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पर्यटन की दृष्टि से बबाई का किला है महत्वपूर्ण : 555 वर्ष पुराना है बबाई का ऐतिहासिक गढ


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पर्यटन की दृष्टि से बबाई का किला है महत्वपूर्ण : 555 वर्ष पुराना है बबाई का ऐतिहासिक गढ

पर्यटन की दृष्टि से बबाई का किला है महत्वपूर्ण : 555 वर्ष पुराना है बबाई का ऐतिहासिक गढ

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : गोविंदराम हरितवाल

बबाई का ऐतिहासिक गढ : राजस्थान में अनेक किले बने हुए हैं इनका बहुत ही सामरिक महत्व था । पर्यटन जगत में आज इन किलो का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। इन किलो की कहानी आज भी इनकी यशोगाथा का बखान करती है । इन्हीं किलो में बबाई का यह गढ़ अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। सनातन संस्कृति में बसंत का बहुत महत्व है । इसी को दृष्टि में रखते हुए तत्कालीन धूला के राजावत राजा ने बसंत पंचमी के दिन विक्रम संवत 1525 में इस किले की आधारशिला रखी थी । यह दिन अनेक मांगलिक कार्यक्रम संपन्न करने और नए भवन आदि की नींव रखने के लिए भी शुभ माना जाता है।

झुंझुनू जिले के खेतड़ी उपखंड के गांव बबाई के इस ऐतिहासिक गढ़ की आधारशिला का पत्थर विक्रम संवत 1525 में बसंत पंचमी के दिन ही रखा गया था। यह गढ़ राजावत शासको के द्वारा निर्मित करवाया गया था। गढ़ के चारों ओर पक्की चार दिवारी बनाकर शत्रु के हमले से बचाने के लिए माकूल इंतजाम किए गए थे । परकोटे पर सैनिकों के खड़े होने और शत्रु की गतिविधि पर नजर रखने उन पर आक्रमण करने के लिए मोर्चे बने हुए थे । किले को सुरक्षा प्रदान करने के लिए किले के चारों ओर, गहरी खाई बनाई गई थी।जिसमें सदैव पानी भरा रहता था । ऐसी इस किले की सुदृढ़ सुरक्षा व्यवस्था थी । यह किला राजकीय रिकॉर्ड के अनुसार 4. 02 हेक्टर अर्थात 16 बीघा चार विश्व क्षेत्र में फैला हुआ है । गढ़ में बना महल और रानीवास महल का उल्लेख आईने अकबरी में भी मिलता है।

अब यह महल जर्जर हालत में है । महल के पास ही ठाकुर जी का मंदिर भी बना हुआ है, जिसमें नित्य पूजा पाठ होता है और गढ़ परिसर के अंदर रहने वाले राजपूत प्रतिदिन भगवान सीताराम जी के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और मनौती मांगते हैं । इस गढ़ के निर्माण में 8 वर्ष से अधिक का समय लगा था। इस गढ़ के राजावत शासकों ने देश में पैर फैला रही मुस्लिम सल्तनत को रोकने के लिए पपुरना के राव राजा बरोज एवं उनके दोनों पुत्रों बिदल खान व फौलाद खान को युद्ध में मार कर निर्वाण जाति के गौरव को बढ़ाया था। राव राजा ने मुस्लिम धर्म अपना कर मुगल शहजादी से निकाह कर लिया था और वे मुस्लिम संस्कृति को बढ़ावा देने लग गए थे, इससे उनके सहोदर भाई नाराज हो गए और उन्होंने बबाई के राजावत राजा निर्भय सिंह से सहयोग लेकर उन्हें युद्ध में परास्त किया वहीं भरतपुर के जाट राजा जवाहर मल जाट को ढूंढाड के युद्ध में हराकर अपनी यश कीर्ति को बढ़ाया था ।

यह युद्ध इतना भयंकर था की इसमें राजपूत वंश में 10 वर्ष से अधिक उम्र का कोई भी योद्धा नहीं बचा था । युद्ध में जाट राजा को हराने के पश्चात क्षेत्र में सर्वत्र शांति स्थापित हो गई थी । युद्ध के नायक महाराज दलेल सिंह और कुंवर लक्ष्मण सिंह की स्मृति में बनी दो छतरियां राजपूतों के शमशान में आज भी उनकी यश कीर्ति को फैला रही है । छतरी में अ़कित शिलालेख पर लिखा है कि यह छतरी महाराज्य दलेल सिंह राजावत व कुंवर लक्ष्मण सिंह राजावत के मांवडा युद्ध में मिति पोष बदी छठ संवत 1624 में वीरगति प्राप्त करने पर बनी।

गोविंदराम हरितवाल
(लेखक 34 वर्ष तक राजस्थान सरकार का अधिस्वीकृत पत्रकार रहा है )
बबाई, खेतड़ी, झुंझुनूं (राजस्थान)

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