‘पता नहीं था सुई-धागे के काम के लिए अवॉर्ड मिलेगा’:फैशन डिजाइनर रूमादेवी बोलीं- घूंघट छोड़ बाहर निकली तो ताने मिले, आज 35 हजार महिलाएं मुझसे जुड़ीं
'पता नहीं था सुई-धागे के काम के लिए अवॉर्ड मिलेगा':फैशन डिजाइनर रूमादेवी बोलीं- घूंघट छोड़ बाहर निकली तो ताने मिले, आज 35 हजार महिलाएं मुझसे जुड़ीं
जब मैंने पहली बार घूंघट छोड़कर घर से बाहर कदम रखा तो पड़ोसियों और समाज के लोगों से काफी ताने मिले। लोग कहते थे 8वीं तक पढ़ी है, ये भला क्या कर लेगी। ये तो इधर-उधर जाती है, ये तो पता नहीं क्या कर रही है, किसके साथ कहां जा रही है, लेकिन मैंने खुद पर विश्वास बनाए रखा। मुझे पता था कि मैं क्या कर रहीं हूं और जो कुछ भी कर रही हूं, वो सही कर रही हूं। आज उन्हीं लोगों को हमसे काफी उम्मीदें रहती हैं।
ये कहना है सोशल वर्कर और फैशन डिजाइनर रूमा देवी का। उन्होंने बताया जब मैंने काम की शुरुआत की, तब मुझे पता नहीं था कि इस सुई धागे के काम के लिए भी अवॉर्ड मिल सकता है। हालांकि ये सफर आसान नहीं था। हमारे मीडिया कर्मी से बातचीत में रूमा देवी ने काम की शुरुआत, आर्टीजन से से फैशन डिजाइनर बनने, राष्ट्रपति से नारी शक्ति अवॉर्ड मिलने, रुमा देवी फाउंडेशन की शुरुआत समेत कई मुद्दों पर बात की। पढ़िए पूरा इंटरव्यू…
सवाल-: बाड़मेर की गलियों से निकलकर देश-विदेश तक का सफर आपने तय किया। इसकी शुरुआत कैसे हुई?
रूमा देवी-: शादी के बाद जब मेरे पहले बच्चे का जन्म हुआ तो वो सिर्फ 48 घंटे ही जिंदा रह पाया। उसके सांस की प्रॉब्लम थी तो उसे अच्छी मेडिसिन और अच्छे हॉस्पिटल की जरूरत थी, लेकिन घर की परिस्थितियों के कारण हम उसको बचा नहीं पाए। उस समय मुझे लगा कि ऐसी जिंदगी जीने से अच्छा है कि जिंदगी ही खत्म कर लूं, लेकिन फिर ख्याल आया कि जिंदगी से हार मानने से अच्छा है कि मैं कोई काम कर लूं, जिससे मेरा मन भी लगा रहेगा और मेरा घर खर्च भी चलेगा। तो यही सोचकर मैंने साल 2008 में काम की शुरुआत की थी।
सवाल-: आज आप हजारों महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी हुई हैं। आपको डिजाइनिंग का ख्याल कैसे आया और आपने इसकी शुरुआत कैसे की?
रूमा देवी-: सबसे पहले मैंने छोटे बैग बनाने शुरू किए थे। मेरी सोच थी कि जो महिलाएं मायके जाएगी तो वो बैग लेकर जरूर जाएगी। इसके बाद हमने होम फर्निशिंग के आइटम बनाने शुरू किए। फिर सोचा कि गारमेंट बनाए जाएं जो ज्यादा लोग खरीदेंगे। यही सोचकर हमने साड़ी, कुर्ते, दुपट्टे बनाने शुरू किए, लेकिन वो भी लोगों को ज्यादा समझ में नहीं आ रहा था कि पहनने पर ये प्रोडक्ट कैसे लगेंगे। तब हमें किसी ने बताया कि आप फैशन शो करिए। तो फैशन शो के नाम से ही मुझे चिढ़ थी। मेरे लिए फैशन शो का मतलब छोटे कपड़े पहनना था तो हम ऐसा फैशन शो नहीं करेंगे। लेकिन बाद में मुझे किसी ने कहा कि आप हेरिटेज फैशन शो कर सकते हो। तब मैंने सोचा हां ये सही रहेगा, लेकिन एक गांव के आर्टिजन को फैशन शो करने का मौका कहां मिलेगा।
उस दौरान किसी ने मुझे जयपुर में होने वाले हेरिटेज फैशन वीक के बारे में बताया तो वहां जाके हमने रिक्वेस्ट की कि हमें फैशन शो करना है। तो उन्होंने बोला कि यहां पर तो बड़े डिजाइनर्स लोग आ रहे हैं। आप आर्टिजन हैं तो आप कैसे फैशन शो कर पाओगी। तब हमने कहा कि नहीं आप हमें एक बार मौका दीजिए तो वहां से मौका मिल गया, लेकिन वास्तव में प्रॉब्लम ये थी कि जो बड़े डिजाइनर्स है उनके कलेक्शन के साथ में हम कैसा कलेक्शन बनाएंगे, क्या कॉस्ट्यूम डिजाइन करेंगे। तब हमने सोचा बड़े एनजीओ से मदद मांगते हैं, वो मदद करेंगे। तो हमने जाके उनसे बोला कि हमें ये फैशन शो करना है। इसमें आपसे हमें ये मदद चाहिए तो उन्होंने बोला कि रुमा जी ये आपका लेवल नहीं है। आप जहां फील्ड में हैं, वही आपके लिए अच्छा है। ये जिद आप छोड़ दीजिए, ये डिजाइनरों का काम है।
इस बात का मुझे काफी दुःख हुआ और रोना भी आया। ये समझ में आ गया कि कोई हमारी मदद करने वाला नहीं है, लेकिन फैशन शो तो मैं जरूर करूंगी। उस समय सोशल मीडिया का भी ज्यादा प्रभाव नहीं था कि यूट्यूब से देखकर कर लें। तब जैसा मुझे समझ आया मैंने अपना कॉस्ट्यूम डिजाइन किया और कलर थीम लिया। उस समय बहुत घबराहट हो रही थी कि किसी को पसंद नहीं आएंगे, लेकिन हिम्मत करके मैं अपना कलेक्शन लेकर जयपुर पहुंची। जैसे ही रैंप पर हमारा कलेक्शन आया तो सारी ऑडियंस और डिजाइनर्स ने खड़े होकर तालियां बजाई। और नेक्सट शो के लिए वहीं 5 डिजाइनर बाड़मेर पहुंचे अपना कलेक्शन बनाने के लिए। उसके बाद मैंने ट्राइबल आर्टिजन की कला को प्रमोट करने के लिए अलग-अलग स्टेट में फैशन शो ऑर्गेनाइज करवाए। साल 2017 में मैंने डिजाइनर ऑफ द ईयर का अवॉर्ड जीता था।
सवाल-: हमने सुना है कि एक समय में आपके पास सिलाई मशीन खरीदने के पैसे नहीं थे, लेकिन आज आपने हजारों महिलाओं को सिलाई मशीन दी है?
रूमा देवी-: जब मैंने 2008 में काम की शुरुआत की थी, तब बैग बनाने थे। बैग की एंब्रॉयडरी तो हाथ से हो गई थी, लेकिन उसकी सिलाई मशीन से होनी थी और मशीन मेरे पास थी नहीं और ना मैं खरीदने के लिए सक्षम थी। उस समय मैं हिम्मत हार चुकी थी कि ये काम नहीं कर पाऊंगी। तब मेरे दिमाग में आया कि मैं अकेले तो नहीं कर पा रही हूं, लेकिन मैं अपने पड़ोस की बहनों से बात करूं तो हम मिलकर मशीन खरीद सकते हैं। इसके बाद हम 10 महिलाओं ने मिलकर एक सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाया और 100-100 रुपए इकट्ठा करके एक सेकेंड हैंड मशीन खरीदी। उसके बाद मुझे हमेशा यही महसूस होता है कि घर में जो महिलाएं रहती है उनके पास एक सिलाई मशीन अगर हो तो वो अपने लिए, अपने बच्चों के लिए वो खुद कपड़े सिल सकती है। इसी सोच के साथ हमने पिछले 2 साल में लगभग 3500 महिलाओं को सिलाई मशीन वितरित की।
सवाल-: लोग एक समय आपसे मिलना भी पसंद नहीं करते थे। अब आपको नारी शक्ति अवॉर्ड मिल चुका है। आप लोगों के विचार में किस तरह का परिवर्तन देखती हैं?
रूमा देवी-: पिछले 10 सालों में लोगों की सोच को बदलते हुए देखा है। जब मैंने कुछ करने के लिए घूंघट छोड़कर घर के बाहर कदम निकाला तो पड़ोसियों और समाज के लोगों से काफी ताने मिले। लोग कहते थे कि ये 8वीं तक पढ़ी महिला क्या ही कर लेगी। ये तो इधर-उधर जाती है, ये तो पता नहीं क्या कर रही है किसके साथ कहां जा रही है, लेकिन मैंने खुद पर विश्वास बनाए रखा। मुझे पता था मैं क्या कर रही हूं और जो कुछ भी कर रही हूं वो सही कर रही हूं। आज उन्हीं लोगों की हमसे काफी उम्मीदें रहती हैं। हर इंसान को सफलता के लिए अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ती है, बस उसे अपने सपनों पर डटे रहने की जरूरत होती है।
सवाल-: आपके जीवन की सबसे बड़ी अचीवमेंट क्या रही है? महिलाओं को अपने साथ कैसे जोड़ पाईं?
रूमा देवी-: आज 35000 महिलाएं मुझसे जुड़ चुकी हैं। मैं जीवन की सबसे बड़ी सफलता इसे ही मानती हूं कि आज महिलाएं मेरे साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ी हैं। एक समय ऐसा था जब मैं महिलाओं के घरों पर जाती थी तो उनके परिवार के लोग मुझे उनसे मिलने नहीं देना चाहते थे। घर के बुजुर्ग हमसे सवाल किया करते थे कि कौन हो कहां से आए हो। इनका क्या सिखाके जाओगे। कल ये हमारा कहना मानेगी या नहीं मानेगी, यहां कोई काम नहीं करेगा।
परिवार के लोग इस तरीके से बोलते तो हमें लगता कि इनको तो काम की जरूरत ही नहीं है। लेकिन जब हम महिलाओं से मिलते, उनकी समस्याओं को सुनते तो लगता नहीं काम की जरूरत उनको नहीं, इनको है। तब हम उनके घरवालों को समझाते इनको काम के लिए कहीं नहीं जाना पड़ेगा। घर का काम पूरा करने के बाद इनको दिन में जब भी 1-2 घंटे टाइम मिलेगा तो उसमें ये काम करके देगी। हम उनको घर बैठे काम देकर जाएंगे और लेकर जाएंगे। ऐसे करके कुछ बहनों को साथ में जोड़ा। जब उनके पास में इनकम आनी शुरू हुई तो और भी बहनें साथ में जुड़ना शुरू हुई। ऐसा करते-करते आज जब मैं एक महिला को बोलती हूं कि दिल्ली में एग्जीबिशन है या कुछ प्रोग्राम है, आपको जाना है तो एक की जगह 10 तैयार होती है, क्योंकि अब घर-परिवार के लोगों को भी विश्वास हो गया है कि जो हम का कर रहे हैं वो अच्छा काम है, सही काम है और खासतौर से महिलाओं के लिए हैं। इसके साथ ही महिलाओं की सोच में बदलाव आया है कि हम नहीं पढ़ पाईं, लेकिन हमारी बेटियों को जरूर पढ़ाएंगे।
सवाल-: रूमा देवी फाउंडेशन की शुरुआत कैसे हुई और अभी आप किन-किन क्षेत्रों में काम कर रही हैं?
रूमा देवी-: ग्रामीण विकास चेतना संस्था है, वो राजस्थान के लेवल पर काम करती है। हम राष्ट्रीय स्तर पर देश के हर कोने में महिलाओं के लिए काम कना चाहते थे तो रूमा देवी फाउंडेशन की शुरुआत की। अभी हम बेटी बचाओ पर काम कर रहे हैं, जिसमें हम एक गांव की एक बेटी को ब्रांड एंबेसडर बनाकर 20 हजार की एफडी करवाकर सुकन्या समृद्धि योजना से जोड़ रहे हैं। और साथ ही बेटियों को एजुकेशन से जोड़ने के लिए भी काम कर रहे हैं। मेरी 8वीं में स्कूल छूट गई, आज भी कई बच्चियों की स्कूल छूट जाती है, उनके लिए हम स्कॉलरशिप की व्यवस्था करते हैं। स्कॉलरशिप में सालाना 25 से 75 हजार रुपए उनको देते हैं। साथ में हम स्पोर्ट्स के लिए भी काम करते हैं। इसके तहत बाड़मेर में एक बहुत बड़ा इनडोर स्टेडियम बनवा रहे हैं, खासकर के लड़कियों के लिए।
इसके साथ ही हम फोक म्यूजिक पर काम कर रहे हैं, जो वाणी उत्सव के नाम से हम हर साल करते हैं, उसमें दादू की और मीरा की जो वाणी होती है, वो धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है, उसको नए आर्टिस्टों को सिखाना, उनको ट्रेंड करना, इस तरह के प्रोग्राम हम चला रहे हैं। इसके साथ ही गांव की महिलाओं के लिए डिजिटल साक्षरता पर काम कर रहे हैं। आज ग्रामीण महिलाओं के पास फोन तो आ गए हैं, लेकिन मोबाइल को सही तरीके से कैसे यूज करना नहीं आता है। डिजिटल साक्षरता से हम उनको मोबाइल के सही इस्तेमाल के साथ उसके दुरूपयोग के बारे में जानकारी देते हैं। अभी 30 हजार महिलाओं को हम डिजिटल साक्षरता से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
सवाल-: आपने कभी सोचा था कि आपको राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति के हाथों कोई अवॉर्ड मिलेगा
रूमा देवी-: जब मैंने काम की शुरुआत की तब मुझे पता नहीं था कि सबसे छोटा माने जाने वाले सुई धागे के काम से अवॉर्ड मिल सकता है। सबसे पहले तो मुझे जिला कलेक्टर ने अवॉर्ड दिया। उसके बाद मुझे राज्यपाल के हाथों से अवॉर्ड मिला तो बहुत खुशी हुई और एक नई जिम्मेदारी का एहसास हुआ कि ये अवॉर्ड मेरे अकेले का नहीं है। मेरे साथ काम करने वाली बहनों का और मेरी टीम का भी है।
बाड़मेर में काम शुरू किया तो दिल्ली आना-जाना हुआ करता था, उस वक्त राष्ट्रपति भवन के आस-पास से गुजरने पर एक अलग ही खुशी मिलती थी। उस वक्त भी नहीं सोचा था कि मैं इस राष्ट्रपति भवन के अंदर जा पाऊंगी। साल 2019 में मुझे राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने नारी शक्ति अवॉर्ड से सम्मानित किया तब मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था, क्योंकि जो चीज सिर्फ सपने में देखा करती थी, उसका अनुभव मुझे हकीकत में मिला ।
सवाल-: आपके लिए फैशन क्या है? आपकी भाषा या पहनावा आपके लिए कहीं भी रुकावट बनी?
रूमा देवी-: देखिए फैशन समय के अनुसार बदलते हैं, लेकिन मुझे मेरा ट्रेडिशनल लुक पसंद है। ट्रेडिशनल के साथ फैशन को कैसे कर सकते हैं, इस पर मेरी सोच ज्यादा काम करती है। मैं किसी के पहनावे पर टिप्पणी नहीं करती हूं। आज मुझे कहीं बाहर जाकर अपनी पहचान बतानी नहीं पड़ती है। जब विदेश जाती हूं तो लोग पहनावे से समझ जाते हैं कि मैं इंडिया से हूं और जब इंडिया में कहीं जाती हूं तो लोग मेरे पहनावे से जान पाते हैं कि मैं राजस्थान से हूं। मेरा मानना है कि हर परम्परागत कला को या चीजों को संरक्षित रखना जरूरी है। मुझे लगता है कि भाषा सीखनी जरूर चाहिए, लेकिन ये आपके लिए कहीं रुकावट नहीं बन सकती। इंसान मेहनत से हर चीज सीख लेता है।