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देश को 50 फीसदी तांबा देने वाली खेतड़ी माइंस,अब बेदम:लगातार घट रहा प्रोडक्शन, कभी 10 हजार कर्मचारी काम करते थे 500 ही रह गए


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देश को 50 फीसदी तांबा देने वाली खेतड़ी माइंस,अब बेदम:लगातार घट रहा प्रोडक्शन, कभी 10 हजार कर्मचारी काम करते थे 500 ही रह गए

देश को 50 फीसदी तांबा देने वाली खेतड़ी माइंस,अब बेदम:लगातार घट रहा प्रोडक्शन, कभी 10 हजार कर्मचारी काम करते थे 500 ही रह गए

खेतड़ी नगर : राजस्थान की अरावली पर्वतमाला की सुनहरी पहाड़ियों में बसा खेतड़ी इलाका अपने भीतर तांबे का अपार भंडार समेटे हुए है। झुंझुनूं जिले के खेतड़ी और आसपास के क्षेत्र को ताम्र नगरी कहा जाता है, क्योंकि देश के कुल तांबा उत्पादन का करीब 50 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं पहाड़ियों से निकलता है। इस क्षेत्र में खनन कार्य भारत सरकार के उपक्रम हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल) द्वारा किया जाता है। खेतड़ी की खदानों को खेतड़ी कॉपर कॉर्पोरेशन (केसीसी) के नाम से जाना जाता है।

देश की सबसे गहरी तांबे की खदानें

खेतड़ी और कोलिहान क्षेत्र में करीब 324 किलोमीटर के दायरे में 300 से अधिक भूमिगत खदानें फैली हैं। यहां समुद्र तल से लगभग 102 मीटर नीचे तक तांबा निकाला जाता है, जो इसे देश की सबसे बड़ी और सबसे गहरी तांबे की माइंस बनाता है। खेतड़ी से निकला तांबा उच्च गुणवत्ता वाला होता है और लंदन मेटल एक्सचेंज की ए-ग्रेड में शामिल है। इसी कारण देश में सुरक्षा उपकरणों के निर्माण में इसी तांबे का उपयोग किया जाता है।

समय के साथ मशीनरी कबाड़ में तब्दील हो रही हैं।
समय के साथ मशीनरी कबाड़ में तब्दील हो रही हैं।

एशिया की तांबा नगरी से थी पहचान

खेतड़ी की धरती को कभी एशिया का तांबा नगरी कहा जाता था। हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड का केसीसी प्लांट कभी भारत की सामरिक और औद्योगिक जरूरतों को पूरा करता था। लेकिन आज यह उद्योग अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। जहां पहले रोजाना लगभग 6 हजार टन तांबा उत्पादन होता था, अब मुश्किल से 4 हजार टन निकल पा रहा है। कर्मचारियों की संख्या भी 10 हजार से घटकर सिर्फ 500 रह गई है।

तांबा बाहर, रोजगार भी बाहर

झुंझुनूं की पहाड़ियों में इतना तांबा है कि अगले 50 साल तक खनन जारी रह सकता है, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि यहां से निकला तांबा अब गुजरात और विदेशों में रिफाइनिंग के लिए भेजा जाता है। 2008 तक यही कार्य खेतड़ी के प्लांट में होता था, जहां 99.99 प्रतिशत शुद्ध तांबा तैयार किया जाता था। स्थानीय लोगों और श्रमिक संघों का कहना है कि यदि सरकार ध्यान दे, तो खेतड़ी और आसपास के क्षेत्रों में तांबा आधारित उद्योग खड़े हो सकते हैं। इससे बर्तन, तार, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और मशीनरी जैसे उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा और हजारों युवाओं को रोजगार मिल सकेगा।

पानी की कमी की वजह से केसीसी के पांच में से अब केवल दो प्लांट ही चालू हैं।
पानी की कमी की वजह से केसीसी के पांच में से अब केवल दो प्लांट ही चालू हैं।

पानी की कमी से सूखा उद्योग

केसीसी के पांच में से अब केवल दो प्लांट ही चालू हैं, जबकि स्मेल्टर, रिफाइनरी और फर्टिलाइज़र प्लांट बंद हो चुके हैं। मुख्य वजह रही पानी की भारी कमी। पहले चंवरा से पाइपलाइन द्वारा पानी लाया जाता था, लेकिन अवैध छीजत और सरकारी लापरवाही के कारण आपूर्ति धीरे-धीरे कम होती गई। कुंभाराम नहर से भी पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा, जिसके चलते कई इकाइयाँ बंद करनी पड़ीं।

खदानें अब भी समृद्ध, लेकिन काम ठप

खेतड़ी, कोलिहान और चांदमारी की पहाड़ियां आज भी तांबे से भरपूर हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि खेतड़ी से लेकर सीकर के रघुनाथगढ़ तक तांबे का अथाह भंडार फैला है। इतना ही नहीं, इस अयस्क में से सोना भी निकलता है। पहले रिफाइनरी से निकलने वाले वेस्ट मटेरियल से करोड़ों रुपए का सोना प्राप्त होता था, लेकिन रिफाइनरी बंद होने के बाद यह प्रक्रिया भी ठप हो गई।

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