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ईदुलफ़ित्र- इन’-आम और शुक्राने का त्योहार है


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ईदुलफ़ित्र- इन’-आम और शुक्राने का त्योहार है

खुशी मनाओ की खुशी मनाने के लिए आई है ईद*करामत खान उर्दू अदीब

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : मोहम्मद अली पठान

चूरू : जिला मुख्यालय से ‌ इंसानियत एकता सेवा समिति के संस्थापक करामत खान उर्दू अदीब ने ईद की मुबारकबाद देते हुए कहा हर कौम और हर मजहब के कुछ ख़ास त्योहार और जश्न के दिन होते हैं, जिनमें उस कौम के लोग अपनी हैसियत के मुताबिक अच्छा लिबास पहनते हैं, और मुख्तलिफ किस्म का उम्दा और लज़ीज़ खाना पकाते हैं। इसी तरह और भी मुख्तलिफ तरीके से अपनी अंदरूनी खुशी और मसर्रत का इज़हार करते हैं। गोया यह इंसानी फितरत का एक तकाज़ा है। इसीलिए इंसानों का कोई तबका या कोई मजहब ऐसा नहीं है जिसके यहां त्योहार या जश्न के कुछ ख़ास दिन मुकर्रर न हों। मजहब-ए-इस्लाम में भी दो दिन खुशी और मसर्रत के रखे गए हैं, जिनमें एक ईदुलफ़ित्र का दिन है और दूसरा ईदुल अज़्हा का दिन। माह-ए रमजान के तीस रोज़े रखने के बाद शव्वाल माह की पहली तारीख को ईदुलफ़ित्र का यह त्योहार मनाया जाता है।

ईद का यह त्योहार अपनी एक निराली शान और बड़ी अज़मत रखता है। हमारा मुल्क एक जम्हूरी मुल्क है, यहां मनाए जाने वाले त्योहारों की तादाद बहुत ज़ियादा हैं। ईद का यह त्योहार भाई-चारे और मोहब्बत का त्योहार है। ईद लफ़्ज़ “औद” से है, जिसके मा’अना हैं लौटना और बार-बार आना। चूंकि यह मफ़हूम इस दिन के अंदर मौजूद है, इसलिए कि यह ईद का दिन हर साल माह-ए-शव्वाल की पहली तारीख को आता है। ईद का चांद दुनिया भर के मुसलमानों के लिए खुशी का पैगाम लेकर नमूदार होता है। दर अस्ल ईद एक शुक्राने का त्योहार है। ईद एक इन’आम का दिन है, उन तमाम लोगों के लिए जिन्होंने एक महीने के रोज़े रखे और इबादत की। ईद के दिन ख़ुदा तआला के इन’आमात बंदों पर आइद और मुकर्रर होते हैं। ईद का दिन मसर्रत और खुशी का पैगाम लेकर आता है। ईद के दिन हर शख्स को हस्ब-ए- हैसियत, इज़्ज़त-ओ-हुरमत का एहसास हर साल ताज़ा होता है।

अल्लाह तआला ने रमजान में जो अपने बंदों को खाने-पीने से रोक दिया था, ईद के बाइस उसका इन’आम यानी इफ्तार बंदों पर रुजू’अ करता है। ईद के त्योहार की तैयारियां ज़ियादा तर घरों में रमजान के महीने में ही शुरू हो जाती हैं। देर रात तक बाजार खुले रहते हैं, और लोग ज़रूरत के मुताबिक ईद की खरीदारी में मसरूफ रहते हैं। हर मुसलमान चाहे मर्द हो या औरत, छोटा हो या बड़ा, अमीर हो या ग़रीब गर्ज़ हर शख्स अपनी हैसियत के मुताबिक ईद की खुशी का इज़हार करने के लिए नए कपड़े बनवाता है और ईद के लिए दीगर सामान की खरीदारी करता है। बच्चों में ईद की खुशी और धूम कुछ ज़ियादा ही होती है। ईद के त्योहार पर चांद रात का दिन बड़ी अहमियत रखता है। मकानों की सफाई और सजावट के साथ-साथ बच्चे- बूढ़े, मर्द – औरत और अमीर – ग़रीब गर्ज़ हर मुसलमान में ईद के चांद को अपनी आंखों से देखने की लगन, खुशी, जज्बा और शौक होता है।

चांद देखने के बाद हर मुसलमान की खुशियां दो-बाला हो जाती हैं। सभी लोग एक दूसरे को ईद की मुबारकबाद देना शुरू कर देते हैं। ईद की सुबह खुशियों का सैलाब लेकर नमूदार होती है। फज्र की नमाज़ के बाद लोग नहा-धोकर नए कपड़े पहनकर, इत्र लगाकर और सेवइयां खाकर ईदगाह की तरफ रवाना हो जाते हैं। और ईदगाह में नमाज़-ए- ईदुल फ़ित्र की दो रकअत अदा करने के बाद अपने अज़ीज़-ओ-अकारिब और दोस्तों और रिश्तेदारों से गले मिलकर मुबारकबाद देते हैं। इसमें अमीर, ग़रीब, छोटे, बड़े की कोई तफरीक नहीं होती। ईदगाह से वापसी पर लोग कब्रिस्तान जाते हैं और अपने मरहूमीन की कब्र पर मगफिरत की दुआ फरमाते हैं।ईद की नमाज के बाद लोग एक दूसरे के घर जाकर मुबारकबाद देते हैं। घरों में सेवइयां, खीर और मुख्तलिफ तरह की मिठाइयों और पकवानों से अपने घर में आए हुए मेहमानों की मेहमान नवाजी की जाती है। दूर-दराज रहने वाले रिश्तेदारों को फोन के ज़री’ए भी मुबारकबाद दी जाती है। इस मौजूदा दौर में सोशल मीडिया के ज़री’ए भी दोस्तों और रिश्तेदारों बल्कि अपने जुड़े हुए सभी लोगों को ईद की मुबारकबाद पेश की जाती है। ईद का दिन बच्चों के लिए बहुत अहम होता है, बकौल नज़ीर अकबर आबादी “ऐसी न शब-ए-बरात न तो ईद की खुशी, जैसी हर बच्चे के दिल में ईद की खुशी”। बच्चे ईद की नमाज के बाद अपने बड़ों से ईदी लेते हैं और अपनी मनपसंद के खाने और खेलने की चीजें खरीदते हैं। रंग बिरंगे कपड़ों में बच्चों की खुशी देखने के काबिल होती है। बिलाशुबा ईदुलफ़ित्र मुसलमानों का एक अज़ीमुश्शान त्योहार है।

हर एक के दिल में प्यार जगाने के लिए आई है ईद।
खुशी मनाओ कि खुशी मनाने के लिए आई है ईद ।।

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