रोजा व रमजान के बारे में सामान्य जानकारी रोजा रखने से स्वास्थ्य बेहतर रहता है। सैयद अबरार अहमद कादरी खानका -ए- कादरी चूरू
रोजा व रमजान के बारे में सामान्य जानकारी रोजा रखने से स्वास्थ्य बेहतर रहता है। सैयद अबरार अहमद कादरी खानका -ए- कादरी चूरू

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : मोहम्मद अली पठान
चूरू : जिला मुख्यालय पर खानका – ए – कादरिया के शहजादा -ए- नसीन हजरत सैयद अबरार अहमद कादरी ने बताया कि रोज़ा एक ऐसी महत्वपूर्ण इबादत है। जो इंसान के पिछले सभी गुनाहों को जलाकर नष्ट कर देता है। रोज़ा, मुसलमानों के लिए आफ़ताब (सूरज)के तूलू होने से पहले रात के अंतिम समय (फ़ज़र) से लेकर मगरिब (आफ़ताब के पश्चिम में छिपने का आखरी समय) तक भूख व प्यास की शिद्दत को महसूस करते हुए। परहेज़गारी व अनुशासन के साथ अपने आपको खाने-पीने की तमाम चीजों से रोकने के साथ बुराईयों से बचकर, अल्लाह की इबादत में समर्पित होना होता है इसके बदले में अल्लाह का वादा है कि पिछले तमाम गुनाहों (कुछ विशेष गुनाहों को छोड़कर) को माफ कर दिया जायेगा।
रमज़ान माह की इबादत (रोज़ा) को तीन हिस्सों में तक्सीम किया गया है। रमज़ान के पहले दस दिन 1 से 10 रहमत वाले अर्थात अल्लाह इन दिनों में रोज़े रखने पर अपने बंदों पर रहम करता है, दुसरे दस दिन 11 से 20 बरकत वाले होते हैं इन दस दिनों में रोज़े रखकर, नमाजों की पाबंदी व परहेज़गारी के साथ इबादत करने से अल्लाह अपने बंदों के रिज़्क में बरकत देता है यानि लाभ पहुंचाता है, तीसरे दस दिन यानी 21से 30 जिन्हें आशूरा भी कहा जाता है ये आखिरी दस दिन माहे रमज़ान के सबसे महत्वपूर्ण – दिन होते हैं इन्हीं दस दिनों में 21,23,25, 27 व 29 वीं तारीख की रात में से कोई एक रात लैलतुल कद्र होती है जो एक ऐसी रात है जो आम दिनों की एक हज़ार रातों की इबादत के बराबर सिर्फ एक रात ही सवाब दे देती है।
लैलतुल कद्र के बारे में साफतौर पर नहीं कहा जा सकता की आखरी दस दिनों में कौनसी रात लैलतुल कद्र है इसलिए एतेकाफ़ (एकांतवास) ही एक ऐसा इबादत का तरीका है जिसमें मुसलमान दस दिन तक मस्जिद में 24 घंटे रहकर इबादत करता है जिससे की लैलतुल कद्र (83) साल की इबादत लैलतुल कद्र की एक रात की इबादत के बराबर है इस इबादत को सौ फीसदी हासिल किया जा सकता है। रमज़ान का पूरा महीना मुसलमानों के लिये किसी ख़ज़ाने से कहीं ज्यादा है। रहमतों, बरकतों व मगफ़िरत का ये महीना बन्दे को अपने रब के करीब ले जाता है यानि की परहेज़गारी के साथ रोज़े रखने से अल्लाह का कुर्ब हासिल होता है, स्वास्थ्य बेहतर रहता है।