मैं शराबियों से लड़ी…स्कूल बचाया, आज भारत की बेस्ट टीचर:आसिया पढ़ाने गईं तो जुआरियों ने जानलेवा हमला किया; आज राष्ट्रपति देंगी देश का सबसे बड़ा शिक्षक सम्मान

“साल 2016 की बात है। प्रमोशन मिलने के बाद मैं प्रिंसिपल बनकर अस्ती गांव के प्राइमरी स्कूल पहुंची। मैंने गेट खोला…अंदर की हालत देख चौंक गई। जगह-जगह शराब की बोतलें बिखरी थीं। क्लासरूम के सामने कचरे का ढेर, बच्चों के खेल के मैदान में जानवरों को बांधने के लिए खूंटे गड़े थे। वह जगह स्कूल कम तबेला ज्यादा लग रही थी।”
“पहले दिन सिर्फ 5 बच्चे स्कूल आए। उन में से एक ने बताया कि मैडम स्कूल बंद होने के बाद शराबी यहां जुआ खेलने आते हैं। महिलाएं यहीं पर कपड़े धोती हैं, फिर बाउंड्री पर सूखने के लिए डाल देती हैं। स्कूल की हालत इतनी जर्जर है कि लगता है छत अचानक हमारे ऊपर ही न गिर जाए। मैंने बच्चों को अपने पास बुलाया। बोला- मैं आपकी नई टीचर हूं। अब से स्कूल रोज खुलेगा…मैं आप सबको पढ़ाउंगी। मैंने यूं ही बच्चों से पूछा…अच्छा बताओ अपने प्रदेश का क्या नाम है? बच्चे ने जबाव दिया…’फतेहपुर’।”
“मैं स्कूल में इकलौती टीचर थी। बच्चों की हालत देख मुझे रोना आ गया। मैंने सोचा कि चाहे जो कुछ भी हो जाए मुझे यहां के लिए कुछ करना है। आज 6 साल बीत चुके हैं…स्कूल में 5 की जगह 250 बच्चे हैं। जिस विद्यालय में कभी शाम होते ही शराबियों की महफिलें सजती थीं। आज उसी स्कूल की टीचर को राष्ट्रपति पुरस्कार दे रही हैं।”
ये शब्द फतेहपुर जिले के प्राथमिक विद्यालय (अस्ती) की प्रिंसिपल आसिया फारुकी के हैं। आज शिक्षक दिवस पर आसिया को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू सम्मानित कर रही हैं। चलिए उनकी पूरी कहानी पर चलते हैं…

धमकी मिली- ‘चली जाओ वरना कभी स्कूल नहीं आ पाओगी’
प्राथमिक विद्यालय अस्ती में आसिया के आने से पहले भी कई अध्यापकों की पोस्टिंग हुई, लेकिन ज्यादा दिन तक कोई भी टिक नहीं सका। दरअसल, गांव के कुछ दबंग स्कूल की जमीन पर कब्जा करना चाहते थे। वह नहीं चाहते थे कि स्कूल में पढ़ाई हो और यहां कोई शिक्षक आए। शुरुआत में आसिया को भी गांव के दबंगों का गुस्सा झेलना पड़ा। एक दिन उन्हें स्कूल छोड़ने तक की धमकी मिल गई।
आसिया कहती हैं, “स्कूल की संपत्ति पर गुंडों और जुआरियों की नजर थी। वह आए दिन मुझे परेशान करने के लिए नए-नए तरीके खोजते रहते। कभी घर लौटते वक्त स्कूल के बाहर खड़ा मेरा स्कूटर पंचर मिलता। कभी मेरी गाड़ी का शीशा फोड़ दिया जाता। मैं किसी तरह स्कूल छोड़कर चली जाऊं, सिर्फ इसलिए मुझ पर हमले भी करवाए गए।”
“एक दिन तो बात हद से बाहर ही चली गई…मैं स्कूल आई ही थी कि मेरी नजर बाहर लगे नोटिस बोर्ड पर पड़ी। वहां चॉक से बड़े अक्षरों में लिखा था- चली जाओ वरना कभी स्कूल नहीं आ पाओगी। ये सब देखकर मैंने पुलिस की मदद ली। गांव में पुलिस आई तो शरारती तत्वों ने मुझे परेशान करना बंद कर दिया।”
सैलरी का आधा हिस्सा स्कूल में लगा दिया
आसिया स्कूल के शुरुआती दिनों को यादकर मुस्कराते हुए कहती हैं, “मैं जब स्कूल आई तो यहां कचरे के ढेर लगे हुए थे। दीवारें टूटी हुईं…जिनमें कई साल से पुताई तक नहीं हुई थी। यहां मेरे अलावा कोई दूसरा टीचर नहीं था। इसलिए मैंने फैसला लिया कि सैलरी का आधा हिस्सा स्कूल के सुधार कार्य में लगाउंगी।”
“मैंने सबसे पहले स्कूल में साफ-साफाई करवाई। विद्यालय की मरम्मत से लेकर रंगाई-पुताई और कचरे के ढेर को हटवाया। बाहर से माली को बुलवाकर विद्यालय के मैदान की जुताई करवाई और यहां पर नया प्लेइंग एरिया और गार्डन बनवाया। मेरी मेहनत देखकर गांव के कुछ लोगों ने मुझे सपोर्ट किया। इससे बच्चों की संख्या भी बढ़ने लगी।”

“ज्यादा से ज्यादा बच्चे स्कूल आएं…इसलिए मैंने गांव में जाकर जागरूकता अभियान चलाया। नए-नए इनोवेटिव तरीकों से बच्चों को पढ़ाई से जोड़ा। स्कूल में एक लाइब्रेरी भी बनवाई है जिसमें बेसिक शिक्षा से लेकर स्नातक तक की किताबें मौजूद हैं। इन बदलावों का धीरे-धीरे असर दिखना शुरू हुआ। सिर्फ लड़के ही नहीं लड़कियों के नामांकन में भी जबरदस्त बढ़ोतरी हुई। लड़कियों का एडमिशन रेट साल 2016-17 में 15.1% से बढ़कर 2021-22 में 46.7% हो गया। जब मैं यहां आई थी तब सिर्फ 7 बच्चे थे, आज विद्यालय में 250 बच्चे हैं और यह संख्या लगातार बढ़ रही है।”
छोटे बच्चों के लिए समर कैंप-फैशन शो, बड़े निकालते हैं स्कूल मैगजीन
स्कूल अच्छा चल रहा था। कई गांवों से बच्चे आने लगे थे। इसलिए आसिया ने नए तरीकों से बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। आसिया कहती हैं, “हमारे स्कूल में फन लर्निंग के साथ बच्चों के स्किल डेवलपमेंट पर जोर दिया जाता है। सुबह की प्रार्थना से लेकर छात्रों की इनडोर एक्टिविटी पर खास फोकस किया जाता है। स्कूल में पढ़ने वाले छोटे बच्चों के लिए समय-समय पर समर कैंप, फैशन शो, पर्सनैलिटी डेवलपमेंट और पेंटिग कॉम्पिटिशन भी होता है।”
“स्कूल के बड़े बच्चे हर साल अपनी मैगजीन ‘अस्ती की उड़ान’ निकालते हैं। इसमें बच्चों के लेख और कविताएं छापी जाती हैं। साल 2021 से हमने विद्यालय में एक नई पहल शुरू की, इसमें यहां के टॉपर बच्चों को पुरस्कार के रूप में साइकिल भी दी जाती है। इन्हीं सब बातों के कारण अभिभावकों का हमारे स्कूल के प्रति विश्वास बढ़ रहा है।”
- यहां रुकते हैं। आगे बढ़ने से पहले राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार पाने वाली आसिया से जुड़ा ये ग्राफिक देखिए…

स्कूल की डिसिप्लिन के लिए रखे गए 10 वॉलंटियर
आसिया कहती हैं, “मैं स्कूल की अकेली शिक्षक हूं। यहां न कोई अनुदेशक है और न ही शिक्षा मित्र। ऐसे में 250 बच्चों को संभालना मुश्किल काम था। इसे देखते हुए मैंने स्कूल में 10 वॉलेंटियर्स की एक टीम तैयार की है, जो मेरे साथ स्कूल में लगे रहते हैं। ये सभी लोग आस-पास के गांवों से हैं, जो खुद पढ़ने के साथ बच्चों को भी पढ़ाते हैं। इन्हें मैं हर महीने अपने वेतन से 10,000 हजार रुपए देती हूं।”
वॉलेंटियर्स की टीम के अलावा स्कूल में बच्चों और अभिभावकों की ‘ग्रीन आर्मी’ भी है। यह टीम स्कूल के गार्डन की रखवाली के साथ-साथ यहां की पोषण वाटिका में हरी सब्जियां और कई तरह के पेड़-पौधे भी उगाती है। विद्यालय में हर सप्ताह पर्यावरण की सुरक्षा पर खास कार्यक्रम होता है।
अंगूठा लगाने वाली महिलाएं अब अखबार पढ़ रहीं
प्राथमिक विद्यालय अस्ती जिस इलाके में है, वहां ज्यादातर महिलाएं पढ़ी-लिखी नहीं थी। साइन करने की जगह अंगूठा लगाती थीं। आसिया ने स्कूल के बच्चों के साथ इन महिलाओं के लिए भी साक्षरता कार्यक्रम चलाया। 36 साल की आसिया कहती हैं, “मैंने गांव की 100 महिलाओं के लिए साक्षरता पाठशाला शुरू की। इसमें हर दिन अक्षरों को मिलाकर पढ़ने और लिखने के बारे में बताया जाता। साथ ही महिलाओं की समस्याओं पर खुलकर बातचीत होती है। इस पाठशाला में आने वाली ज्यादातर महिलाएं अब रोज अखबार पढ़ती हैं। खुद बाजार जाकर सामान खरीदने लगी हैं। इन्हें अब हेल्पलाइन नंबर्स के बारे में भी पता है।”

आसिया ने अस्ती गांव की महिलाओं के लिए विशेष कैंप भी शुरू किए। इसमें सिलाई-कढ़ाई, डेकोरेटिव सामान बनाने और क्रोशिया की ट्रेनिंग दी जाती है। इन सब के अलावा गांव में नशा मुक्ति अभियान, क्लीन गांव कार्यक्रम और ओपन माइक जैसी गतिविधियां भी शुरू की गई हैं।
‘राष्ट्रपति सम्मान मिलने से जिम्मेदारी दोगुनी हो जाएगी’
हमने आसिया से पूछा कि राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित होना आपके लिए क्या मायने रखता है? जवाब में वह कहती हैं- “यह पुरस्कार मुझे नहीं बल्कि मेरे बच्चों को मिल रहा है। उनकी मेहनत और दुआंओं की बदौलत ही मैं इस काबिल बनी कि आज राष्ट्रपति जी के हाथों सम्मान मिल रहा है। इस पुरस्कार से अब हिम्मत दोगुनी हो गई है। मैं इसे अपने बच्चों और मुश्किल दौर में मेरी मदद के लिए खड़े लोगों को समर्पित करना चाहती हूं।”

आसिया 12वीं में थी, जब घरवालों ने उनका निकाह करवा दिया था। शादी के बाद उनके ससुराल वालों ने उन्हें ग्रेजुएशन और BTC करवाया। आसिया राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए अपने ससुराल वालों को भी धन्यवाद देती हैं, जिन्होंने हर कदम पर उनका पूरा साथ दिया। आखिर में वह अपने छात्रों के लिए ये पंक्तियां गुनगुनाती हैं…
पहुंचना है उन्हें चांद पर,नया आसमान अभी बाकी है।
नन्हें-मुन्ने बच्चों की नई उड़ान अभी बाकी है।।
- आसिया फारुकी की कहानी यहां खत्म होती है। अब शिक्षक दिवस पर राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार पाने वाले यूपी के 2 अध्यापकों के बारे में जान लीजिए…
बुलंदशहर के चंद्र प्रकाश ने स्कूल को बना डाला स्पेस लैब

राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार पाने वाले यूपी के दूसरे टीचर बुलंदशहर के शिवकुमार जनता इंटर कॉलेज के चंद्र प्रकाश अग्रवाल हैं। चंद्र प्रकाश का नाम तब सुर्खियों में आया जब उन्होंने अपने विद्यालय को जिले का पहला हाईटेक स्कूल बना दिया। कॉलेज में लड़कियों को निःशुल्क शिक्षा दी जाती है। साथ ही विद्यालय की अपनी वेबसाइट भी है।
चंद्र प्रकाश कहते हैं, “मेरी शुरुआती पढ़ाई इसी कॉलेज में हुई फिर 11 दिसम्बर 2011 में मैं यहां का प्रधानाचार्य बन गया। बचपन से ही विद्यालय मेरे लिए बहुत खास रहा है। मैंने यहां पढ़ने वाले बच्चों के लिए खासतौर पर शूटिंग रेंज और हाईटेक लाइब्रेरी बनवाई है। स्कूल का अपना मोबाइल एप भी है। इसके अलावा कॉलेज में साइंस स्टूडेंट्स के लिए ‘आर्यभट्ट खगोलीयशाला’ नाम की स्पेस लैब भी है। जहां बच्चों को खगोलीय शिक्षा के साथ प्रैक्टिकल साइंस के बारे में जानकारी मिलती है।”
बच्चों में मॉडर्न लर्निंग स्किल बढ़ाने के लिए सुधांशु होंगे सम्मानित
मेरठ के केएल इंटरनेशनल स्कूल के सुधांशु शेखर भी पुरस्कार के लिए चुने गए हैं। सुधांशु इकोनॉमिक्स के विशेषज्ञ हैं। साल 2013 से वह केएल इंटरनेशनल स्कूल में बतौर प्रिंसिपल कार्यरत हैं। साथ ही CBSE बोर्ड में सिटी कोऑर्डिनेटर भी हैं। सुधांशु को बच्चों में रोचक तरीके से लर्निंग स्किल्स डेवलप करने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार दिया जा रहा है।

सुधांशु कहते हैं,”मॉडर्न एजुकेशन के साथ-साथ आजकल बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और सोशल-इमोशनल लर्निंग पर फोकस करना बेहद जरूरी हो गया है। इसी को देखते हुए मैंने स्कूल के बच्चों को पढ़ाई में इंटरेस्ट जगाने के लिए नए-नए ऐक्सपैरिमैंट्स किए। इससे छात्रों की लेखन क्षमता में काफी सुधार आया। आज हमारे स्कूल के बच्चे किताबें लिख रहे हैं।”
- आइए अब राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार के बारे में जानते हैं…
