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UCC: समान नागरिक संहिता की क्यों हो रही चर्चा, संविधान इस पर क्या कहता है, इसके लागू होने से क्या बदलेगा?


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UCC: समान नागरिक संहिता की क्यों हो रही चर्चा, संविधान इस पर क्या कहता है, इसके लागू होने से क्या बदलेगा?

समान नागरिक संहिता का अर्थ होता है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। समान नागरिक संहिता लागू होने से सभी धर्मों का एक कानून होगा। शादी, तलाक, गोद लेने और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा।

विधि आयोग ने बुधवार को समान नागरिक संहिता (UCC) के मसले पर नए सिरे से परामर्श मांगने की प्रक्रिया शुरू की है। आयोग ने आम लोगों और धार्मिक संगठनों से इस मुद्दे पर राय मांगी है।  विधि आयोग के इस कदम के बाद समान नागरिक संहिता का मुद्दा फिर से चर्चा में आ गया है।

आखिर समान नागरिक संहिता क्या है? संविधान इस पर क्या कहता है? इसका इतिहास क्या है? नागरिक कानून आपराधिक कानून से कैसे अलग होता है? समान नागरिक संहिता से क्या बदलेगा? समान नागरिक संहिता पर बहस क्या हो रही है? आइये जानते हैं…

UCC: Uniform civil code constitutional provision and effects after its implementation

यूनिफॉर्म सिविल कोड की बैठक
क्या पहली बार इसे लेकर राय मांगी गई है?
कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रितु राय अवस्थी के अगुवाई वाले विधि आयोग ने समान नागिरक संहिता के लिए दोबारा से राय मांगी है। आयोग ने बुधवार को सार्वजनिक नोटिस जारी किया है। इससे पहले 21वें विधि आयोग ने UCC पर लोगों और हितधारकों से 7 अक्तूबर, 2016 को राय मांगी थी। 19 मार्च, 2018 और 27 मार्च, 2018 को फिर से इसे दोहराया गया था।
इसके बाद 31 अगस्त, 2018 को विधि आयोग ने नागरिक कानून के सुधार के लिए सिफारिश की थी। चूंकि पिछली राय को तीन साल से ज्यादा वक्त बीच चुका है। ऐसे में विषय की गंभीरता और कोर्ट के आदेशों को देखते हुए 22वें विधि आयोग ने इस विषय पर फिर से राय लेने का फैसला किया है।
UCC: Uniform civil code constitutional provision and effects after its implementation
यूनिफॉर्म सिविल कोड ड्राफ्ट कमेटी की बैठक
समान नागरिक संहिता क्या है?
समान नागरिक संहिता का अर्थ होता है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। समान नागरिक संहिता लागू होने से सभी धर्मों का एक कानून होगा। शादी, तलाक, गोद लेने और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा।

यह मुद्दा कई दशकों से राजनीतिक बहस के केंद्र में रहा है। UCC केंद्र की मौजूदा सत्ताधारी भाजपा के लिए जनसंघ के जमाने से प्राथमिकता वाला एजेंडा रहा है।  भाजपा सत्ता में आने पर UCC को लागू करने का वादा करने वाली पहली पार्टी थी और यह मुद्दा उसके 2019 के लोकसभा चुनाव घोषणापत्र का भी हिस्सा था।

UCC: Uniform civil code constitutional provision and effects after its implementation
बाबा भीम राव अम्बेड़कर
संविधान इस पर क्या कहता है?
देश में संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता को लेकर प्रावधान है। इसमें कहा गया है कि राज्य इसे लागू कर सकता है। इसका उद्देश्य धर्म के आधार पर किसी भी वर्ग विशेष के साथ होने वाले भेदभाव या पक्षपात को खत्म करना और देशभर में विविध सांस्कृतिक समूहों के बीच सामंजस्य स्थापित करना था। संविधान निर्माता डॉ. बीआर आम्बेडकर ने कहा था कि UCC जरूरी है लेकिन फिलहाल यह स्वैच्छिक रहना चाहिए।
संविधान के मसौदे के अनुच्छेद 35 को भारत के संविधान के भाग IV में अनुच्छेद 44 के रूप में राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों के हिस्से के रूप में जोड़ा गया था। इसे संविधान में इस नजरिए के रूप में शामिल किया गया था जो तब पूरा होगा जब राष्ट्र इसे स्वीकार करने के लिए तैयार होगा और UCC को सामाजिक स्वीकृति दी जा सकती है।
UCC: Uniform civil code constitutional provision and effects after its implementation
Uniform Civil Code
इसका इतिहास क्या है?
UCC की उत्पत्ति औपनिवेशिक भारत में हुई जब ब्रिटिश सरकार ने 1835 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट में अपराधों, सबूतों और अनुबंधों से संबंधित भारतीय कानूनों की एकरूपता की आवश्यकता पर जोर दिया गया था। विशेष रूप से इसमें यह सिफारिश की गई थी कि हिंदुओं और मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों (पर्सनल लॉ) को  इस तरह के संहिताकरण के बाहर रखा जाए।

ब्रिटिश सरकार को 1941 में हिंदू कानून को संहिताबद्ध करने के लिए बी एन राव समिति बनाई।  समिति ने शास्त्रों के अनुसार, एक संहिताबद्ध हिंदू कानून की सिफारिश की, जो महिलाओं को समान अधिकार देगा। इसके साथ ही समिति ने हिंदुओं के लिए विवाह और उत्तराधिकार के मुद्दों में भी नागरिक संहिता की सिफारिश की।

हिंदू कोड बिल क्या है?
राव समिति की रिपोर्ट का प्रारूप बी आर आम्बेडकर की अध्यक्षता वाली चयन समिति को सौंपा गया था। यह प्रारूप 1951 में संविधान को अपनाने के बाद चर्चा के लिए आया। चर्चा के बीच ही हिंदू कोड बिल समाप्त हो गया और 1952 में दोबारा प्रस्तुत किया गया। बिल को 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के रूप में अपनाया गया ताकि हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के बीच वसीयत या उत्तराधिकार से संबंधित कानून को संशोधित और संहिताबद्ध किया जा सके। अधिनियम ने हिंदू व्यक्तिगत कानून में सुधार किया और महिलाओं को अधिक संपत्ति अधिकार और मालिकाना हक दिया। इसने महिलाओं को उनके पिता की संपत्ति में संपत्ति का अधिकार दिया।
UCC: Uniform civil code constitutional provision and effects after its implementation
Uniform civil code
नागरिक कानून और आपराधिक कानून के बीच अंतर क्या होता है? 
भारत में आपराधिक कानून समान हैं और सभी पर समान रूप से लागू होते हैं, चाहे उनकी धार्मिक मान्यताएं कुछ भी हों। वहीं, दूसरी ओर नागरिक कानून धार्मिक मूल्यों से प्रभावित होते हैं। दीवानी मामलों में लागू होने वाले व्यक्तिगत कानूनों को हमेशा धार्मिक ग्रंथों के आधार पर संवैधानिक मानदंडों के अनुसार लागू किया गया है।

समान नागरिक संहिता क्या करेगी?
UCC लागू होने पर हिंदू कोड बिल, शरीयत कानून, विशेष विवाह अधिनियम जैसे कानूनों की जगह लेगा।  समान नागरिक कानून तब सभी नागरिकों पर लागू होगा चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। इसके समर्थकों का तर्क है कि यह लैंगिक समानता की बढ़ावा देने, धर्म के आधार पर भेदभाव की कम करने और कानूनी प्रणाली की सरल बनाने में मदद करेगा। वहीं, दूसरी ओर विरोधियों का कहना है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करेगा और व्यक्तिगत कानूनों को प्रत्येक धार्मिक समुदाय के विवेक पर छोड़ देना चाहिए।
UCC: Uniform civil code constitutional provision and effects after its implementation
अमित शाह और पीएम मोदी
इस पर केंद्र का क्या रुख है?
केंद्र ने पिछले साल समान नागरिक संहिता पर उच्चतम न्यायालय में अपने हलफनामे में कहा था कि विभिन्न धर्मों और सम्प्रदायों के लोग अलग-अलग संपत्ति और वैवाहिक कानूनों का पालन करते हैं जो ‘देश की एकता के खिलाफ’ है। अक्टूबर 2022 में एक याचिका के जवाब में दायर हलफनामे में केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय ने कहा था कि अनुच्छेद 44 (यूसीसी) संविधान की प्रस्तावना में निहित धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य के उद्देश्य को मजबूत करता है। मंत्रालय ने शीर्ष अदालत में कहा था कि विषय वस्तु के महत्व और इसमें शामिल संवेदनशीलता को देखते हुए विभिन्न समुदायों को नियंत्रित करने वाले विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों के प्रावधानों के गहन अध्ययन की आवश्यकता है। इसके साथ ही केंद्र ने भारत के विधि आयोग से UCC से संबंधित मुद्दे की जांच करने और उनकी सिफारिश करने का अनुरोध किया था।

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