा में सिंबल देने के बाद गठबंधन किया। क्या इससे पार्टी को नुकसान नहीं होगा?
कभी-कभी टिकट वितरण में ऐसी समस्याएं आती हैं। और यह हर दल के साथ होता है। लेकिन जो बांसवाड़ा में हुआ, उस सियासी घटनाक्रम से बचा जा सकता था। पार्टी के अंदर जांच होनी चाहिए कि बांसवाड़ा में पार्टी के सामने यह स्थिति कैसे बनी?
सीकर-नागौर दोनों जाट बहुल सीटें हैं। कांग्रेस ने दोनों गठबंधन को दी हैं। क्या कारण है कि कांग्रेस अध्यक्ष डोटासरा प्रचार में सिर्फ सीकर गए, नागौर नहीं? क्या वे आरएलपी से गठबंधन के पक्ष में नहीं थे?
इंडिया गठबंधन राष्ट्रीय स्तर पर हुआ है। सभी विपक्षी दलों को जोड़ने की कोशिश केंद्रीय नेतृत्व ने की है। सभी कांग्रेसी नेता इसके साथ हैं। हर सीट पर नेता पहुंचे, कभी-कभी यह संभव नहीं हो पाता।
राहुल गांधी ने सिर्फ दो सभाएं की हैं, दूसरे चरण में तो बड़े नेता आए ही नहीं, पीएम मोदी अब तक 8 कर चुके, राजस्थान से बड़े नेताओं की ये दूरी क्यों?
कांग्रेस सामूहिक नेतृत्व वाली पार्टी है। सोनिया जी, खरगे जी और प्रियंका गांधी आए हैं। दूसरे नेता प्रचार कर रहे हैं। कांग्रेस का मेनिफेस्टो सबसे बड़ी ताकत है। भाजपा 10 साल बाद भी 2047 तक वक्त मांग रही है, जबकि युवाओं को अग्निवीर योजना में 4 साल में रिटायर कर रही है। 4 जून को बदलाव देखिएगा।
आप राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, केरल, आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश में चुनाव प्रचार कर रहे हैं। देश का मूड कैसा दिखता है?
यह बदलाव का चुनाव है। भाषणों से वोट अब नहीं मिलने वाले। हिंदू,-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद की बात हो रही है, गांव-गरीब और बेरोजगारी पर उनका कोई नेता नहीं बोल रहा। शासन और जनता के बीच दूरियां बढ़ रही हैं। युवा और किसान परेशान हैं। राजनीतिक विरोधियों को जिस तरीके से नुकसान पहुंचाया जा रहा है, उसने भरोसे का संकट खड़ा कर दिया है।
वैभव का प्रचार करने जालोर-सिरोही क्यों नहीं गए? क्या अशोक गहलोत-वैभव ने बुलाया नहीं?
जिस उम्मीदवार ने मुझे बुलाया है, मैं वहां गया हूं। जहां भी पार्टी ने मुझे आदेशित किया है, मैं वहां सभाएं कर रहा हूं। मैंने सार्वजनिक रूप से भी कहा है कि मैं जालोर कैंपेन करने जरूर जाउंगा। उसी के चलते पुखराज पराशर जी, जो जालोर में सारा काम देखते हैं, उनको भी कहा था मैं प्रचार के लिए आना चाहता हूं… लेकिन किसी कारणवश अभी तक वो कार्यक्रम नहीं बना पाए। लेकिन वहां से अच्छा फीडबैक मिल रहा है और मुझे उम्मीद है कि वैभव अच्छे वोटों से जीतेंगे।
आप कह रहे हैं कि वैभव अच्छे वोटों से जीतेंगे, फिर 2014 में पीसीसी अध्यक्ष रहते आपने टिकट क्यों नहीं दिया? वैभव कह रहे हैं कि टोंक-सवाई माधोपुर, जालोर-सिरोही, जोधपुर से मेरा नाम आया था, लेकिन विरोधियों ने मेरा टिकट कटवा दिया?
पीसीसी अध्यक्ष बनते ही मैंने वैभव को पहली कार्यकारिणी में महासचिव बनाया। दो जिलों का प्रभारी भी। 2014 के लोकसभा चुनाव में मैंने वैभव का सिंगल नाम सीईसी को दिया था। लेकिन तब प्रभारी गुरुदास कामत ने कहा था कि अशोक गहलोत जी वैभव को चुनाव नहीं लड़वाना चाहते… क्योंकि 2013 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की इतिहास की सबसे बड़ी हार हुई है। इस हार के बाद वैभव को लोकसभा का उम्मीदवार बनाना सही मैसेज नहीं देगा। 2019 मैं बतौर पीसीसी अध्यक्ष मैंने खुद जोधपुर से उनकी दावेदारी की पैरवी की और टिकट दिलवाया था, लेकिन दुर्भाग्यवश वो चुनाव नहीं जीत पाए। लेकिन इस बार वो जालोर से जीतेंगे।