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नांद गांव में असामाजिक गतिविधियों से त्रस्त:ग्रामीणों ने कलेक्ट्रेट पहुंचकर सौंपा ज्ञापन, बावरिया समाज को हटाने की मांग


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नांद गांव में असामाजिक गतिविधियों से त्रस्त:ग्रामीणों ने कलेक्ट्रेट पहुंचकर सौंपा ज्ञापन, बावरिया समाज को हटाने की मांग

नांद गांव में असामाजिक गतिविधियों से त्रस्त:ग्रामीणों ने कलेक्ट्रेट पहुंचकर सौंपा ज्ञापन, बावरिया समाज को हटाने की मांग

झुंझुनू : जिले की ग्राम पंचायत नांद के अंतर्गत आने वाले गांव नांद व नांद का बास में बीते कुछ दिनों से बावरिया जाति के अस्थायी डेरों और उनकी गतिविधियों से ग्रामीणों का जीना दुश्वार हो गया है। लगातार बढ़ते असामाजिक व्यवहार, शिकार, खेतों में चराई और उत्पीड़न के चलते ग्रामीणों का सब्र का बांध टूट गया। सोमवार को सैकड़ों ग्रामीणों ने झुंझुनूं कलेक्ट्रेट परिसर में प्रदर्शन कर बावरिया जाति के लोगों को गांव से निष्कासित करने की मांग को लेकर जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा।

प्रदर्शन में शामिल ग्रामीणों का आरोप है कि बावरिया जाति के कुछ लोग पिछले करीब 20 दिनों से नांद व नांद का बास की सीमा में डेरा डाले हुए हैं। ये लोग न केवल खेतों में खुलेआम अपने मवेशी छोड़कर फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि जानबूझकर खेतों में मवेशियों को चराने भेजते हैं। जब ग्रामीण इसका विरोध करते हैं, तो उन्हें डराया-धमकाया जाता है और मारपीट तक की नौबत आ जाती है।

आम रास्ते पर डेरा, दिन में निकलना भी मुश्किल

ग्रामीणों ने बताया कि इन लोगों ने गांव के पास भीमसर-झुंझुनूं मार्ग, जो एक सार्वजनिक रास्ता है, के ठीक किनारे डेरा डाल रखा है। हालत ये है कि रात तो दूर, दिन में भी उस रास्ते से गुजरना जोखिम भरा हो गया है। महिलाएं और स्कूली बच्चे वहां से गुजरने से डरते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि देर रात तक इन डेरों में शराब और मांस पार्टी होती है, जिसमें खुलेआम शिकार किए गए पक्षियों जैसे तीतर, खरगोश आदि का सेवन किया जाता है। ट्रैक्टर और गाड़ियों के काफिलों के साथ वहां जमावड़ा लगा रहता है।

शिकायत के बावजूद नहीं हुई स्थायी कार्रवाई

प्रदर्शन कर रहे ग्रामीणों ने बताया कि इस संबंध में पूर्व में धनूरी थाना पुलिस को भी शिकायत दी गई थी। पुलिस ने कार्रवाई करते हुए कुछ असामाजिक तत्वों को हिरासत में भी लिया और कुछ वाहनों को जब्त किया, लेकिन यह कार्रवाई स्थायी समाधान नहीं बन सकी। अब भी वहीं डेरा लगा हुआ है और लोगों का उत्पीड़न जारी है।

महिलाएं बोलीं – अब घर से निकलना भी मुश्किल

नांद गांव की पीड़ित महिला ने बताया, “20 दिन से बावरिया समुदाय के लोग हमारे घर के बाहर डेरा जमाए बैठे हैं। घर से बाहर निकलते ही आवारा कुत्ते पीछे पड़ जाते हैं, खेतों में हमारे सामने रेवड़ें चरा दी जाती हैं। विरोध करने पर गाली-गलौज और धमकियां दी जाती हैं। बच्चों को स्कूल भेजने में डर लगता है। हमारा जीना मुश्किल हो गया है। हम प्रशासन से मांग करते हैं कि इन बावरिया लोगों को तत्काल यहां से हटाया जाए।”

ग्रामीण बोले – गांव का माहौल बिगाड़ रहे हैं

गांव के ही निवासी जगदीश सिंह शेखावत ने बताया, “नांद गांव में बावरिया समाज के कुछ लोग डेरा डालकर बसने लगे हैं। इनके कारण गांव में अराजकता फैल रही है। हमारे बच्चों का आना-जाना गांव के बीच से होता है, लेकिन इन लोगों की गतिविधियों से पूरा गांव असहज महसूस कर रहा है। इनका यहां रहना न केवल सुरक्षा की दृष्टि से खतरा है, बल्कि सामाजिक समरसता में भी बाधा बनता जा रहा है।”

प्रदर्शन में एकजुट हुए ग्रामीण, कलेक्टर से की निष्कासन की मांग

प्रदर्शन के दौरान ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से जिला प्रशासन से मांग की कि नांद व नांद का बास की सीमा में बसे बावरिया समुदाय के अस्थायी डेरों को तुरंत हटाया जाए और उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए। ग्रामीणों ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि समय रहते प्रशासन ने कार्रवाई नहीं की तो वे बड़े स्तर पर आंदोलन के लिए मजबूर होंगे।

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