सिंघानिया विश्वविद्यालय ने “भगवद्गीताधारितं भक्तिज्ञानकर्म योगस्य महत्त्वम्” पर आयोजित की प्रेरक राष्ट्रीय संगोष्ठी
सिंघानिया विश्वविद्यालय ने "भगवद्गीताधारितं भक्तिज्ञानकर्म योगस्य महत्त्वम्" पर आयोजित की प्रेरक राष्ट्रीय संगोष्ठी
पचेरी कलां : सिंघानिया विश्वविद्यालय ने “भगवद्गीताधारितं भक्तिज्ञानकर्म योगस्य महत्त्वम्” (भक्ति, ज्ञान और कर्म योग का महत्व, जैसा कि भगवद्गीता में वर्णित है) विषय पर एक प्रेरक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया।
इस कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई माननीय डॉ. रामसेवक दुबे, कुलपति, जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय और सिंघानिया विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. मनोज कुमार ने। साथ ही, संस्कृत और भारतीय दर्शन के क्षेत्र के विद्वान और गणमान्य अतिथि जैसे जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग के अध्यक्ष डॉ. कुलदीप पालावत, श्री सूरजमल तापड़िया आचार्य संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. हेमंत कृष्ण मिश्र, श्री ऋषिकुल ब्रह्मचर्य आश्रम आचार्य संस्कृत महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. रेखा शर्मा, श्री लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली के सहायक आचार्य डॉ. सौरभ दुबे सहित अनेक विशिष्ट अतिथि इस संगोष्ठी में उपस्थित रहे। कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलित करके की गई।
इस संगोष्ठी में भगवद्गीता की शाश्वत शिक्षाओं और उनके आधुनिक जीवन में महत्व पर चर्चा की गई। डॉ. रामसेवक दुबे ने प्रेरक भाषण दिया, जिसमें उन्होंने गीता में वर्णित भक्ति, ज्ञान और कर्म के सामंजस्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने सिंघानिया विश्वविद्यालय की अकादमिक संवाद और सांस्कृतिक संरक्षण को बढ़ावा देने व विश्वविद्यालय द्वारा चलाए जा रहे संस्कृत के रोजगार परक नए कोर्स – ज्योतिष एवं वास्तु डिप्लोमा, पौरोहित्य एवं संस्कार डिप्लोमा, B.A., M.A. संस्कृत इत्यादि कार्यों की पहल की मुक्त कंठ से प्रशंसा की।
पैनल चर्चा में प्रसिद्ध संस्कृत विद्वानों ने भाग लिया और गीता के दार्शनिक पहलुओं और आधुनिक चुनौतियों में उनकी प्रासंगिकता पर विस्तृत विचार साझा किए। इस अवसर पर स्वागत भाषण परिसर निदेशक पी. एस. जेसल द्वारा दिया गया तथा सिंघानिया विश्वविद्यालय के अध्यक्ष डॉ. मनोज कुमार ने संस्कृत में निहित ज्ञान व विज्ञान की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए कहा:
“हम संस्कृत को प्रचारित करने और इस क्षेत्र में विभिन्न पाठ्यक्रमों के माध्यम से इसके समृद्ध धरोहर को जीवित रखने के लिए निरंतर कार्य करेंगे। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम संस्कृत के ज्ञान को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाएं और इसे वैश्विक स्तर पर एक सम्मानजनक स्थान दिलाएं।”
इस अवसर पर डॉ. कुलदीप पालावत ने जीवन में ज्ञान के महत्व को स्पष्ट किया, डॉ. सौरभ दुबे ने भक्ति की दिव्यता को परिभाषित किया और डॉ. रेखा शर्मा ने कर्म के गौरव का गुणगान किया। डॉ. हेमंत कृष्ण मिश्र ने संस्कृत के प्रसार में हर प्रकार से सहयोग करने का आश्वासन दिया। कार्यक्रम का संचालन व संयोजन संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. सुमित कुमार शर्मा ने डॉ. शर्मिला यादव के साथ मिलकर किया।
कार्यक्रम के अंत में सिंघानिया विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार इमरान हाशमी ने आए हुए अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर सुनील कुमार शोभती, डॉ. पवन त्रिपाठी, डॉ. सुमेर, प्रशासनिक अधिकारी विजेंद्र शर्मा सहित अनेक आचार्य गण उपस्थित रहे।