हरियाणा : कानूनी प्रक्रिया का पालन किये बिना नहीं चल सकता है बुलडोजर
कानूनी प्रक्रिया का पालन किये बिना नहीं चल सकता है बुलडोजर

प्रशासन और सरकार पर आरोप लगा कि हिंसा के बाद बिना वैध कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किए हुए अवैध और अतिक्रमण करार देकर हिंसा के कथित आरोपियो की सैकड़ों मकान, दुकान आदि पर बुलडोजर चला दिए गए। इस बुल्डोजर एक्शन को प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने के नाम पर चलाया। इसके कारण काफी संख्या में वे निर्दोष आम लोग भी प्रभावित हुए जिनका हिंसा से कोई लेना-देना नहीं था।
उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ था बुलडोजर एक्शन
हाईकोर्ट ने पूछा कि क्या एक खास समुदाय निशाने पर है?
समय – समय पर हाईकोर्ट ने लगाई है इस पर रोक
पटना हाईकोर्ट भी पटना शहर में बनी एक बस्ती पर चलाए जा रहे बुलडोजर को रोक चुका है। न्यायपालिका को उचित प्रक्रिया की पवित्रता को फिर से स्थापित करने के लिए कदम उठाना पड़ा है। गुवहाटी हाईकोर्ट ने नागांव में आगजनी के एक मामले में एक आरोपी के घर को तोड़ने से संबंधित एक मामले में चेतावनी दी थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि पुलिस “जांच की आड़ में” किसी के घर पर बुलडोजर नहीं चला सकती है। बिना अनुमति के, और अगर ऐसी प्रथाएं जारी रहीं तो “इस देश में कोई भी सुरक्षित नहीं है।
बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछे सवाल
उत्तर प्रदेश में बुलडोजर के बढ़ते उपयोग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं। बीते जुलाई में जमीयत उलेमा ए हिंद और वृंदा करात की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कई सवाल उठाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि क्या प्रशासन यह स्वीकार करने को तैयार है कि घरों पर बुलडोजर चलाना एक गलत कार्य है और ऐसी कार्रवाई करना बंद कर देगा। वहीं 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट कहा था कि वह आपराधिक मामलों में आरोपी व्यक्तियों के घरों को ध्वस्त करने के लिए बुलडोजर का उपयोग करने की वैधता पर कानून बनाने के लिए सितंबर में एक याचिका की जांच करेंगे। सुप्रीम कोर्ट में जमीयत-उलामी-ए-हिंद ने आरोप लगाया था कि मुसलमानों को विशेष रूप से निशाना बनाया जा रहा है।
आवास जीवन के अधिकार का एक अनिवार्य हिस्सा है
सुप्रीम कोर्ट अपने पूर्व के कई निर्णयों में कह चुका है कि बिना कानूनी प्रक्रियाओं को पूरा किए हुए किसी के घर या अन्य इमारतों को तोड़ना गलत है। इंडियन एक्सप्रेस की पांच दिसंबर 2022 की एक रिपोर्ट के मुताबिक ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (1985) मामले में, सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की बेंच ने फैसला सुनाया था कि आवास जीवन के अधिकार का एक अनिवार्य हिस्सा है।
नगरपालिका कानूनों को हथियार बनाती है सरकार
विभिन्न राज्य सरकारें अतिक्रमण के आरोपी लोगों को निशाना बनाने के लिए नगरपालिका कानूनों को हथियार बनाती हैं। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि पहले जो शहरी आवास की समस्या थी, वह सांप्रदायिक राजनीति के साथ जुड़ गई है। देश के कई हिस्सों में अवैध अतिक्रमण अब जिला प्रशासन के लिए प्रदर्शनकारियों या दंगाई होने के आरोपियों को दंडित करने का एक बहाना बन गया है। जो अधिकतर एक ही समुदाय से संबंध रखते हैं। इससे समाज के एक तबके में भय और अविश्वास का माहौल बन रहा है। बुलडोजर एक्शन में अक्सर ही निर्दोषों के प्रभावित होने की आशंका रहती है। कई लोग आरोप लगाते हैं कि इस तरह के एक्शन से अपराध के आरोपियों के निर्दोष परिवार जनों को भी परेशानी और आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है।