फतेहपुर के स्कूल को जल सरंक्षण के लिए नेशनल अवॉर्ड:अंडरग्राउंड टैंक बनाकर बचाया बारिश का पानी, डबल वॉल गमले लगाए; जल शक्ति मंत्रालय ने किया सम्मान
फतेहपुर के स्कूल को जल सरंक्षण के लिए नेशनल अवॉर्ड:अंडरग्राउंड टैंक बनाकर बचाया बारिश का पानी, डबल वॉल गमले लगाए; जल शक्ति मंत्रालय ने किया सम्मान
फतेहपुर : सीकर जिले के फतेहपुर के जेठवां का बास का राजकीय उच्च प्राथमिक स्कूल। इस स्कूल को जल संरक्षण के क्षेत्र में इनोवेशन, इन्फ्रास्ट्रक्चर और जनजागरुकता के विशेष कार्य करने पर केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने स्कूल-कॉलेज कैटेगरी में देशभर में पहले स्थान पर चयन करते हुए राष्ट्रीय जल पुरस्कार दिया है। 22 अक्टूबर को नई दिल्ली में राष्ट्रपति ने ये पुरस्कार स्कूल के प्रधानाचार्य हरिराम कुलहरी को सौंपा। हरिराम कुलहरी ने बताया- स्कूल को प्रशस्ति पत्र के साथ 2 लाख रुपए भी मिले है।
सरकारी सेवा में प्रिंसिपल पद से रिटायर और जल शक्ति मंत्रालय में सीकर जल योद्धा के रूप में कार्यरत गांव के बजरंग लाल जेठू ने बताया- जल शक्ति मंत्रालय द्वारा ये पुरस्कार पिछले 5 साल से दिया जा रहा है। इस बार हमारे गांव के स्कूल को ये पुरस्कार मिला है। इस पुरस्कार को लेकर मंत्रालय ने कुछ मापदंड बनाए है। उनको पूरा करने पर ये पुरस्कार मिला है।
बारिश के पानी के लिए दो अंडर ग्राउंड टैंक बनाए
बजरंग लाल जेठू ने बताया- पहले स्कूल की बिल्डिंग और कैंपस में स्थित सामुदायिक भवन की छत का बारिश का पानी बह जाया करता था। जिसके बाद स्कूल ने प्रस्ताव रखा कि वाटर टैंक बनाना चाहिए और पानी को स्टोर करना चाहिए। बाद में स्कूल में बारिश के पानी को जमा करने के लिए दो बड़े अंडरग्राउंड टैंक बनाए गए है। पहला स्कूल कैंपस और दूसरा खेल मैदान में है। ये छोटे जरूर है लेकिन बारिश के दिनों में स्कूल की बिल्डिंग और स्कूल कैंपस में बने सामुदायिक भवन की छत का पूरा पानी इन टैंक में जमा हो जाता है।
स्कूल कैंपस वाले टैंक के पानी का उपयोग हम तब लेते है जब स्कूल में पीने के पानी की सप्लाई किसी कारण से नहीं होती है। तब टैंक के पानी को फिल्टर करके काम में लिया जाता है। खेल मैदान वाले टैंक से हम पौधों में उस समय पानी देते है, जब ड्रिप सिस्टम में होने वाली रेग्यूलर सप्लाई किसी कारण से नहीं होती है। दोनों टैंक की कैपेसिटी 70 हजार लीटर है। पीने के पानी के टैंक में ऐसे नल लगाए गए है जिससे पानी टपके नहीं।
10 लीटर पानी की खपत करने वाला ईंटों से बना कूलर
पुरस्कार के लिए एक और बड़ा मापदंड है कि पानी बचाने के लिए कोई इनोवशन किया है क्या। संयोग से हमारे गांव में एक युवा है महेंद्र चौधरी, जिसने एक ऐसा कूलर तैयार किया है जिसमें 24 घंटे के अंदर केवल 10 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। ये कूलर एक बड़े हॉल को आराम से ठंडा कर देता है। ये कूलर ईंटों से तैयार किया गया है। इसमें कम बिजली खपत करने वाली मोटर लगी है। ये कूलर हमने स्कूल के असेंबली हॉल में लगाया है। कूलर के अंदर का ढांचा किस प्रकार का है वो हम नहीं बता सकते क्योंकि ये उस युवा की अपनी इनोवेशन है।
स्कूल में पौधारोपण किया, सजावटी पौधों में दोहरी दीवार के गमले काम में लिए
पेड़ ग्राउंड वाटर लेवल को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाते है। इसको लेकर स्कूल के खेल मैदान की दीवार के चारों तरफ 125 पौधे लगाए गए है। सभी पौधे अभी भी मौजूद है और बड़े हो गए है। इसके अलावा गांव की श्मशान भूमि पर 20 पौधे लगाए है। इसके अलावा स्कूल के अंदर पौधों को लिए ऐसे गमले लगाए गए जो दोहरी दीवार के बने हैं। जिनके अंदर 15 दिनों में केवल एक गिलास पानी की ही आवश्यकता होती है।
जल सरंक्षण जागरुकता के लिए 42 प्रतियोगिता करवाई
जल सरंक्षण को लेकर बच्चों में जागरुकता लाने के लिए स्कूल में 42 प्रतियोगिताएं करवाई। जिसमें पेंटिंग प्रतियोगिता, वाद विवाद प्रतियोगिता, निबंध प्रतियोगिता, पत्र वाचन प्रतियोगिता, क्विज प्रतियोगिता करवाई गई।
पुरस्कार के लिए स्कूल की तरफ से जल संरक्षण के लिए श्रमदान करना था। गांव के अंदर तीन तालाब है। मई-जून के महीने में जब तालाब में पानी कम होता है तो कैचमेंट एरिया की सफाई और तालाब के अंदर से गाद निकालने का काम किया जाता है। गांव में वाटर रिचार्जिंग के लिए पंचायत की तरफ से दो कुएं बनाए गए है। उस कुएं के चारों तरफ भी बच्चों ने सफाई की है।
पब्लिक अवेयरनेस के लिए सेमिनार और कार्यशाला करवाई
पब्लिक अवेयरनेस के लिए स्कूल परिसर में साल भर में दो बड़े सेमिनार और कार्यशाला का आयोजन किया जाता है। जिसमें स्कूल के आसपास के सभी स्कूलों के टीचर, पंच-सरपंच को बुलाकर जल बचत संबंधित तरीके समझाएं और बताएं जाते हैं। साथ ही पुराने जल स्रोतों को सुरक्षित कर उनके रखरखाव के बारे में बताया जाता है। इन सेमिनारों में जल संरक्षण से संबंधित फिल्म भी दिखाई जाती है।
आवेदन के बाद टीम ने की थी जांच
बजरंग लाल जेठू ने बताया- ऐसा नहीं है कि इन मापदंडों को पूरा करने का बाद सिलेक्शन पक्का है। जल शक्ति मंत्रालय से एक कमेटी यहां मई में आई थी। उसने यहां आकर स्कूल के दावों को देखा और सत्यापित किया। केवल आवेदन पत्र में लिख देने से मंत्रालय नहीं मानता है। कमेटी के सदस्य बिहार से थे। वो आगे चल रहे थे, हम पीछे चल रहे थे। वो आपस में बात कर रहे थे कि हमारे बिहार में तो इतने बड़े तालाब और पानी को इकट्ठा करने के लिए व्यवस्था नहीं है। उनको ये देखकर आश्चर्य हुआ। हमने केवल टीम को अपने कामों के बारे में बताया, उन्होंने अपनी रिपोर्ट में क्या लिखा वो हमें पता नहीं था, हम उनसे दूर खड़े थे।
रिजल्ट घोषित होने के बाद एक और तीन सदस्यों की टीम यहां आई थी। उस टीम ने यहां ड्रोन और कैमरों से शुटिंग की। इसकी एक डॉक्यूमेंट्री बनाई गई। जो राष्ट्रपति के द्वारा स्कूल प्रशासन को पुरस्कार देने के दौरान चलाई गई।