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झुंझुनूं में वन्यजीव रेस्क्यू सिस्टम बेहाल:संसाधनों की कमी से खतरे में जान और जनसुरक्षा, जयपुर से टीम पहुंचने में होती है घंटों की देरी


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झुंझुनूं में वन्यजीव रेस्क्यू सिस्टम बेहाल:संसाधनों की कमी से खतरे में जान और जनसुरक्षा, जयपुर से टीम पहुंचने में होती है घंटों की देरी

झुंझुनूं में वन्यजीव रेस्क्यू सिस्टम बेहाल:संसाधनों की कमी से खतरे में जान और जनसुरक्षा, जयपुर से टीम पहुंचने में होती है घंटों की देरी

झुंझुनूं : अरावली की गोद में बसे झुंझुनूं जिले में प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ वन्य जीवों की भी अच्छी खासी संख्या है। यहां दो जंगलों में काफी संख्या में लेपर्ड हैं, लेकिन वन्य जीवों के रेस्क्यू के लिए आवश्यक संसाधनों की भारी कमी चिंता का विषय बनी हुई है। हाल ही में बुडानिया धत्तरवाला गांव में एक लेपर्ड द्वारा किसान और उसकी बहू पर हमला करने की घटना ने वन विभाग की तैयारियों की पोल खोल दी है। जिले में ट्रेंकुलाइजर गन जैसी बुनियादी सुविधा भी उपलब्ध नहीं है, जिसके चलते रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए जयपुर से टीम बुलानी पड़ती है, जिसमें घंटों का समय लग जाता है और तब तक खतरा बढ़ता रहता है।

झुंझुनूं जिले में लगभग 405 वर्ग किलोमीटर में वन क्षेत्र फैला हुआ है। उदयपुरवाटी के मनसा पहाड़ और खेतड़ी के बांसियाल क्षेत्र में दो लेपर्ड मौजूद हैं। बावजूद इसके, वन्य जीवों को पकड़ने और उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के लिए जिले के वन विभाग के पास जरूरी उपकरण और प्रशिक्षित कर्मचारी नहीं हैं। सबसे बड़ी कमी ट्रेंकुलाइजर गन की है, जो खतरनाक जानवरों को बेहोश करने के लिए अत्यंत आवश्यक है।

खतरे में जान और जनसुरक्षा

जंगलों के आसपास के गांवों में वन्य जीवों का भटक कर आबादी वाले क्षेत्रों में आना अब आम बात हो गई है। मंड्रेला क्षेत्र के धत्तरवाल और जाखोड़ा गांव में पैंथर के घुस आने से ग्रामीणों में दहशत फैल गई थी। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए जयपुर से वन्य जीव चिकित्सक और ट्रेंकुलाइजर गन मंगवाई गई।

लेकिन, रेस्क्यू टीम के पहुंचने से पहले ही लेपर्ड ने किसान और उसकी पुत्र वधू पर हमला कर दिया। यह घटना स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि यदि जिले में पर्याप्त संसाधन होते तो स्थिति को समय रहते नियंत्रित किया जा सकता था।

क्या होती है ट्रेंकुलाइजर गन

ट्रेंकुलाइजर गन, जिसे कैप्चर गन या डार्ट गन भी कहते हैं, एक विशेष प्रकार का हथियार है। इसमें एक नुकीली सुई वाली गोली का इस्तेमाल होता है। इस गोली में नशीला रसायन भरा होता है, जो जानवर के शरीर में प्रवेश करते ही उसे कुछ मिनटों में बेहोश कर देता है। इस गन का उपयोग वन्य जीवों को बिना किसी चोट के सुरक्षित रूप से पकड़ने के लिए किया जाता है।

ये हैं कमियां..

  • संसाधनों की भारी कमी- झुंझुनूं वन विभाग के पास न तो ट्रेंकुलाइजर गन है, न ही इसे चलाने के लिए प्रशिक्षित वनकर्मी और न ही वन्य जीवों के रेस्क्यू के लिए कोई विशेष वाहन उपलब्ध है। वन्य जीव बहुल क्षेत्र होने के बावजूद इन बुनियादी संसाधनों की कमी गंभीर चिंता का विषय है।
  • जयपुर से आती है गन, बढ़ता है खतरा- जिले के दूरस्थ वन क्षेत्र, जैसे खेतड़ी और उदयपुरवाटी के पैंथर सफारी क्षेत्र, जयपुर से काफी दूरी पर स्थित हैं। किसी भी वन्य जीव के रेस्क्यू की स्थिति में ट्रेंकुलाइजर गन को जयपुर से मंगवाना पड़ता है, जिसमें 6 से 7 घंटे तक का समय लग जाता है। इस देरी के कारण जानवर और अधिक आक्रामक हो सकता है और स्थानीय लोगों की जान खतरे में पड़ सकती है। बुडानिया धत्तरवाला की घटना इसका जीता जागता उदाहरण है, जहां समय पर संसाधन उपलब्ध न होने के कारण स्थिति बेकाबू हो गई थी।

पत्र लिखकर की गई है मांग

वन विभाग अब हरकत में आया है और उच्चाधिकारियों को पत्र लिखकर झुंझुनूं जिले के लिए स्थायी ट्रेंकुलाइजर गन, प्रशिक्षित गन ऑपरेटर, विशेष रेस्क्यू वाहन और वन्य जीव चिकित्सक की नियुक्ति की मांग की है। उप वन संरक्षक उदाराम सिवोल ने बताया कि विभाग आगामी बजट में इन आवश्यक संसाधनों को शामिल करने की योजना बना रहा है।

इसके अलावा, जिले में एक स्थायी पशु चिकित्सक की नियुक्ति के प्रयास भी किए जा रहे हैं, ताकि भविष्य में रेस्क्यू कार्यों में किसी भी तरह की देरी से बचा जा सके।

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