सरकारी विद्यालय की जर्जर छत : सुरक्षित विद्यालय, सशक्त भविष्य: ग्रामीण ढांचे में सुधार की पुकार
प्रधानमंत्री से पहल की अपेक्षा: गावो में गुणवत्तापूर्ण ढांचे पर हो प्राथमिकता से ध्यान -डॉ एन. पी.गांधी

सरकारी विद्यालय : हाल ही में राजस्थान के झालावाड़ जिले के पीपलोदी गाँव में एक सरकारी विद्यालय की जर्जर छत गिरने से सात मासूम बच्चों की दर्दनाक मौत और कई अन्य के घायल होने की खबर ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। यह दुर्घटना केवल एक स्थानीय घटना नहीं है, बल्कि यह हमारे देश में बुनियादी सार्वजनिक ढांचे की स्थिति का क्रूर सच उजागर करती है।
इस हादसे ने न केवल स्कूल भवन की जर्जर स्थिति को उजागर किया, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही को भी सामने लाया। स्थानीय लोगों ने बताया कि उन्होंने तहसीलदार और उप-विभागीय अधिकारियों को पहले ही स्कूल भवन की हालत से अवगत कराया था, फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह केवल एक तकनीकी चूक नहीं, बल्कि व्यवस्था की असंवेदनशीलता है।
हम देश को विश्वगुरु बनाने की बात करते हैं, नई शिक्षा नीति लागू कर रहे हैं, लेकिन उस नींव पर ध्यान नहीं दे रहे जहाँ से यह शिक्षा शुरू होती है विद्यालय भवन। क्या ऐसी जर्जर और असुरक्षित संरचनाओं में बच्चे सुरक्षित रह सकते हैं? क्या सिर्फ पाठ्यक्रम बदल देने से हम शिक्षा में सुधार ला सकते हैं, यदि मूलभूत संरचना ही कमजोर हो?सरकारी भवनों की दशा और नीति की दिशा भी चिंताजनक है। देशभर के लाखों सरकारी स्कूल, अस्पताल, आंगनवाड़ी केंद्र, सामुदायिक भवन आदि जर्जर स्थिति में हैं। कई स्कूलों में शौचालय नहीं हैं, पीने का पानी उपलब्ध नहीं है और बिजली की आपूर्ति अस्थायी है।
यदि हम वाकई विकसित राष्ट्र बनना चाहते हैं तो बुनियादी ढांचे की अनदेखी करना आत्मघाती होगा।अब समय है जमीनी स्तर पर ठोस कार्य करने का। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं: भवन सुरक्षा ऑडिट: हर जिले में सभी सरकारी भवनों का सुरक्षा ऑडिट अनिवार्य किया जाए।इंफ्रास्ट्रक्चर फंड: स्कूल और अस्पतालों के पुनर्निर्माण के लिए विशेष राज्य और केंद्र स्तर पर फंड बनाया जाए।स्थानीय भागीदारी: ग्राम पंचायतों, स्थानीय संस्थाओं, समाजसेवियों, एनजीओ और सीएसआर भागीदारों को सक्रिय रूप से जोड़ा जाए।आपदा तैयारी: बाढ़, भूकंप, बारिश आदि आपदाओं को ध्यान में रखकर भवनों की बनावट हो और स्थानीय प्रशासन को प्रशिक्षित किया जाए।
शिक्षा में निवेश: डिजिटल शिक्षा के साथ-साथ भवन निर्माण, सुरक्षा उपायों, फर्नीचर, बिजली और जल आपूर्ति पर विशेष ध्यान दिया जाए।समाज की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। देश के हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह केवल घटनाओं पर दुख न जताए, बल्कि बदलाव की पहल करे। शिक्षकों, अभिभावकों, युवाओं, समाजसेवकों और उद्योगपतियों को मिलकर यह तय करना होगा कि अब शिक्षा का ढांचा मज़बूत हो।विकास का सही अर्थ भी समझना होगा।
विकास का मतलब केवल चमचमाती सड़कें और ऊँची इमारतें नहीं होता। विकास वह होता है जिसमें अंतिम पंक्ति में खड़ा नागरिक भी गरिमा के साथ जीवन जी सके। गाँवों में जब तक शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, पेयजल और आवागमन की समुचित व्यवस्था नहीं होगी, तब तक ‘विकसित भारत’ एक अधूरी कल्पना ही रहेगा।अब समय है – स्मार्ट सिटी के साथ-साथ स्मार्ट गांव, सुरक्षित विद्यालय, और सशक्त प्रशासन की सोच विकसित करने का। हम केवल संवेदनाएं व्यक्त न करें, बल्कि एक ऐसी व्यवस्था बनाएं जहाँ हर बच्चा सुरक्षित, सम्मानित और समान अवसरों के साथ बड़ा हो सके। शाइनिंग इंडिया तभी संभव है जब हर विद्यालय की दीवार मजबूत हो, हर बच्चे की मुस्कान सुरक्षित हो, और हर माता-पिता को यह भरोसा हो कि उनका बच्चा स्कूल से कभी खाली हाथ नहीं, बल्कि उज्जवल भविष्य लेकर लौटेगा।
✍️डॉ नयन प्रकाश गांधी, युवा मैनेजमेंट विश्लेषक एवं सामाजिक विचारक