अजमेर हाईवे अग्निकांड:ऐसे बीता कल, सुबह से शाम तक, सवेरे के अंधेरे को आग की लपटों ने निगला, ढलते सूरज तक बाकी थी तपिश
अजमेर हाईवे अग्निकांड:ऐसे बीता कल, सुबह से शाम तक, सवेरे के अंधेरे को आग की लपटों ने निगला, ढलते सूरज तक बाकी थी तपिश

जयपुर : रोजाना ट्रैफिक के साथ दौड़ती अजमेर रोड आज खाली थी। सुबह साढ़े पांच बजे शमशान बनी यह सड़क शाम पांच बजे लगभग सुनसान थी। रास्ते में नजर आए लोगों में से कुछ शायद अब भी हादसे के गम से बाहर नहीं निकल पाए थे। बतौर पत्रकार मैंने कई हादसे देखें लेकिन ऐसा विनाशक ताप कभी नहीं देखा। सुबह की आग का असर शाम तक जीवित था।
घटनास्थल से 300 मीटर दूर उस बस का ढांचा था, जिसमें सुबह यात्री जिंदा जले थे। हादसे का सबसे बड़ा अवशेष। लोहे के ढांचे के अलावा बस में कुछ नहीं बचा था, पर ड्राइवर कैबिन में कुछ था जो चौंका रहा था। खाक हुई बस में भगवान शिव की मूर्ति रख हुई थी और उनके आगे राख का ढेर। बस वही एकमात्र साक्षी थे इस काल के तांडव के। बस की डिग्गी में एक बाइक नजर आई, जो जली हुई थी। इसके मालिक के साथ क्या हुआ होगा पता नहीं। पास ही एक ट्रक था, जिसमें काफी सामान था। साड़ियां, मेकअप का सामान, कपड़े और काफी कुछ। कुछ जल चुका था और कुछ अधजला था। घटनास्थल पर गैस शिफ्टिंग के चलते कुछ दूर पहले ही पुलिस ने रोक दिया था, लेकिन आसपास का सारा माहौल आज के दहन का साक्षी था। जले हुए पेड़, काली पड़ चुकी सड़क और हादसे से हताश स्थानीय जन। आग की तपिश और राख की कालिमा हवा में महसूस की जा सकती थी
सड़क के दूसरी ओर कुछ स्थानीय लोग थे। उन्होंने बताया कि आज उनसे खाना नहीं खाया गया। चारों ओर से एक आवाज आ रही थी- बचाओ, बचाओ। एक चीख में सुनाई दी, मुझे मार दो अब नहीं बचना। प्रत्यक्षदर्शी चेतन शर्मा ने बताया कि कुछ अधजले लोग खेतों की ओर दौड़ रहे थे। तब आग से रोशनी इतनी ज्यादा थी मानो दिन हो गया हो। सुबह के साढ़े पांच के अंधेरे को आज आग का प्रकाश निगल चुका था। कुछ लोगों ने कहा कि जहां दुर्घटना हुई वह मौत का मोड़ है। रोजाना हादसे होते हैं। कई बार शिकायत की, लेकिन काेई नहीं सुनता।
सड़क बनाने वाले ठेकेदार को जल्द काम करने पर वह कहता है, तसल्ली से हुआ काम अच्छा होता है, जल्दी किस बात की। तसल्लियां इस हादसे में भी खोज ली गई। जैसे- सुबह 6 बजे स्कूल बसें यहां से गुजरती हैं। घटना पहले होने से वे बच गए। गनीमत थी कि सुबह का समय होने से सड़क पर ज्यादा लोग नहीं थे। सोचिए, इतनी बुरी घटना में भी लोग संतोष खोज रहे थे। शाम के छह बज चुके थे, अंधेरा हो चला था।
दूर से घटना स्थल फिर से सुबह की तरह काला नजर आ रहा था। हम दफ्तर की ओर लौटने लगे। मन में यही सवाल थे- क्या टैंक और बस के ड्राइवर रात भर जागे थे। उनके बच्चे किस उम्र के होंगे। क्या फायर बिग्रेड, एंबुलेंस और पुलिस कर्मी आज की रात सो पाएंगे। क्या वह बाइक वाला व्यक्ति जिंदा होगा। उन लाशों का क्या होगा जो पूरी तरह क्षत विक्षत हो गई थी उनकी राख भी उनके परिवार को नहीं मिल पाएगी।