एडवोकेट भांजे की शादी में भरा 21.11 करोड़ का मायरा:100 गाड़ियों में पहुंचा मामा का परिवार; 1.51 करोड़ कैश, गहने, जमीन और पेट्रोल पंप दिया
एडवोकेट भांजे की शादी में भरा 21.11 करोड़ का मायरा:100 गाड़ियों में पहुंचा मामा का परिवार; 1.51 करोड़ कैश, गहने, जमीन और पेट्रोल पंप दिया

नागौर : नागौर में एडवोकेट, बैंक मैनेजर और ठेकेदार भाइयों ने अपने एडवोकेट भांजे की शादी में 21 करोड़ 11 लाख रुपए का मायरा भरा। 4 भाइयों और 2 भतीजों ने 4 सूटकेस में 1 करोड़ 51 लाख रुपए कैश दिए। इसके अलावा 1 किलो सोने और 15 किलो चांदी की ज्वेलरी, 210 बीघा जमीन, एक पेट्रोल पंप और अजमेर में एक प्लॉट भी दिया। मायरा भरने वाले पोटलिया परिवार के 600-700 लोग करीब 100 गाड़ियों और 4 बसों में सवार होकर बहन के घर नागौर पहुंचे, जहां उनका जोरदार स्वागत किया गया। ग्रामीणों ने मायरे की रकम को अभी तक जिले में सर्वाधिक बताया।

4 सूटकेस में कैश और सोने-चांदी के गहने लेकर पहुंचे
नागौर की जायल तहसील के झाड़ेली गांव निवासी पोटलिया परिवार रविवार को भांजे एडवोकेट श्रेयांश निवासी डेह की शादी में मायरा भरने नागौर पहुंचा, जहां छाबा परिवार ने गाजे-बाजे के साथ उनका स्वागत किया। मायरा में दूल्हे के नाना जायल के पूर्व उप प्रधान और एडवोकेट भंवरलाल पोटलिया, मामा एडवोकेट हनुमान पोटलिया, कर्नल रामचंद्र पोटलिया, एसबीआई बैंक मैनेजर चैनेंद्र पोटलिया, ठेकेदार सुरेश पोटलिया और मामा स्व. नरपत पोटलिया के बेटे डॉ. कर्ण पोटलिया और वंश पोटलिया समेत पोटलिया परिवार के अनेक लोग शामिल थे।
पोटलिया परिवार 4 सूटकेस में कैश रुपयों के साथ ही सोना-चांदी के जेवर लेकर पहुंचा और बहन के मायरा भरा। चार भाइयों के बहनोई जगवीर छाबा भाजपा में प्रदेश महामंत्री रह चुके हैं। मायरे की रस्म के दौरान भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष और हरियाणा भाजपा प्रभारी डॉ. सतीश पूनिया भी मौजूद रहे।

क्या होता है मायरा
बहन के बच्चों की शादी होने पर ननिहाल पक्ष की ओर से मायरा भरा जाता है। इसे भात भी कहते हैं। इस रस्म में ननिहाल पक्ष की ओर से बहन के बच्चों के लिए कपड़े, गहने, रुपए और अन्य सामान दिया जाता है। इसमें बहन के ससुराल पक्ष के लोगों के लिए भी कपड़े और जेवरात आदि होते हैं।
ये है मान्यता
मायरा की शुरुआत नरसी भगत के जीवन से हुई थी। नरसी का जन्म गुजरात के जूनागढ़ में मुगल बादशाह हुमायूं के शासनकाल में हुआ था। नरसी जन्म से ही गूंगे-बहरे थे। उनके माता-पिता एक महामारी का शिकार हो गए थे। वे दादी के पास रहते थे। उनके भाई-भाभी भी थे। भाभी का स्वभाव कड़क था। एक संत की कृपा से नरसी की आवाज वापस आ गई थी। उनका बहरापन भी ठीक हो गया था। नरसी की शादी हुई, लेकिन पत्नी की मौत जल्दी ही हो गई। नरसी का दूसरा विवाह कराया गया था।
समय बीतने पर नरसी की बेटी नानीबाई का विवाह अंजार नगर में हुआ था। इधर, नरसी की भाभी ने उन्हें घर से निकाल दिया था। नरसी श्रीकृष्ण के अटूट भक्त थे। वे उन्हीं की भक्ति में लग गए थे। नरसी ने सांसारिक मोह त्याग दिया और संत बन गए थे।
उधर, नानीबाई ने बेटी को जन्म दिया और बेटी विवाह योग्य हो गई थी। उसके विवाह पर ननिहाल की तरफ से भात भरने की रस्म के चलते नरसी को सूचित किया गया था। नरसी के पास देने को कुछ नहीं था। उसने भाई-बंधु से मदद की गुहार लगाई। मदद तो दूर कोई भी चलने तक को तैयार नहीं हुआ था। अंत में टूटी-फूटी बैलगाड़ी लेकर नरसी खुद ही बेटी के ससुराल के लिए निकल पड़े थे। बताया जाता है कि उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण खुद भात भरने पहुंचे थे।