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जनसेवा को समर्पित थे स्वर्गीय आर. आर. मोरारका


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जनसेवा को समर्पित थे स्वर्गीय आर. आर. मोरारका

शेखावाटी के विकास पुरुष की प्रेरक गाथा

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : रविन्द्र पारीक

नवलगढ़ : देशभक्ति, सामाजिक सेवा और औद्योगिक नेतृत्व का दुर्लभ संगम थे झुंझुनूं के प्रथम सांसद, अमर जननेता और प्रसिद्ध उद्योगपति स्वर्गीय राधेश्यामजी मोरारका। उन्होंने न केवल क्षेत्रीय विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि अपने संपूर्ण जीवन को समाजसेवा और राष्ट्रनिर्माण के कार्यों के लिए समर्पित कर दिया।

स्वर्गीय मोरारका का जन्म 26 मार्च 1923 को नवलगढ़ में हुआ था। आरंभिक शिक्षा के बाद वे मुंबई विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने गए, जहां वे स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गए। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ जैसे आंदोलनों में भाग लेकर उन्होंने आजादी के संघर्ष में सक्रिय भूमिका निभाई।

स्वभाव से सरल, विचारों से ऊँचे और कार्यों से जनसेवक, मोरारका ने 1952 में झुंझुनूं से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में पदार्पण किया। जनता के बीच अपार लोकप्रियता के चलते वे लगातार तीन बार लोकसभा सदस्य चुने गए और 1967 तक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। इसके बाद वे 1978 से 1984 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे। इस दौरान वे कई महत्वपूर्ण संसदीय समितियों में सम्मिलित रहे और अनेक विधेयकों के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाई।

उनकी सोच केवल राजनीतिक सीमाओं तक सीमित नहीं रही, उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और ढांचागत विकास के क्षेत्रों में समाजसेवा को अपना लक्ष्य बनाया। उन्होंने कई समाजसेवी संस्थानों की स्थापना की, जो आज भी निर्धन और जरूरतमंद लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में लगे हुए हैं।

स्वर्गीय मोरारका का सपना था कि शेखावाटी क्षेत्र भारत के आर्थिक और सांस्कृतिक नक्शे पर प्रमुखता से उभरे। औद्योगिक गतिविधियों में व्यस्त रहते हुए भी वे नियमित रूप से शेखावाटी आते, जनता से जुड़ाव बनाए रखते और सरकारों पर प्रभाव डालकर क्षेत्र के विकास को गति देते।

आज उनके सुपुत्र गौतम राधेश्याम मोरारका ‘सेवाज्योति’ जैसे संगठन और अपने माता-पिता की स्मृति में स्थापित दो न्यासों के माध्यम से इस महान परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। ये संगठन आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य और सेवा के क्षेत्र में समर्पित भाव से कार्य कर रहे हैं।

स्वर्गीय मोरारका की जीवन-यात्रा भारतीय राजनीति और समाजसेवा के इतिहास में एक प्रेरणास्रोत है। उन्होंने यह साबित किया कि उद्योगपति होते हुए भी एक व्यक्ति सादा जीवन जीकर, ऊँचे विचारों और जनसेवा के पथ पर अग्रसर रह सकता है।

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