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राजस्थान चुनाव में वो होगा, जो कभी नहीं हुआ:मोदी के सामने राहुल के बजाय गहलोत, ‘कांग्रेस सरकार’ नहीं अब ‘गहलोत सरकार’ का नारा


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राजस्थान चुनाव में वो होगा, जो कभी नहीं हुआ:मोदी के सामने राहुल के बजाय गहलोत, ‘कांग्रेस सरकार’ नहीं अब ‘गहलोत सरकार’ का नारा

राजस्थान चुनाव में वो होगा, जो कभी नहीं हुआ:मोदी के सामने राहुल के बजाय गहलोत, ‘कांग्रेस सरकार’ नहीं अब ‘गहलोत सरकार’ का नारा

राजस्थान में इस बार होने वाले विधानसभा चुनाव साल 2013 और 2018 के चुनावों से अलग हैं। ये चुनाव तीन मायनों में अलग हैं…

  • पिछले दोनों चुनावों में राहुल गांधी लीड कर रहे थे, लेकिन इस बार खुद मुख्यमंत्री गहलोत फ्रंट फुट पर खेल रहे हैं।
  • 2013 और 2018 के चुनाव वसुंधरा V/S गहलोत थे, लेकिन इस बार मोदी V/S गहलोत का नरेटिव बन रहा है।
  • पिछले दोनों चुनाव में कांग्रेस का नारा ‘कांग्रेस सरकार’ था, इस बार ये नारा ‘गहलोत सरकार’ है।

ये तीनों ही बदलाव अचानक नहीं हैं। इसके पीछे हैं दोनों पार्टियों की सोची समझी रणनीति।

स्पेशल रिपोर्ट में पढ़िए इन बदलावों के मायने और सियासी असर…

इस साल अब तक मोदी राजस्थान में 8 सभाएं कर चुके हैं, वहीं राहुल गांधी सिर्फ 3 बार आए हैं।
इस साल अब तक मोदी राजस्थान में 8 सभाएं कर चुके हैं, वहीं राहुल गांधी सिर्फ 3 बार आए हैं।

पहले समझिए गहलोत के फ्रंट फुट पर खेलने की वजह…

भाजपा : मोदी 8 बार आ चुके, शाह-नड्‌डा की भी सभाएं

राजस्थान में बीजेपी ने स्थानीय नेताओं के साथ केंद्रीय मंत्रियों को भी फील्ड में उतार रखा है। प्रधानमंत्री मोदी साल में आठ बार राजस्थान आ चुके हैं।

बीजेपी की परिवर्तन यात्राओं में राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से लेकर 10 से ज्यादा केंद्रीय मंत्री आए।

केंद्रीय मंत्री लगातार दौरे और सभाएं कर रहे हैं। जेपी नड्डा लगातार दौरे पर आकर सभाएं और बैठकें कर रहे हैं।

कांग्रेस : राहुल 3 ही बार आए, खड़गे-प्रियंका 1-1 बार आए

कांग्रेस में अब तक राहुल गांधी की तीन, राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और प्रियंका गांधी की एक-एक सभा हुई है। सचिन पायलट ने अपने स्तर पर कुछ सभाएं की है।

लेकिन गहलोत अब तक 100 सभाएं कर चुके

सीएम अशोक गहलोत बजट पेश करने के बाद से ही चुनावी मोड में आ गए थे। बजट के बाद से गहलोत ने जिलों के दौरे शुरू कर दिए थे।

बजट में फ्री मोबाइल सहित कई लोकलुभावन घोषणाएं करने के बाद बजट पास होने वाले दिन नए जिलों की घोषणाएं करके सियासी नरेटिव को बदलने का प्रयास किया। इससे सियासी चर्चाओं का रुख अलग दिशा में चला गया।

अब तक गहलोत करीब 100 सभाएं कर चुके हैं।

अब समझिए कैसे बना मोदी V/S गहलोत का नरेटिव

चेहरा घोषित नहीं किया, मोदी कह चुके कमल ही चेहरा

बीजेपी ने 2003 से लेकर पिछले चुनावों तक चेहरा घोषित करके चुनाव लड़ा। ऐसे में लड़ाई वसुंधरा राजे वर्सेज अशोक गहलोत या वसुंधरा राजे वर्सेज कांग्रेस रही। इस बार बीजेपी सामूहिक लीडरशिप पर चुनाव लड़ने जा रही है।

पीएम नरेंद्र मोदी घोषणा कर चुके हैं कि कमल ही चेहरा है। इससे साफ जाहिर है कि चुनाव में राजस्थान का कोई कोई एक नेता चेहरा नहीं होगा। पीएम मोदी का चेहरा होगा, बाकी नेता साइड रोल में होंगे।

राजस्थान के नेता को चेहरा घोषित नहीं करने से चुनाव में अभी मोदी वर्सेज गहलोत नरेटिव नजर आने लगा है।

मोदी ने आक्रामक शैली में गहलोत पर हमले किए

पीएम नरेंद्र मोदी इस साल में अब तक राजस्थान में आठ सभाएं कर चुके हैं। हर सभा में पीएम मोदी ने सीएम अशोक गहलोत का नाम लेकर उनकी सरकार पर जमकर हमले किए।

पीएम मोदी ने गहलोत-पायलट के झगड़े, पेपरलीक, करप्शन से लेकर लाल डायरी का मुद्दा उठाते हुए गहलोत पर हर सभा में सियासी हमले किए।

पीएम मोदी के हमलों के बाद बीजेपी भी उसी ताकत से सियासी हमले करने लगी। पीएम के गहलोत को निशाने पर लेने के बाद सियासी नरेटिव पीएम वर्सेज सीएम का बन गया।

दोनों के बीच लगातार चल रही जुबानी जंग…

गहलोत का वार- हमारी योजनाएं बंद नहीं करने की गारंटी दें मोदी

जयपुर में मिशन 2030 के जनसंवाद कार्यक्रम में 27 सितंबर को सीएम अशोक गहलोत ने कहा- प्रधानमंत्री अगली बार राजस्थान आए तो यह गारंटी दें कि अगर आपकी सरकार आएगी तो हमारी कोई भी योजना बंद नहीं होगी।

अभी गारंटी दीजिए कि OPS रहेगा। हमने 25 लाख का बीमा किया, वह रहेगा। हमने कानून बनाए हैं वे रहेंगे, मोदी इसकी गारंटी दें तब उन्हें राजस्थान आकर कैंपेन करने का अधिकार होगा।

मोदी का पलटवार- गहलोत ने मान लिया, उनकी सरकार जा रही है

चित्तौड़गढ़ की सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीएम गहलोत पर तंज कसते हुए कहा-दिल्ली में बैठे कुछ लोगों को भरोसा नहीं हो रहा है लेकिन मैं कह रहा हूं कि गहलोत सरकार जा रही है।

गहलोत खुद कह रहे हैं कि भाजपा सरकार आते ही कांग्रेस सरकार की योजनाओं को बंद कर देगी।

मैं जनता को विश्वास दिलाता हूं कि किसी भी योजना को बंद नहीं करेंगे। इसके बजाय उन योजनाओं को और अच्छा करेंगे। जिन्होंने गरीबों के पैसे लूटे हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई जरूर होगी।

गहलोत का कटाक्ष- आपके ऊपर कौन विश्वास कर सकता है

सीएम अशोक गहलोत ने 3 अक्टूबर को पीएम नरेंद्र मोदी पर पलटवार करते हुए कहा कि हम चार साल से लगातार प्रधानमंत्री को लिख रहे हैं, उस पर तो कुछ बोले नहीं।

आपने गोलमाल कह दिया कि वेलफेयर स्कीमों को हम लागू रखेंगे। आपकी वेलफेयर स्कीम्स की परिभाषा क्या है?

गहलोत ने पीएम से कहा- आपके ऊपर कौन विश्वास कर सकता है कि आप जो कह रहे हो, लागू होगा? पहले केंद्र में लागू करो, तब हम मानेंगे कि वास्तव में आपने किस रूप में बात कही है।

मैंने प्रधानमंत्री से कहा था कि आप गारंटी दो कि सरकार बनने पर हमारी योजनाओं को बरकरार रखोगे। आप वादा निभाने की गारंटी दें, लेकिन प्रधानमंत्री ने गोलमाल जवाब दिया।

आपने यह नहीं कहा कि मैं ओपीएस को लागू करूंगा। आपने यह नहीं कहा कि मैं यहां की सरकार जो 25 लाख का बीमा दे रही है, उसे लागू रखूंगा। आपने यह नहीं कहा कि राजस्थान में जो हजार रुपए पेंशन दे रहे हैं कि मैं सोशल सिक्योरिटी एक्ट बनाऊंगा।

चुनाव मोदी वर्सेज गहलोत होने के सियासी मायने…

बीजेपी के लिए रिस्क फैक्टर ज्यादा

बीजेपी ने जिन राज्यों में चेहरा घोषित करके चुनाव नहीं लड़ा, वहां पीएम का चेहरा रहा। पश्चिमी बंगाल, बिहार, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश में एक स्थानीय चेहरा सामने नहीं रखा था।

पीएम वर्सेज सीएम का चुनाव करने में रिस्क बीजेपी को ज्यादा है। चुनाव में अगर बीजेपी के पक्ष में नतीजे नहीं आते हैं तो प्रधानमंत्री का चेहरा दांव पर होता है और ऐसे में विपक्ष को घेरने का मौका मिलता है।

कर्नाटक, बंगाल और हिमाचल में ऐसा हो चुका है। हालांकि बीजेपी ने मुद्दे को अलग दिशा में मोड़कर हार की जिम्मेदारी दूसरे नेताओं पर डाल दी, लेकिन रिस्क फैक्टर से इनकार नहीं किया जा सकता।

गहलोत के लिए चुनौती और अवसर दोनों

पीएम वर्सेज सीएम चुनाव होने पर सीएम अशोक गहलोत के लिए बड़ी चुनौती होगी। राजस्थान में कांग्रेस सरकार को लेकर जिस आक्रामक अंदाज में मोदी विफलताओं के मुद्दे उठाकर नरेटिव बना रहे हैं। उसका मुकाबला करना बड़ी चुनौती है।

हालांकि गहलोत भी मोदी के उठाए मुद्दों पर धारदार पलटवार कर रहे हैं। चुनाव पीएम वर्सेज सीएम होने में गहलोत के लिए कद बढ़ाने का अवसर भी है और सियासी रिस्क फैक्टर भी कम है।

चुनाव के नतीजे अगर पक्ष में रहते हैं तो गहलोत का कद बहुत बढ़ जाएगा और उन्हें य​ह कहने का मौका मिल जाएगा कि उन्होंने रणनीति के मोर्चे पर पीएम को हरा दिया।

चुनाव परिणाम पक्ष में नहीं रहने पर यह कहने के लिए रहेगा कि उनकी लड़ाई देश के प्रधानमंत्री और बड़ी मशरीनरी से थी।

तुलना की जाए तो मोदी वर्सेज गहलोत की नरेटिव वाली जंग में भाजपा का रिस्क फैक्टर ज्यादा है। वहीं गहलोत के लिए चुनौती और अवसर दोनों हैं।
तुलना की जाए तो मोदी वर्सेज गहलोत की नरेटिव वाली जंग में भाजपा का रिस्क फैक्टर ज्यादा है। वहीं गहलोत के लिए चुनौती और अवसर दोनों हैं।

अब समझिए ‘गहलोत सरकार’ नारे के पीछे की रणनीति…

पहली बार योजनाओं और सीएम की आक्रामक ब्रांडिंग

सीएम अशोक गहलोत की सरकार में इस बार प्रचार का तरीका एकदम बदला हुआ है। गहलोत ने इस बार अपने सरकार के काम की आक्रामक ब्रांडिंग की है।

सरकार और खुद की इमेज बिल्डिंग और आक्रामक ब्रांडिंग के लिए प्रोफेशनल एजेंसी की सेवाएं ली है। गहलोत की योजनाओं के प्रचार प्रसार का काम प्रोफेशनल एजेंसी को दिया गया है।

इस बार राजस्थान मॉडल का जुमला गढ़ा गया। सीएम अशोक गहलोत भी राजस्थान मॉडल की बात बार बार कहते हैं। इस बार सीएम की सभाओं और कार्यक्रमों में एक ही तरह की थीम और डिजाइन नजर आती है।

प्रचार संभाल रही एजेंसी ने दिया सुझाव

इस बार सभाओं में और नारों में कांग्रेस सरकार की जगह गहलोत सरकार का नरेटिव गढ़ा गया है। प्रोफेशनल एजेंसी की छवि बनाने की रणनीति के तहत ही ऐसा किया गया है।

प्रचार का काम संभालने वाली एजेंसी ने सुझाव दिया कि पार्टी की जगह सरकार के चेहरे की ब्रांडिंग करने से ज्यादा फायदा होता है। इसी का नतीजा है कि इस बार कांग्रेस का प्रचार अब तक कम दिख रहा है।

बैनर-पोस्टरों में सीएम अशोक गहलोत ही नजर आ रहे हैं। सभाओं में लगने वाले नारों में भी इसका असर साफ दिख रहा है।

चौथी बार गहलोत सरकार के नारे कई सभाओं में लग रहे हैं जबकि अब तक कांग्रेस सरकार के नारे ही लगाया करते थे।

अलग-अलग योजनाओं और उपलब्धियों के पोस्टर पर गौर किया जाए तो कांग्रेस की ओर से पार्टी के बजाय गहलोत के चेहरे की ही ज्यादा ब्रांडिंग की जा रही है।
अलग-अलग योजनाओं और उपलब्धियों के पोस्टर पर गौर किया जाए तो कांग्रेस की ओर से पार्टी के बजाय गहलोत के चेहरे की ही ज्यादा ब्रांडिंग की जा रही है।

कांग्रेस—बीजेपी के लिए मायने : चेहरों के आगे पार्टी दूसरे नंबर पर

चुनावों में चेहरों की चर्चा ज्यादा होने से पार्टियों की चर्चा दूसरे नंबर पर चली गई है। चुनाव भले ही कांग्रेस और बीजेपी के बीच हों लेकिन ब्रांडिंग चेहरों की हो रही है।

कांग्रेस में अंदरखाने इस बात को लेकर विरोध के सुर भी उठ रहे हैं कि सब जगह गहलोत सरकार का नरेटिव बनाने से पार्टी का नाम ही नहीं लिया जा रहा है।

राजनीतिक जानकारों के मूुताबिक बीजेपी कैडर बेस पार्टी होने के कारण उसके सामने अलग तरह के हालात हैं लेकिन कांग्रेस में केवल एक चेहरे पर चुनाव के नरेटिव से कई नेता खुश नहीं हैं।

रंधावा बोले- कांग्रेस हर मामले में बीजेपी से आगे, सब ए​कजुट

कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने कहा- कांग्रेस तो बीजेपी से बहुत आगे हैं। समय आने पर सब होगा। प्रधानमंत्री के चेहरे पर चुनाव लड़ना ही बीजेपी की हार है।

प्रधानमंत्री देश का होता है, अकेले राजस्थान का नहीं होता है। प्रधानमंत्री को अपना स्तर नहीं गिराना चाहिए।

हम सब एकजुट ​होकर प्रचार करेंगे। हमारी कैंपेन कमेटी बन चुकी हे। हमारा प्रचार चालू है। सरकार ने बेहतरीन काम किया है तो उसका प्रचार तो करेंगे ही।

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