फिलिस्तीन VS इजराइल | इजराइल के निर्माण से 2021 तक का विवाद और घटनाक्रम का इतिहास – संक्षिप्त में
फिलिस्तीन vs इजराइल का संपूर्ण इतिहास - फिलिस्तीन और इज़राइल का मुद्दा लगभग 100 साल पुराना है। दोनो के बीच जमीन के बंटवारे और एक स्वतंत्र राष्ट्र निर्माण को लेकर कुछ कुछ सालों में हिंसा देखने को मिलती है। आज हम दोनों के बीच हिंसा और इसका कारण जानने की कोशिश करते हैं।

फिलिस्तीन vs इज़राइल से जुड़ी कुछ ऐतिहासिक घटनाएं
सन् 1800ई० तक दुनियाभर में यहूदी प्रताड़ित किए गए जिसके बाद वह मानने लगे कि दुनिया में वह अकेले हैं। अब अगर हमें जिंदा रहना है और सुकून से जीना है तो यहूदियों का अलग देश बनाना होगा। जिसके बाद कई ऐसे यहूदीवादी संघ बने जिसने समय-समय पर यहूदियों का एक अलग देश बनाने में अपना योगदान देते रहे।
सन् 1881ई० में पहली बार फिलिस्तीन में यहूदी शरणार्थी के रूप में देखे गए जहां पर वह धीरे-धीरे बसने लगे। उस समय फिलिस्तीन उस्मानियां सल्तनत का एक हिस्सा था। जहां यहूदी, ईसाई, और मुसलमान शांति से रहते थे।
पहले विश्व युद्ध में उस्मानिया सल्तनत की हार के बाद मध्य-पूर्व दो हिस्सो में बट गया। एक हिस्से पर फ्रांस का कब्जा हो गया और दूसरे हिस्से पर ब्रिटेन का नियंत्रण हो गया। जिसमें फिलिस्तीन के नाम से पहचाने जाने वाले हिस्से को ब्रिटेन ने अपने क़ब्ज़े में ले लिया था।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद हिटलर का जर्मनी में उदय हुआ इसके बाद जर्मनी में लाखों यहूदी मारे गए। जर्मनी में कत्लेआम के बाद यहूदी दुनियाभर में शरण लेने लगे। इनमें सबसे ज्यादा यहूदी फिलिस्तीन की तरफ गए क्योंकि यहूदियों के अनुसार फिलिस्तीन उनकी प्राचीन धरोहर है।
पहले तो फिलिस्तीन में यहूदियों को आने दिया लेकिन बाद में इन पर ब्रिटिश ने रोक लगा दी। जिससे यहूदियों में राष्ट्रीय निर्माण की भावना बढ़ने लगी और दूसरी तरफ यहूदियों की संख्या बढ़ते देख फिलिस्तीनियों ने भी अपना एक राष्ट्र बनाने की ठानी।
मौजूदा इज़राइल का निर्माण 1948 ई. में किस तरह हुआ जानें –
अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने जब ब्रिटेन को यहूदी लोगों के लिए फ़लस्तीन को एक ‘राष्ट्रीय घर’ बनाने का काम सौंपा तो यहूदी और अरबों के बीच के बीच तनाव बढ़ा।
बढ़ते तनाव को देख सन 1948 में ब्रिटिश सरकार इन इलाकों को छोड़ देती है और यह कहती है कि दोनों आपस में बटवारा कर ले।
ब्रिटिश के जाने के बाद यह मुद्दा यूएन के पास पहुंच जाता है। जिसके बाद यूएन बटवारे का एक सुझाव देता है जिसमें लगभग 55% हिस्सा यहूदियों को और 45% हिस्सा अरबों को दिया जाता है और विवादित स्थल यरूशलम को अंतर्राष्ट्रीय कंट्रोल में रखने की बात करता है।
इस योजना को यहूदी नेताओं ने स्वीकार किया जबकि अरब पक्ष यानी फिलिस्तीनी नेताओं ने इसको ख़ारिज कर दिया जिसके बाद यह पूर्ण रूप से कभी लागू नहीं हो पाया।
1948ई० में समस्या सुलझाने में असफल होकर ब्रिटिश शासक तो चले गए लेकिन यहूदी नेताओं ने इज़राइल राष्ट्र के निर्माण की घोषणा कर दी।
इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष का सामान्य घटनाक्रम
यहूदियों के इस राष्ट्र निर्माण को अरब पक्ष यानी फिलिस्तीनी नेता नहीं मानते जिसके बाद First Arab Israeli war of 1948 की शुरुआत होती है।
पांच से ज्यादा अरब देश मिलकर भी इजराइल को हरा नहीं पाते क्योंकि उन्हें मालूम था अगर अब नही लड़े तो दुनियां से मिट जाएंगे। पूरी ताकत से युद्ध जीतने के बाद फिलिस्तीन के बड़े जमीनी हिस्से पर इजराइल का कब्जा हो जाता है। जिसके बाद लाखों फिलिस्तीनियों को अपने घरों से भागना पड़ा या उनको उनके घरों से ज़बरन निकाल दिया गया। इसको फिलीस्तीनियों ने अल-नकबा या ‘तबाही‘ कहा।
जॉर्डन के क़ब्ज़े वाली ज़मीन को वेस्ट बैंक और मिस्र के क़ब्ज़े वाली जगह को गज़ा के नाम से जाना गया। वहीं, यरुशलम को पश्चिम में इसराइली और पूर्व को जॉर्डन के के बीच बाँट दिया गया।
1967 में एक बार फिर युद्ध लड़ा गया, इस युद्ध में इसराइल ने पूर्वी यरुशलम और वेस्ट बैंक पर अपना क़ब्ज़ा कर लिया। इसके अलावा इसराइल ने सीरिया के गोलान हाइट्स, गज़ा और मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप के कई हिस्सों पर भी अपना अधिकार बना लिया।ज्यादतर फिलिस्तीनी शरणार्थी और उनके वंशज गज़ा और वेस्ट बैंक में रहते हैं और इसके अलावा सीरिया, लेबनान, और जॉर्डन के कुछ इलाकों में भारी संख्या में रहते हैं। लेकिन न ही उनको और न ही उनके वंशजों को इज़राइल ने घर को वापस लौटने की इजाज़त दी। इज़राइल का कहना है कि इससे उसके देश पर असर होगा और यहूदी राष्ट्र के अस्तित्व को ख़तरा भी होगा।
इसराइल का अभी भी वेस्ट बैंक पर क़ब्ज़ा है लेकिन गज़ा से वो पीछे हट चुका है। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र अभी भी मानता है कि यह उसके क़ब्ज़े वाले क्षेत्र का हिस्सा है।
इज़राइल दावा करता है कि पूरा यरुशलम उसकी राजधानी है जबकि फिलिस्तीनी पूर्वी यरुशलम को भविष्य के फिलिस्तीनी राष्ट्र की राजधानी मानते हैं। अमेरिका उन देशों में से एक है जो पूरे यरुशलम पर इसराइल के दावे को मानता है।
पिछले 50 सालों में इज़राइल ने येरूसलम इलाक़ों में कई बस्तियाँ बसा दी हैं जहाँ पर छह लाख से अधिक यहूदी रहते हैं।
फिलिस्तीनी कहते हैं कि ये यहूदी बस्तियाँ अंतरराष्ट्रीय क़ानून के अनुसार अवैध हैं और शांति में बाधा हैं जबकि इज़राइल इस दावे को ख़ारिज करता है।
हमास और PLO क्या है ?
1964ई० में फिलिस्तीनी स्वतंत्र देश बनाने के लिए PLO( Palestine Liberation Organization) की स्थापना करते हैं। शुरुआत में ये हिंसा के समर्थक होते हैं जिससे यूएस और इजराइली इन्हे आतंकवादी संगठन कहते हैं। लेकिन बाद में ये शांति और एकता का समर्थन करते हैं।
1987ई० में फिलिस्तीनी कट्टरवादी लोग हमास संगठन बनाते हैं, जिनका मकसद हिंसा के माध्यम से फिलिस्तीन को एक आज़ाद मुल्क बनाना है। लेकिन PLO की नीतियां उसे पसंद नहीं आती जिससे हमास PLO का विरोधी बन जाता है।
1992 में इज़राइल प्रधानमन्त्री Yitzhak Rabin, PLO को आतंकवादी संगठन नहीं मानते बल्कि फिलीस्तीन की मांग को जायज करार देते हुए इनके साथ बंटवारे की चर्चा करते हैं। जिसके बाद 1994 में पहली बार फिलिस्तीनी सरकार बनाई जाती है। जिसे Palestinian National Authority कहा जाता हैं।
इज़राइल और फिलिस्तीन आपस में शांतिपूर्ण ढंग से बंटवारे की नीतियां बनाते हैं लेकिन 1995 में कट्टरवादी यहूदियों को PLO और इजरायली प्रधानमंत्री Yitzhak Rabin की नीतियां पसंद नहीं थी। क्योंकि कट्टरवादी यहूदी पूरे फिलिस्तीन को इजराइल बनाना चाहते थे। जिसके बाद एक कट्टर यहूदी ने इज़राइल के प्रधानमंत्री Yitzhak Rabin की हत्या कर देता है। जिसके बाद लगातार हालात बिगड़ना शुरू हो जाते हैं।
इस घटना के बाद दिन प्रतिदिन दोनों तरफ के कट्टरवादी लोग एक दूसरे का विरोध करने लगे जिसके बाद लगातार कुछ कुछ सालों में हिंसा देखी जाती है।
PLO का लगातार विरोध करके 2006 में हमास, PLO को इलेक्शन में हराकर खुद की सरकार बनाता है। 2007 तक दोनों के बीच इतनी ज्यादा नफरत बढ़ जाती है कि दोनों के बीच गृह युद्ध हो जाता है जिसे Battle of Gaza कहते हैं। इस युद्ध के बाद फिलिस्तीन दो हिस्सों में बट जाता है एक हिस्सा(गज़ा) पर हमास का कंट्रोल और दूसरा हिस्सा(वेस्ट बैंक) PLO के पास चला जाता है।
फिलिस्तीन vs इजरायल, तत्कालीन घटना – मई 2021
समाचार पत्रों के अनुसार कुछ दिनों पहले ईस्ट येरूसलम में फिलिस्तीनियों को अपना घर छोड़कर जानें के लिए कहा गया। जबकि संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक शाखा यूनेस्को के कार्यकारी बोर्ड ने अक्टूबर 2016 में एक विवादित प्रस्ताव को पारित करते हुए यह बात स्पष्ट रूप से कहा था कि यरूशलम में स्थित ऐतिहासिक अल अक्सा मस्जिद पर मुसलमानों का पूरा अधिकार है और यहूदियों से उसका कोई भी ऐतिहासिक संबंध नहीं है।
जबकि यहूदी उसे अपना ऐतिहासिक “टेंपल माउंट” कहते हैं। और इसी दावे को दुनियां के सामने रखते हैं।
ईस्ट येरूसलम के कुछ इलाकों में फिलिस्तीनियों के खिलाफ इजराइली नेताओं ने भड़काऊ रैलियां भी निकाली गई।
7 मई 2021 को इजराइली रैलियों के विरोध में फिलिस्तीनी प्रदर्शन कर रहे थे। यह प्रदर्शन हिंसा में बदल गया और पत्थरबाजी हुई। जिससे दोनो तरफ के लोग घायल हो गए।
10 मई 2021 को इजराइली पुलिस ने अल अक्सा मस्जिद में जाकर फिलिस्तीनियों को रबर बुलेट का निशाना बनाया। इसराइली पुलिस का यह दावा है कि फिलिस्तीनी मस्जिद में पत्थर छुपा कर रखे हुए थे और इजराइली लोगो के द्वारा निकाली जा रही रैलियों पर फेकेंगे जिसकी वजह से हमने यह कदम उठाया।
इस घटना के बाद हमास ने इज़राइल को धमकाया साथ ही कुछ घंटों बाद राकेट दागने शुरू भी कर दिया। जिसके बाद इसराइल ने जवाबी हमला किया जिसमें कई बेगुनाह आम नागरिक मारे गए।