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7-बच्चों की चिता ठंडी नहीं हुई, मंत्री स्वागत में लगे:भरतपुर में बैंड-बाजों से स्वागत करवाया, मालाएं पहनीं; पूछा तो बोले-माला पहने 36 साल हो गए


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7-बच्चों की चिता ठंडी नहीं हुई, मंत्री स्वागत में लगे:भरतपुर में बैंड-बाजों से स्वागत करवाया, मालाएं पहनीं; पूछा तो बोले-माला पहने 36 साल हो गए

7-बच्चों की चिता ठंडी नहीं हुई, मंत्री स्वागत में लगे:भरतपुर में बैंड-बाजों से स्वागत करवाया, मालाएं पहनीं; पूछा तो बोले-माला पहने 36 साल हो गए

भरतपुर : एक तरफ झालावाड़ में स्कूल की छत गिरने से जान गंवाने वाले 7 मासूमों की चिता जल रही थी, तो दूसरी तरफ भरतपुर में शिक्षा मंत्री मदन दिलावर बैंड बाजों के साथ अपना स्वागत करवा रहे थे, उन पर गुलाब की पंखुड़ियां बरस रही थीं। झालावाड़ दुखांतिका के महज 30 घंटे बाद शिक्षा मंत्री मदन दिलावर की इस संवेदनहीनता ने पूरे राजस्थान को झकझोर दिया है। शनिवार सुबह जब वे भरतपुर के जघीना पहुंचे, तो कार्यकर्ताओं ने उनके स्वागत में ढोल नगाड़े बजाए। मदन दिलावर जिंदाबाद के नारे लगाए।

जैसे ही शिक्षा मंत्री कार से उतरे उन्हें ग्रामीणों-आयोजकों ने बुके भेंट किया, 51 किलो फूलों की माला पहनाई। शिक्षा मंत्री ने मुस्कुराकर स्वीकार भी कर लिया, लेकिन किसी को मना तक नहीं किया। राजस्थान के इतिहास में स्कूली बच्चों से जुड़ी सबसे बड़ी त्रासदी पर शिक्षा मंत्री के इस रवैये ने साबित कर दिया कि सिर्फ स्कूल की इमारतें ही नहीं, पूरा सिस्टम जर्जर हो चुका है।

3 तस्वीरों में देखिए शिक्षा मंत्री की संवेदनहीनता…

ये 3 तस्वीरें 3 सवाल भी खड़े करती हैं?

  1. अब अगर कोई बच्चा स्कूल जाए, तो परिवार को उसकी जान की जिम्मेदारी खुद उठानी होगी?
  2. हजारों स्कूलों की इस समस्या की ओर ध्यान देने का सरकार का कोई इरादा नहीं है?
  3. शिक्षा मंत्री का माला और मंच वाला उत्सव इस बात की भी घोषणा करता है कि यह हादसा भी बाकी हादसों की तरह जल्द भुला दिया जाएगा?

पूछा तो बोले मंत्री- मैं माला नहीं पहनता

जब मीडिया ने दिलावर से पूछा कि इतना बड़ा हादसा हुआ और मंत्रीजी स्वागत सम्मान करवा रहे हैं? इस पर मदन दिलावर ने कहा कि मैंने स्वागत सम्मान कहीं नहीं करवाया। आप जानते हैं कि मैं माला कभी नहीं पहनता हूं। ये घटना हुई उससे पहले से ही नहीं पहनता हूं। मुझे 36 साल हो गए माला पहने और किसी ने दिया तो मैंने मना कर दिया।

वहीं जब स्कूलों को मिलने वाले बजट पर उनसे सवाल पूछा गया तो शिक्षा मंत्री ने कहा- रुपए पहुंचे रहे हैं। ये सरकारी प्रोसेस होता है, टेंडर होता है। ये कोई घर का काम तो है नहीं कि जेब से पैसे निकाल कर दे दो।

हम इस घटना की विस्तृत जांच करवा रहे हैं। जांच में जिस तरह के तथ्य आएंगे। उसके बाद कठोर कार्रवाई की जाएगी। मैंने नैतिकता के आधार पर घटना की जिम्मेदारी ली है। हमने अधिकारियों से जर्जर स्कूलों की लिस्ट मांगी थी। हमारे पास जर्जर स्कूलों की सूची आई उसमें झालावाड़ के स्कूल का नाम नहीं था।

मरम्मत के लिए 80 करोड़ रुपए दिए

शिक्षा मंत्री ने कहा कि पिछली बार मरम्मत के लिए 80 करोड़ रुपए दिए और इस बार भी 80 करोड़ रुपए दिए थे। इस बार 175 करोड़ की स्वीकृतियां जारी हो रही हैं। हमने 2 हजार स्कूलों का चयन करके उसके लिए पैसे दे दिए हैं।

उन्होंने कहा कि यह सरकारी प्रोसेस है, जिसमें टेंडर भी होते हैं और सरकारी प्रोसेस पूरा होता है। यह कोई घर का काम नहीं है जो जेब से निकालकर दे दो और आधी रात को काम चालू कर दें। फिर भी हम कोशिश कर रहे हैं, जो पैसा दिया वह समय पर वहां लग जाए।

शिक्षामंत्री जी! ये गलत बात है

झालावाड़ में स्कूल की छत गिरने के 30 घंटे बाद ही शिक्षामंत्री मदन दिलावर ने जिस तरह अपना स्वागत करवाया, उसे देखकर लगता है नेताओं और मंत्रियों में संवेदनाएं खत्म ही हो गई हैं। एक तरफ बच्चों की चिताएं जले और दूसरी तरफ मंत्री का स्वागत करे ऐसा राजस्थान तो नहीं है हमारा। और इसके बाद सफेद झूठ भी।

दिलावर से पूछा गया कि इतना बड़ा हादसा हो गया, और आप स्वागत करवा रहे हैं? तो उनका कहना था कि उन्होंने तो पिछले कई सालों से अपना स्वागत करवाया ही नहीं।

फोटो और वीडियो चीख-चीख कर गवाही दे रहे हैं कि भरतपुर में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने बहुत ही भव्य तरीके से स्वागत करवाया, लेकिन पता नहीं कैसे झूठ बोल देते हैं।

साथ में खुद ही स्वीकार कर रहे हैं कि किसी ने कर दिया होगा?

आप मंत्री है, पहले से ही मना कर देते। हालांकि नेताओं से और क्या ही उम्मीद की जा सकती है? झालावाड़ के पिपलोदी गांव ही नहीं, आसपास के गांवों में दो दिन से चूल्हे नहीं जले, लेकिन नेताओं को देखकर लगता है सब कुछ सामान्य हो गया।

शिक्षा मंत्री दिलावर ने जब इस घटना की नैतिक जिम्मेदारी ली तो लगा शायद कुछ होगा? लेकिन दूसरे ही दिन जयकारे गूंजने लगे। मंत्रीजी, किसी का दुख और दर्द कम तो नहीं कर सकते,

कम से कम बढ़ाइए तो मत। पूरा राजस्थान बच्चों की मौत के बाद असहनीय दर्द में है, लेकिन इन ढोल नगाड़ों का शोर कान फाड़ रहा है। दुर्भाग्य है, हमारे देश में नेता हो या अफसर

सभी की संवेदनाएं लगातार मरती ही जा रही हैं। कल मौत के बाद नेताओं को दिखाने के लिए टूटी सड़क ठीक की जा रही थी और आज स्वागत कार्यक्रम हो रहे थे।

ये गलत बात है।

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