नई दिल्ली : अदालत ने संसद सुरक्षा उल्लंघन मामले में सभी आरोपियों की न्यायिक हिरासत 1 मार्च तक बढ़ा दी। वहीं कुछ आरोपियों ने आरोप लगाया कि पुलिस ने जबरन कोरे कागजों पर उनके हस्ताक्षर ले लिए हैं। अदालत ने इस मुद्दे पर दिल्ली पुलिस को जवाब देने का निर्देश देते हुए सुनवाई 17 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश डॉ. हरदीप कौर के समक्ष सभी छह आरोपियों की न्यायिक हिरासत खत्म होने पर पेश किया गया। अदालत ने उनकी हिरासत अवधि 30 दिनों के लिए बढ़ा दी।
पिछली तारीख के दौरान आरोपी नीलम आजाद ने कोर्ट को बताया था कि कल एक महिला अधिकारी ने उनसे 52 कोरे कागजों पर जबरन हस्ताक्षर करा लिए और इससे पहले भी ऐया हुआ है। अदालत ने नीलम के वकील से उचित आवेदन दाखिल करने को कहा था। आज नीलम आज़ाद के वकील ने एक आवेदन दायर किया।
विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) अखंड प्रताप सिंह ने अभियुक्तों के आरोपों और दलीलों पर आपत्ति जताई थी।
इससे पहले छह में से पांच आरोपियों ने पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए अपनी सहमति दी थी आरोपी नीलम आजाद ने पॉलीग्राफ टेस्ट से इनकार कर दिया। इसके अलावा आरोपी मनोरंजन और सागर ने भी नार्को एनालिसिस और ब्रेन मैपिंग टेस्ट के लिए अपनी सहमति दी। यह मामला 13 दिसंबर को संसद हमले की बरसी पर सुरक्षा उल्लंघन से जुड़ा है।
आरोपियों ने पुलिस पर लगाया यातना देने का आरोप
संसद की सुरक्षा में चूक मामले के आरोपियों ने अदालत के समक्ष आवेदन दायर कर यातना देने और खुद को राजनीतिक दलों से जोड़ने का आरोप लगाया है। उन्होंने दावा किया कि पॉलीग्राफ, नार्को और ब्रेन मैपिंग परीक्षणों के दौरान उन पर मामले के संबंध में एक राजनीतिक दल या नेता का नाम लेने का दबाव डाला गया।
पटियाला हाउस स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश डॉ. हरदीप कौर ने इस मुद्दे पर दिल्ली पुलिस को जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए सुनवाई 17 फरवरी तय की है। वहीं, अदालत ने सभी आरोपियों की न्यायिक हिरासत में एक मार्च तक के लिए बढ़ा दी।
आरोपियों ने दावा किया है कि हिरासत के दौरान उनके साथ जबरदस्ती और यातना की गई। आरोप लगाया कि उन्हें 70 खाली पन्नों पर हस्ताक्षर करने, गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत अपराध कबूल करने और खुद को राजनीतिक दलों से जोड़ने के लिए यातना दी गई और बिजली के झटके दिए गए। .
आरोपी मनोरंजन डी, सागर शर्मा, ललित झा, अमोल शिंदे और महेश कुमावत द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि पॉलीग्राफ, नार्को और ब्रेन मैपिंग परीक्षणों के दौरान, परीक्षण करने वालों ने उन पर मामले के संबंध में एक राजनीतिक दल या नेता का नाम लेने का दबाव डाला।उन्होंने यह भी कहा कि उनसे उनके वर्तमान और पुराने मोबाइल फोन नंबरों के बारे में पूछताछ की गई, और उनके पुराने और नए दोनों फोन नंबरों के लिए सिम कार्ड जारी करने के लिए दूरसंचार प्रदाता कार्यालयों में ले जाया गया।