माहे रमजान खुशियों का पैगाम देता है ।और ईद का तोहफा - नायब शहर काजी मोहम्मद आरिफ
माहे रमजान खुशियों का पैगाम देता है ।और ईद का तोहफा - नायब शहर काजी मोहम्मद आरिफ

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : मोहम्मद अली पठान
चूरू : जिला मुख्यालय पर नायब शहर काजी मोहम्मद आरिफ पुत्र मौलाना हाजी अहमद अली शाह शहर काजी ने माहे रमजान की मुबारकबाद देते हुए कहा रमजान के पाक महीने में शब-ए-कद्र की रात सबसे अफजल मानी जाती है। इसी रात कुरान पाक नाजिल हुआ था। यह रात हजार महीनों की इबादत से बेहतर मानी जाती है। इसी कारण इस रात में दुआ और नफली नमाज अदा की जाती है। रमजान में एक रात शब-ए-कद्र की होती है। यह पांच रातों में घूमती है। इसे तलाश करना पड़ता है। 21, 23, 25, 27 और 29वीं रातों में से कोई एक होती है। 27वीं रात को ज्यादा अहमियत दी जाती है। रमजान के महीने में तीन अशरे होते हैं। पहले 10 दिन रहमत के अशरे के होते हैं। 10 से 20 दिन मगफिरत के अशरे के होते हैं। 20 से 30 दिन जहन्नुम से आजादी के अशरे माने जाते हैं। रमजान के आखिरी 10 दिन मोहल्ले के लोग मस्जिद में ऐतकाफ के लिए बैठते हैं। 10 दिनों तक इबादत करते हैं। तौबा और इस्तिगफार करते हैं। ये 10 दिन तक मस्जिद में ही रहते हैं। ईद का चांद दिखने पर घर लौटते हैं। रमजान के महीने में आने वाले जुमे खास माने जाते हैं। आखिरी जुमे को अलविदा जुमा कहते है रमजान में इफ्तार के वक्त दस्तरख्वान पर सभी फलों के साथ खजूर भी रखा जाता है. सबसे पहले उसे ही खाया जाता है और लोग इसे पसंद भी करते हैं, लेकिन इसके खाने का सही तरीका भी आपको पता होना चाहिए. बताया जाता है कि रोजाना एक रोजेदार को 2 से 3 खजूर से ही शुरुआत करनी चाहिए क्योंकि कुछ लोगों को यह नुकसान कर सकते हैं। रोजा रखने के बाद अगर सीधे भारी भोजन कर लिया जाए, तो पाचन क्रिया पर असर पड़ सकता है. खजूर पेट को हल्का रखकर डाइजेस्टिव सिस्टम को सक्रिय करता है, जिससे पाचन प्रक्रिया बेहतर बनी रहती है. यह गैस और अपच की समस्या को भी कम करने में सहायक होता है। खजूर रमजान में इसलिए खाया जाता है क्योंकि यह सुपरफूड माना जाता है. इसमें विटामिन्स, मिनरल्स और एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं ।रोज़े के दौरान दिनभर पानी का सेवन नहीं किया जाता, जिससे जल की खपत में कमी आती है और पानी के संरक्षण में मदद मिलती है। खाद्य संसाधनों का संरक्षणः रोज़ा के दौरान भोजन की खपत सीमित होती है, जिससे खाद्य संसाधनों का संरक्षण होता है। यह अपव्यय को कम करता है और जिम्मेदार भोजन की आदतों को बढ़ावा देता है। ऊर्जा की खपत में कमीः रोज़ा रखने से व्यक्ति अपनी दिनचर्या में ऊर्जा की खपत कम करता है, क्योंकि उपवासी रहने से शारीरिक गतिविधियाँ कम हो जाती हैं। सामूहिक जागरूकताः जब एक समुदाय रोज़ा रखता है, तो यह सामूहिक रूप से पर्यावरण के प्रति जागरूकता उत्पन्न करता है और इसे बचाने के लिए सामूहिक प्रयासों को प्रेरित करता है। रोज़े का सामाजिक प्रभाव रोज़ा केवल एक व्यक्तिगत कार्य नहीं है, बल्कि इसका सामाजिक प्रभाव भी है। जब एक समुदाय रोज़ा रखता है. तो यह एकता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देता है। लोग एक दूसरे के साथ भोजन साझा करते हैं, जरूरतमंदों को इफ्तार में शामिल करते हैं. और दूसरों के दुख दर्द को समझने की कोशिश करते हैं। रोज़ा के दौरान, लोग अपने आस-पास के लोगों की मदद करते हैं, और गरीबों, यतीमों और जरूरतमंदों की मदद करने का एक अद्वितीय अवसर मिलता है। यह सामूहिक रूप से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का एक महत्वपूर्ण तरीका है।