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क्या है इजरायल और फिलिस्तीन के बीच चल रहा सदियों पुराना विवाद? जानिए पूरी कहानी


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G.Kजनमानस शेखावाटी ब्यूरोविदेश

क्या है इजरायल और फिलिस्तीन के बीच चल रहा सदियों पुराना विवाद? जानिए पूरी कहानी

इजरायल और फिलिस्तीन का अकसर आमना सामना हो जाता है. जानिए क्या है दोनों के बीच के संघर्ष की पूरी कहानी और इतिहास.

एक बार फिर इजरायल और फिलिस्तीन एक दूसरे के आमने सामने हैं. लगातार हो रहे हवाई हमलों और गोलाबारी के बीच एक बार फिर दोनों के बीच युद्द जैसे हालात बन गए हैं. साल 2014 में दोनों के बीच युद्ध हुआ था जो कि 50 दिन तक चला था.

ऐसे में बड़ी संख्या में मारे जा रहे बेगुनाह लोगों की तस्वीरों को देखने के बाद हर कोई ये जानना चाहता है कि आखिरकार इजरायल और फिलिस्तीन के बीच के विवाद की जड़ क्या है? ऐसा क्या है जिसके कारण दोनों के बीच के संबंध सामान्य नहीं हो पा रहे हैं और दोनों एक दूसरे के खिलाफ युद्ध के मैदान में उतर आते है.

क्या है अल अक्सा मस्जिद विवाद?

इजरायल के येरूशलम को इस्लाम, यहूदी और ईसाई तीनों धर्म में पवित्र जगह माना गया है. यहां स्थित अल अक्सा मस्जिद को मक्का- मदीना के बाद इस्लाम में तीसरा सबसे पवित्र स्थल माना जाता है. तो वहीं यहूदी भी इसे सबसे पवित्र स्थल मानते हैं. 35 एकड़ परिसर में बनी मस्जिद अल-अक्सा को मुस्लिम अल-हरम अल शरीफ भी कहते हैं. यहूदी इसे टेंपल टाउन कहते हैं. वहीं, ईसाइयों का मानना है कि यह वही जगह है, जहां ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया और यहीं वे अवतरित हुए. यहां चर्च द चर्च आफ द होली सेपल्कर है. ईसा मसीह का मकबरा इसी के भीतर है. यहूदियों के लिए सबसे पवित्र स्थल ‘डोम ऑफ द रॉक’ इसी जगह स्थित है. लेकिन पैंगबर मोहम्मद से जुड़े होने के कारण डोम ऑफ द रॉक में मुसलमान भी आस्था रखते हैं. इस जगह को लेकर वर्षों से यहूदियों और फिलिस्तीनियों के बीच विवाद है.

ईसा मसीह के जन्म से भी पुराना है विवाद
इतिहास पर नजर डाला जाए तो इजरायल और फिलिस्तीन के बीच का विवाद ईसा मसीह के जन्म से भी पुराना है. बाइबल में प्रभु ने इजरायल के इलाके का चुनाव यहूदियों के लिए किया था. इसलिए पूरी दुनिया के यहूदी इसे अपना घर मानते हैं. हालांकि यहूदियों को कई बार इसी जगह अत्याचारों का सामना करना पड़ा है और यहां से बेदखल भी होना पड़ा है.

वहीं फिलिस्तीनियों का मानना है कि वे लोग हमेशा से यहां के मूल निवासी रहे हैं इसलिए इस जगह पर उनका अधिकार है और वो किसी भी स्थिति में उसे नहीं खोना चाहते हैं.

72 ईसा पूर्व में रोमन साम्राज्य का हो गया था यहां कब्जा
72 ईसा पूर्व में रोमन साम्राज्य ने इस इलाके पर हमला करके उसपर कब्जा कर लिया था. इसके बाद सारे यहूदी दुनियाभर में इधर-उधर जाकर बस गए. इस घटना को एक्जोडस कहा जाता है. इस घटना के बाद यहूदी बड़ी संख्या में यूरोप और अमेरिका में जाकर बस गए.

यहूदियों को लेकर पूरी दुनिया में फैला था एक वहम
इसी दौरान एक और शब्द एंटी सेमिटिज्म प्रचलन में आया. इस शब्द का मतलब था हिब्रू भाषा बोलने वाले लोग यानी यहूदियों के प्रति दुर्भावना. पूरी दुनिया में दुनिया में यहूदियों को लेकर एक वहम फैला कि ये दुनिया की सबसे चालाक कौम है. ये किसी को भी धोखा दे सकते हैं.

सार्वजनिक करनी होती थी यहूदियों को अपनी पहचान
ऐसे में ‘एंटी सेमिटिज्म’ की वजह से कई देशों में यहूदियों को अपनी पहचान सार्वजनिक करनी होती थी. कई यूरोपीय देशों की सेनाओं में लड़ने वाले यहूदियों को अपनी वर्दी पर एक सितारा लगाना पड़ता था जिसे ‘डेविड स्टार’ कहा जाता था. इस सितारे से यहूदियों की पहचान की जाती थी. पहचान छिपाने या गलत बताने पर यहूदियों के लिए सजा का भी प्रावधान था.

थियोडोर हर्जल ने रखी थी इजरायल के गठन की सैद्धांतिक नींव
थियोडोर हर्जल नाम के वियना में रहने वाले एक यहूदी ने वर्तमान इजरायल की स्थापना की सैद्धांतिक तौर पर नींव रखी थी. 1860 में जन्मे हर्जल वियना में एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम करते थे लेकिन एंटी सेमिटिज्म की वजह से उन्हें वियना छोड़ना पड़ा इसके बाद वो फ्रांस आ गए और वहां उन्होंने बतौर पत्रकार काम करने लिए.

साल 1890 में फ्रांस और रूस के बीच हुए एक युद्ध में फ्रांस को हार का सामना करना पड़ा. फ्रांस के हार के कारणों की जब समीक्षा की गई तो उसकी जिम्मेदारी एक यहूदी अधिकारी एल्फर्ड ड्रेफस के ऊपर डाल दी गई. बतौर पत्रकार हर्जल ने इस खबर पर कवर स्टोरी की. इस घटना के बाद उन्होंने निर्णय किया कि वो पूरी दुनिया में फैले यहूदियों को इकट्ठा करेंगे और उनके लिए एक नए देश या राज्य की स्थापना करेंगे.

1897 में जायनिस्ट कांग्रेस की हुई थी स्थापना
साल 1897 में उन्होंने स्विटजरलैंड में वर्ल्ड जायनिस्ट कांग्रेस की स्थापना किया. जायनिस्ट का हिब्रू में अर्थ स्वर्ग होता है. इस संस्था को पूरी दुनिया के यहूदी चंदा देने लगे और संस्था के बैनर तले इकट्ठा भी होने लगे. हर साल संस्था के वैश्विक सम्मेलन का आयोजन किया जाता था. लेकिन 1904 में संस्था के संस्थापक हर्जल का दिल की बीमारी की वजह से निधन हो गया. उनकी मौत का यहूदियों के अलग देश के आंदोलन पर कोई असर नहीं पड़ा क्योंकि जायनिस्ट कांग्रेस की पकड़ यहूदियों के बीच तबतक बेहद मजबूत हो चुकी थी.

ब्रिटेन और यहूदियों के बीच हुआ बालफोर समझौता
उस दौर में तुर्की और उसके आसपास के इलाकों में ऑटोमन साम्राज्य का परचम लहराता था. लेकिन 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध की शुरुआत हुई और विश्व युद्ध के दौरान यहूदियों और ब्रिटेन के बीच बालफोर समझौता हुआ. दोनों के बीच हुए इस समझौते के मुताबिक यदि युद्ध में ब्रिटेन ऑटोमन साम्राज्य को हरा देता है तो फिलिस्तीन के इलाके में यहूदियों के लिए एक स्वतंत्र देश की स्थापना की जाएगी.

ब्रिटेन ने नहीं पूरा किया अपना वादा और शुरू हुआ आधुनिक संघर्ष
इस समझौते के बाद जायनिस्ट कांग्रेस को लगा कि अगर युद्ध के बाद ब्रिटेन अपना वादा पूरा करता है तो नए देश की स्थापना के लिए उस इलाके में बड़ी आबादी की मौजूदगी जरूरी है. ऐसे में यहूदियों ने अपने देशों को छोड़कर धीरे-धीरे फिलिस्तीन के इलाके में बसना शुरू किया.

लेकिन युद्ध में जीत के बाद ब्रिटेन ने देश बनाने का वादा पूरा नहीं किया लेकिन यहूदियों को इस इलाके में बसने में मदद की और उन्हें यहा बसाने के लिए तमाम तरह की सुविधाएं और संसाधन उपलब्ध कराए. इसके साथ ही फिलिस्तीन और यहूदियों के बीच आधुनिक संघर्ष की शुरुआत हुई.

हिटलर के खौफ की वजह से फिलिस्तीन पहुंचे यहूदी
प्रथम विश्व युद्ध के बाद साल 1920 और 1945 के बीच यूरोप में बढ़ते उत्पीड़न और हिटलर की नाजियों के हाथों नरसंहार से बचने के लिए लाखों की संख्या में यहूदी फिलिस्तीन पहुंचने लगे. इलाके में यहूदियों की बढ़ती आबादी को देखकर फिलिस्तीनियों को अपने भविष्य की चिंता हुई और इसके बाद फिलिस्तीनियों और यहूदियों के बीच टकराव शुरू हो गया.

1933 में जर्मनी का सत्ता पर काबिज होने के बाद हिटलर ने यहूदियों का पूरी दुनिया से खात्मा करने की योजना पर अमल किया. 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध के आगाज के बाद हिटलर ने बड़े पैमाने पर यहूदियों को मौत के घाट उतरा. हिटलर ने एक योजना के तहत विश्व युद्ध के 6 साल के दौरान 60 लाख से ज्यादा यहूदियों को मौत के घाट उतारा था. जिसमें 15 लाख बच्चे शामिल थे. हिटलर ने पूरी दुनिया की एक तिहाई यहूदी आबादी को खत्म कर दिया था.

संयुक्त राष्ट्र ने कर दिया इलाके का बटवारा
दूसरे विश्व युद्ध के बाद फिलिस्तीन पर शासन कर रहे ब्रिटन के लिए दोनों गुटों के बीच संघर्ष को संभाल पाना मुश्किल हो गया. ऐसे में वो इस मामले को नवगठित संयुक्त राष्ट्र में ले गया. संयुक्त राष्ट्र ने 29 नवंबर, 1947 को द्विराष्ट सिद्धांत के तहत अपना फैसला सुनाया और इस इलाके को यहूदी और अरब देशों में बांट दिया. यरुशलम को अंतरराष्ट्रीय शहर घोषित किया गया. यहूदियों ने इस फैसले को तुरंत मान्यता दे दी और अरब देशों ने इसे स्वीकार नहीं किया. इसके बाद 1948 में अंग्रेज इस इलाके को छोड़कर चले गए और 14 मई, 1948 को यहूदियों का देश इजरायल वजूद में आया.

अरब देशों ने कर दिया इजरायल पर हमला
इजरायल के खुद के राष्ट्र घोषित करते हुए सीरिया, लीबिया और इराक ने इसपर हमला बोल दिया. इसी के साथ ही अरब-इजरायल युद्ध की शुरुआत हुई. सफदी अरब ने अपनी सेना युद्ध में भेजी और मिस्र की सहायता से इजरायल पर हमला किया. यमन भी युद्ध में शामिल हुआ. एक साल तक लड़ाई के चलने के बाद युद्ध विराम की घोषणा हुई. जॉर्डन और इजरायल के बीच सीमा का निर्धारण हुआ. जिसे ग्रीन लाइन नाम दिया गया. इस युद्ध के दौरान तकरीबन 70 हजार फिलिस्तीनी विस्थापित हुए. युद्ध के बाद 11 मई 1949 को इजरायल को संयुक्त राष्ट्र ने अपनी मान्यता दे दी.

1967 के युद्ध में किया गाजा और वेस्टबैंक पर कब्जा
1967 में एक बार फिर अरब देशों ने मिलकर इजरायल पर हमला किया. लेकिन इसबार इजरायल ने महज छह दिन में ही उन्हें हरा दिया और उनके कब्जे वाले वेस्ट बैंक, गाजा और पूर्वी यरुशलम पर कब्जा कर लिया. तब से लेकर अबतक इजरायल का इन इलाकों पर कब्जा है. यहां तक कि यरुशलम को वो अपनी राजधानी बताता है.

हालांकि गाजा के कुछ हिस्से को उसने फिलिस्तीनियों को वापस लोटा दिया है. वर्तमान में ज्यादातर फिलिस्तीनी गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक में रहते हैं. उनके और इजरायली सैन्य बलों के बीच संघर्ष होता रहता है.

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