दुनिया से खत्म होते घड़ियाल, कोटा में अंडे दे रहे,VIDEO:न इंसानी शिकार न जानवरों के लिए खतरा, राजस्थान में चंबल नदी इनकी फेवरेट
दुनिया से खत्म होते घड़ियाल, कोटा में अंडे दे रहे,VIDEO:न इंसानी शिकार न जानवरों के लिए खतरा, राजस्थान में चंबल नदी इनकी फेवरेट

कोटा : घड़ियाल..जिनकी तुलना आमतौर पर मगरमच्छ से की जाती है, लेकिन हैं ये उनसे बिल्कुल अलग। दुनिया में केवल कुछ एशियन कंट्रीज में मिलने वाले इस जीव की साइटिंग अब दुर्लभ होती जा रही है। दरअसल, पूरी दुनिया में अब घड़ियाल की संख्या 2500 के करीब ही रह गई है। इनमें से 80 फीसदी घड़ियाल इंडिया में हैं। कोटा (राजस्थान) में चंबल नदी का एरिया इनकी फेवरेट जगह है। इन दिनों इस दुर्लभ जीव का प्रजनन काल है और नन्हे घड़ियालों को अंडे से बाहर निकलते देखने बहुत ही रोचक घटना है।
सबसे पहले देखिए- नन्हे घड़ियालों का दुनिया की पहली झलक देखने का VIDEO

चंबल घड़ियाल सेंचुरी में अंडे देती हैं मादा
राजस्थान की चंबल नदी में इन दिनों नन्हे घड़ियालों की अठखेलियां नजर आ रही हैं। चंबल घड़ियाल सेंचुरी में नए मेहमानों का आना शुरू हो गया है।
इस बार 15 से ज्यादा मादा घड़ियालों ने 25 घरौंदे बनाकर अंडे दिए थे। 40 से 45 अंडों में से बच्चे बाहर आ चुके हैं और नदी में तैरने लगे हैं। बता दें कि एक मादा घड़ियाल 30 से 50 के करीब अंडे दे सकती है।
मादा घड़ियाल के प्रजनन का समय मार्च महीना होता है। इससे पहले मिट्टी में घरौंदा बनाती है। अंडे देने के बाद 2 महीने तक घरौंदे में ही अंडे को रखती है। इसके बाद अंडे से बच्चे निकलकर पानी में जाते हैं।
जमीन में 2-3 फीट अंदर जाकर अंडे देती मादा घड़ियाल
नाका प्रभारी बुधराम जाट ने बताया- मादा घड़ियाल मिट्टी और रेत के मिश्रण में ही अंडे देती है। इससे पहले टापू पर 2-3 फीट गड्डा खोदकर घरौंदा बनाती है। घरौंदे में अंडे देती है ताकि वे सुरक्षित रहे। उनका कोई शिकार नहीं कर सकें। मादा घड़ियाल खुद अंडों की सुरक्षा करती है। मौसम के अनुसार इनके अंडे पकते हैं। अंदर से नमी और ऊपर से धूप रहती है। मार्च से मई महीने तक अंडे घरौंदों में ही रहते हैं।
अंडे से बच्चों को निकालकर पानी में लेकर जाती
20 मई से लेकर 20 जून के बीच मिट्टी के अंदर दबे घड़ियाल के अंडों से बच्चे निकलना शुरू हो जाते हैं। 20 मई के बाद अंडों से आवाज आना शुरू हो जाती है। इसे सुनकर 90 फीसदी मादा खुद अंडे फोड़कर धीरे-धीरे बच्चों को बाहर निकालती हैं। फिर अपने साथ पानी में ले जाती है। कुछ अंडे फूट नहीं पाते तो अंडे के अंदर से बच्चे कॉल (चिल्लाना, शोर करना) करते हैं।
उन अंडों से विभाग की टीम बच्चों को बाहर निकालती है। बच्चों के सेल्फ डिपेंड होने के बाद बच्चों से दूर हो जाती है। यह बच्चे पानी में छोटी मछली कीड़े खाते हैं। इस बार भी मादा घड़ियाल ने बच्चे दिए है। वन विभाग के दो जवान सुबह-शाम इस टापू पर जाकर पहरा दे रहे हैं।
क्यों जग रही एक नई उम्मीद?
कोटा के इटावा रेंज क्षेत्र में गुड़ला गांव में चंबल नदी और पार्वती नदी का संगम है। यहां चंबल घड़ियाल सेंचुरी बनी हुई है। पिछले कुछ सालों में इनकी संख्या में इजाफा नहीं हो रहा था। ये प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर थी। अब नन्हे घड़ियाल नई उम्मीद जगा रहे हैं कि आने वाले सालों में ये जीव विलुप्त नहीं होगा। डीएफओ अरविंद कुमार झा ने बताया- इटावा रेंज पर चंबल नदी के पास बने टापू पर मादा घड़ियालों से अब धीरे-धीरे बच्चे निकल रहे हैं। इस प्रजाति को दोबारा से संरक्षण कर रहे हैं।

वन विभाग की टीम नए मेहमानों की मॉनिटरिंग कर रही
चंबल के नए मेहमानों की सुरक्षा के लिए फॉरेस्ट विभाग की टीम ने तार फेंसिंग की है और लगातार मॉनिटरिंग की जा रही है। बागली के नाका प्रभारी बुधराम जाट उनकी देखरेख करते हैं। नए घड़ियाल की मॉनिटरिंग के लिए सवाई माधोपुर पाली घाट का स्टाफ भी मदद लेता हैं।

घड़ियाल सिर्फ राजस्थान में चंबल नदी में पाए जाते हैं
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट आदिल सैफ ने बताया- घड़ियाल सिर्फ राजस्थान में चंबल नदी में पाए जाते हैं। चंबल नदी ही ब्रीडिंग हब बना हुआ है। यहीं पर सबसे ज्यादा घड़ियाल ब्रीड करते है। इस जीव का एक समय पर विलुप्त हो जाना अवैध खनन भी माना जाता है। डैम के बन जाने से भी इस जीव का हैबिटेट कोटा रावतभाटा, गांधी सागर के बीच का जो एरिया था उसमें बांध बन जाने के कारण यह डूब क्षेत्र में आ गया था।
अब यह सीमित रह गए है सिर्फ धौलपुर,पाली घाट सवाई माधोपुर, यूपी और कोटा, गुड़ला के आसपास मगरमच्छ की तुलना में यह ज्यादा सेंसिटिव होते हैं। अब इनकी संख्या चंबल में बढ़ रही है।
भारत और नेपाल में ही बचे घड़ियाल
प्रकृति और दुर्लभ जंतुओं के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (ICUN) ने घड़ियाल को रेड लिस्ट में रखा है। इस लिस्ट में वो जीव रखे जाते हैं जो विलुप्त होने की कगार पर हैं। एक्सपर्ट के अनुसार दुनिया में अब केवल भारत और नेपाल में घड़ियाल देखे जा सकते हैं। भारत में इनकी संख्या करीब 2400 के करीब है। इंडिया में भी कोटा में चंबल के एरिया और मध्य प्रदेश में इनकी संख्या सबसे ज्यादा है।