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सामाजिक संस्था में अपने लंबे कार्यकाल के बाद भी पद की ये लालसा किसलिए ?


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सामाजिक संस्था में अपने लंबे कार्यकाल के बाद भी पद की ये लालसा किसलिए ?

सामाजिक संस्था में अपने लंबे कार्यकाल के बाद भी पद की ये लालसा किसलिए ?

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : चंद्रकांत बंका

झुंझुनूं : आपने खूब अच्छा कार्य किया होगा और आपकी ढेर सारी उपलब्धियां रही होगी। इसमें ज्यादा प्रफुल्लित होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि गणमान्यजनों ने इन्हीं कार्यों के लिए आपको पदस्थ किया था। कार्यकाल खत्म होने पर नए व्यक्तियों को अवसर देने के उद्देश्य से ही निर्वाचन प्रक्रिया होती है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इसी भावना के साथ ही अनेक संस्थाओं, प्रदेश और देश की सरकारें बदलती है। निर्वाचन के वक्त पद स्वेच्छा से छोड़ने की बजाय नीति और नियत में खोट किसलिए? आप भी परिवर्तन की हवा चलने पर ही पदस्थ किए गए थे, अब बुरा क्यों लग रहा है?

ओर तो ओर व्यक्तिगत रूप से दुश्मनी इस सर्वसमाज के चुनाव में ही क्यों साथ ही साथ आरोप किसी पूर्व अध्यक्ष पर चार साल पहले कहा थे वे लोग ओर फिर इतना बेलेंस है संस्था के पास फिर आवारा क्यों है गो वंश

सामाजिक संस्था कोई बपौती थोड़े ही है कि आप ही जीवन भर यहां टिके रहना चाहते हैं? समाज में आपसे भी अधिक कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार व्यक्तियों की कमी थोड़े ही है, जो आपको लग रहा है कि आपके अपदस्थ होते ही संस्था में लूटमार शुरू हो जाएगी या सारी व्यवस्थाएं ध्वस्त हो जाएगी।

आपने खुलेआम कहा कि पिछले लोगों ने गड़बड़ी की थी।आपको तो पदस्थ होते ही यह बात पता चल गई थी, फिर आप इतने दिनों तक चुप क्यों रहे ? क्या मजबूरी थी कि आपने गड़बड़ी करने वालों के खिलाफ कार्यवाही नहीं की? आपने मंच से जब खुलेआम आरोप लगाए तो वो लोग भी सिर झुकाए सुन रहे थे। वे कुछ भी नहीं बोले। इसका मतलब मामला तो गंभीर ही होगा। इतने लंबे कार्यकाल के बाद भी आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही को लेकर आपने चुप रहकर कौनसी कर्तव्यनिष्ठा का पालन किया ?

निर्वाचन कार्य के लिए संस्था से बाहर के किन्हीं व्यक्तियों को ये जिम्मेदारी दी जानी चाहिए थी ताकि निर्भीक, निष्पक्ष और पारदर्शी काम हो पाता, लेकिन आपने भारी विरोध के बावजूद हठधर्मिता बरतते हुए अपने ही एक चहेते को जो संस्था का पदाधिकारी भी है को, पहले तो मंच संचालन की जिम्मेदारी दी, उसके बाद सम्मान किया और फिर निर्वाचन की जिम्मेदारी सौंप दी। ऐसे व्यक्ति से निर्भीक, निष्पक्ष और पारदर्शी निर्वाचन की अपेक्षा की जा सकती है क्या ? धर्म तो यह कहता है कि निर्वाचन जैसा जिम्मेदारी का कार्य करने वाले व्यक्ति को उस संस्था का पानी भी नहीं पीना चाहिए, यहां तो सम्मानित हो रहे थे। माना कि संस्था में उनका या उनके परिवारजनों का सहयोग रहा होगा, लेकिन सम्मान के लिए स्वयं ही मना करते। सम्मान फिर कभी हो जाता, संस्था बंद थोड़े ही हो रही थी। ये सब ठीक नहीं कहा जा सकता।

आपने कहा कि आज मीडिया का युग है, इसलिए संस्था में पीआरओ की जरूरत है, तो निर्वाचन के दिन की सूचना खबर निर्वाचन वाले दिन प्रसारित क्यों नहीं की गई ? क्या आप चाहते थे कि निर्वाचन की सूचना आमजन तक नहीं पहुंचे और चुनाव गुपचुप में हो जाए ? वो तो कुछ व्यक्तियों ने निर्वाचन की खबर सोशल मीडिया पर वायरल कर दी और आपकी अपेक्षा के विरुद्ध अधिसंख्य व्यक्ति पहुंच गए। क्या कोई संस्था सरकारी विभाग है या कोई कॉरपोरेट ऑफिस या यूनिवर्सिटी या रेलवे या बड़ा हॉस्पिटल जहां यह पद जरूरी है ? अन्य बड़ी बड़ी सामाजिक संस्थाएं भी है, जहां ऐसे पदाधिकारी कभी नियुक्त नहीं किए गए। क्या संस्था में ऐसे पद पर नियुक्ति का प्रावधान है ? संस्था में कितने कार्यक्रम या समारोह आयोजित होते है कि इस पद पर किसी को नियुक्त करना बेहद जरूरी है ?

आपने निर्वाचन के वक्त दानदाताओं का सम्मान किया, जिसकी सबने सराहना की। हालांकि ये काम संस्था के किसी बड़े समारोह के समय होता तो और भी श्रेष्ठ रहता।

निर्वाचन के लिए आयोजित साधारण सभा में आपने बड़ी संख्या में आए हुए गणमान्यजनों को बोलने, अपने विचार रखने या सुझाव देने के लिए आमंत्रित नहीं किया और फटाफट निर्वाचन प्रक्रिया शुरू करवा दी। साधारण सभा में आए हुए गणमान्यजनों ने जब इसके लिए आवाज उठाई तो निर्वाचन अधिकारी ने पहने मना कर दिया, लेकिन जब लोगों ने अपनी आवाज प्रखर की तो निर्वाचन अधिकारी ने उनसे मंच पर आकर अपनी-अपनी बात कहने को कहा। जब लोग मंच पर पहुंचे तो उन्हें बोलने के लिए माइक नहीं दिया गया। अन्य लोगों ने जब इस पर आपत्ति की तो निर्वाचन अधिकारी ने कई लोगों के साथ बदतमीजी की और लोगों पर हंगामा करने का आरोप लगाकर निर्वाचन कार्य को स्थगित कर दिया, जबकि जोर जोर से बोलकर और चिल्लाकर वातावरण को खराब कर दिया।

साधारण सभा निर्वाचन के समय ही आयोजित होती है और उसमें भी किसी को बोलने का अवसर नहीं दिया जाता है तो, क्या यह सही बात है ? पहले लोगों को अपनी बात कहने का अवसर दिया जाना चाहिए था। उन्हें बोलने नहीं दिया गया और ऊपर से निर्वाचन कार्य स्थगित कर दिया गया। होना तो यह चाहिए था कि लोगों को अपनी बात कहने का अवसर देना चाहिए और उन्हें संतुष्ट करते, लेकिन ऐसा प्रयास ही दिखाई नहीं दिया। निर्वाचन कार्य एक घंटा रोककर करवाए जा सकते थे, लेकिन ऐसा लगा कि पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार ही यह काम हुआ।

निर्वाचन अधिकारी ने आनन-फानन में घोषणा कर दी कि अभी पदस्थ व्यक्ति ही अगले चुनाव तक अपने पद पर बने रहेंगे। उन्हें ऐसा करने की बजाय अस्थायी कार्यवाहक कार्यकारिणी बनानी चाहिए थी क्योंकि वर्तमान कार्यकारिणी तो साधारण सभा के बाद स्वतः ही भंग हो जाती है। विभिन्न समाचार पत्रों और सोशल मीडिया पर समाचार प्रसारित करवाकर आमजन और दानदाताओं की भ्रमित किया गया कि कुछ लोगों ने निर्वाचन कार्य में व्यवधान डाला, जिस वजह से निर्वाचन कार्य स्थगित किया गया, जबकि व्यवधान किसने डाला और एक तरफा कार्यवाही कौन चला रहा था, ये वहां मौजूद सभी लोगों ने देखा है।

एक बेहद शर्मनाक बात यह भी हुई कि आपके समर्थक एक व्यक्ति ने एक गणमान्य व्यक्ति को अपनी छाती ठोक-ठोक कर कचरा तक कह डाला और आप लोग चुपचाप मूकदर्शक बने देखते रहे। एक व्यक्ति को कचरा कह देना बहुत गलत बात है। किसी भी संस्था में किसी भी व्यक्ति का अपमान करने का हक, किसी को नहीं है, भले ही वह कितना भी बड़ा कथित दानदाता या भामाशाह हो। हमें किसी के लिए अपशब्द कहने से पूर्व अपने गिरेबांह में झांक कर देखना चाहिए कि हम कैसे है। लोग तो अपने घर आए हुए शत्रु का भी सम्मान करते हैं।

पूर्व में संस्था में एक वार्षिक स्मारिका प्रकाशित होती थी, जिसमें दानदाताओं के प्रतिष्ठानों के विज्ञापन और आय-व्यय की समस्त जानकारी दानदाताओं और अन्य व्यक्तियों को उपलब्ध करवाई जाती थी, लेकिन वह स्मारिका भी पिछले समय से दिखाई नहीं दी है, उसका कारण भी बताना चाहिए था। साधारण सभा में आय-व्यय की एक-एक प्रति आए हुए सभी व्यक्तियों को दी जानी चाहिए थी, वह भी नहीं दी गई।
खैर, आपने जो किया, हो सकता है सही हो।

मैं वहां उपस्थित था। मुझे जो असामान्य प्रतीत हुआ, वह लिखा है। नई कार्यकारिणी में आप पदस्थ हों या अन्य, मेरी ओर से सभी को अग्रिम हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

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