करामत ख़ान उर्दू अदीब : सर सय्यद अहमद ख़ान की इल्मी, अदबी और क़ौमी ख़िदमात
करामत ख़ान उर्दू अदीब : सर सय्यद अहमद ख़ान की इल्मी, अदबी और क़ौमी ख़िदमात

सर सय्यद अहमद ख़ान की पैदाइश इसी महीने या’नी 17 अक्तूबर 1817 ईस्वी में दिल्ली में एक मुअज़्ज़ज़ घराने में हुई , और आपकी वफ़ात 27 मार्च 1898 ईस्वी में अलीगढ़ में हुई। सर सय्यद अहमद ख़ान एक इंतेहा पसंद शख़्सियत के मालिक थे। ख़ुदा की तरफ़ से आपको बहुत सी सिफ़ात मिली थीं। सर सय्यद एक बेदार ज़ेहन और दुनिया की सूझबूझ रखने वाले इंसान थे। सर सय्यद उर्दू अदब और उर्दू ज़बान के मसीहा थे। सर सय्यद ने मुस्लिम क़ौम को ख़्वाब-ए-ग़फ़लत से बेदार करने के लिए काफ़ी रिसाले निकाले, बहुत सारे मज़ामीन लिखे, बहुत सारी किताबें लिखीं और कई अंजुमनें बनाईं।
सर सय्यद की पहली किताब है “आसारुस सनादीद”, इस किताब में देहली की तारीख़ी इमारतों का तज़्किरा बहुत ही उम्दा तरीक़े और दिलकश अंदाज़ में पेश किया गया है। यह किताब तहक़ीक़-ओ-काविश और तलाश-ओ-जुस्तुजू की शानदार और अनमोल मिसाल है। सर सय्यद का एक और अहम कारनामा ” ख़ुत्बात-ए-अहमदिया” है। इस किताब में आपने एक अंग्रेज मुसन्निफ़ ( लेखक ) विलियम म्योर की किताब “लाइफ़ ऑफ़ मुहम्मद” का जवाब दिया है। विलियम म्योर ने अपनी इस किताब में हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और इस्लाम पर हमले किए थे। इस किताब का जवाब जज़्बाती अंदाज़ में देना आसान था, लेकिन सर सय्यद अक़्ली दलाइल से किसी चीज़ को क़ुबूल करते थे। इस किताब का जवाब देने में सर सय्यद ने बहुत ज़ियादा तहक़ीक़ से काम लिया। आपने देखा कि विलियम म्योर की किताब का जवाब देने के लिए बेशुमार क़ीमती और नायाब किताबें लंदन के कुतुब ख़ाने में मौजूद हैं। इसलिए आपने लंदन का सफ़र किया, और वहां बड़ी तहक़ीक़ के बाद विलियम म्योर की इस किताब का मुंह तोड़ जवाब दिया। सर सय्यद का यह अंदाज़-ए-तहरीर उर्दू में तहक़ीक़ और तनक़ीद का एक नया दरवाज़ा खोलने वाला साबित हुआ।
सर सय्यद ने “अलीगढ़ तहरीक” चलाई। इस तहरीक ने मायूसी में डूबी हुई मुस्लिम क़ौम को तबाही और बर्बादी के गढ़े से निकाला, और खोया हुआ वक़ार बड़ी हद तक बहाल कर दिया। सर सय्यद ने उर्दू अदब की तरक़्क़ी के लिए “साइंटिफ़िक सोसाइटी” क़ाइम की। इस सोसाइटी के तहत दूसरी ज़बानों में मौजूद इल्मी और तारीख़ी किताबों का उर्दू ज़बान में तर्जमा किया गया। इस सोसाइटी के तहत इल्मी मौज़ूआत पर लेक्चर दिए गए, इस काम के लिए सर सय्यद ने अपने ज़माने के अदीबों और शाइरों को बुलाया और उनके सामने यह मंसूबा पेश किया कि मुस्लिम क़ौम बड़ी परेशानी के आलम में है। और क़ौम को इस परेशानी से निजात दिलाने के लिए सिर्फ़ एक ही हल है, और वह यह है कि मुस्लिम क़ौम जदीद उलूम और दुनियावी तालीम हासिल करे। जदीद उलूम हासिल करके ही मुस्लिम क़ौम अपने खोए हुए वक़ार को फिर से हासिल कर सकती है। इसी के साथ सोसाइटी के तहत उर्दू व अंग्रेजी में एक अख़बार जारी किया गया, जिसका नाम “अलीगढ़ इंस्टिट्यूट गज़ट” रखा गया। इस अख़बार का मक़सद मुल्क में नए ख़यालात फैलाना , क़ौम के नौजवानों में शुऊर पैदा करना और अवाम और हुकूमत के दरमियान आपसी नफ़रत के जज़्बात को कम करना था। इसी अख़बार से सर सय्यद ने अपना सहाफ़ती अदब का सिलसिला शुरू किया। और यह अख़बार सर सय्यद की वफ़ात तक जारी रहा।
सर सय्यद इस सहाफ़ती सिलसिले की रफ़्तार तेज़ करते हुए दिसम्बर 1870 ईस्वी में “तहज़ीबुल अख्लाक़” के नाम से भी अख़बार जारी किया, इस अख़बार में ऐसे मज़ामीन शाये किए जाते थे, जिनको पढ़कर मायूसी में डूबी हुई क़ौम को मायूसी के दायरे से बाहर निकलने का एक रास्ता मिला था। सर सय्यद से पहले उर्दू नस्र क़िस्सा गोई तक महदूद थी। सर सय्यद वह पहले नस्र निगार हैं जिन्होंने लिखने का जो पुराना अंदाज़ था उसको तर्क किया और एक नया अंदाज़ इख़्तियार किया।
सर सय्यद ने हर मौज़ूअ के मुताबिक़ एक नया तरीक़ा अपनाया जिसकी वजह से उर्दू नस्र ने ऐसी तरक़्क़ी की कि उर्दू नस्र हर क़िस्म के मज़ामीन और इल्मी मौज़ूआत को बयान करने के क़ाबिल हो गई। सर सय्यद ने अदब, मज़हब, सियासत, ता’लीम, मुआशरत और इक़तिसादी मसाइल जैसे मौज़ूआत पर क़लम उठाया,और सादे और वाज़ेह अंदाज़ में इज़्हार-ए-ख़याल किया, और उर्दू नस्र की बुनियाद डाली। आपने ख़ुद भी लिखा और अपने दोस्तों से भी लिखवाया, और उर्दू नस्र के दामन को वुसअत बख्शी।
उर्दू शाइरी की हालत उर्दू नस्र से ज़ियादा बदतर थी। क़सीदे और ग़ज़ल के सिवा शाइरी में और कोई चीज़ काबिल-ए-ज़िक्र न थी। क़सीदा झूटी खुशामद से भरा हुआ था, और ग़ज़ल आशिक़ाना मज़ामीन के दायरे से बाहर क़दम न रखती थी। आपने बार-बार कहा कि शाइरी से बड़े से बड़े काम लिए जा सकते हैं। आपने शाइरी को बा मक़सद बनाया और शाइरी की नई सिन्फ़ उर्दू नज़्म में शाइरी की गई, जिसने सोई हुई क़ौम को बेदार किया। यह सर सय्यद की ख़ुश नसीबी थी कि उनको बहुत से ऐसे लोग मिले जो बेहद सलाहियतों के मालिक थे, मसलन मोहम्मद हुसैन आज़ाद, मौलाना हाली, शिबली, मौलवी ज़काउल्लाह, नज़ीर अहमद वगैरह ने अपने आपको इल्मी और अदबी कारनामों के लिए वक़्फ़ कर दिया था। सर सय्यद ने 4 मई 1875 ईस्वी में अलीगढ़ में “मोहम्मडन एंग्लो ओरियंटल” नाम से एक कॉलेज क़ाइम किया। इस कॉलेज में तालीमी एतबार से तीन हिस्से थे।
(1) अंग्रेजी का मदरसा
(2) उर्दू का मदरसा
(3) अरबी व फ़ारसी का मदरसा
यह कॉलेज तरक़्क़ी करते-करते सन् 1920 ईस्वी में “अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी” की शक्ल में ज़ाहिर हुआ, जो आज के वक़्त में यह यूनिवर्सिटी इल्मी और अदबी मैदान में क़ौम-ओ-मुल्क की अहम ख़िदमात अंजाम दे रही है। अलग़र्ज़ सर सय्यद अहमद ख़ान ने इल्मी, अदबी और क़ौमी ख़िदमात में अपना अहम किरदार अदा किया। आपकी यह तमामतर ख़िदमात लाफ़ानी हैं। क़ौम-ओ-मिल्लत आपकी इन ख़िदमात को कभी फरामोश नहीं कर सकती।