जैसलमेर MLA के गांव से भाजपा को सिर्फ 37 वोट:रविंद्र सिंह को 33,316 वोटों की लीड मिली; बीजेपी का वोट शेयर 40% गिरा
जैसलमेर MLA के गांव से भाजपा को सिर्फ 37 वोट:रविंद्र सिंह को 33,316 वोटों की लीड मिली; बीजेपी का वोट शेयर 40% गिरा

बाड़मेर : बाड़मेर लोकसभा चुनाव के नतीजों में जैसलमेर विधानसभा के नतीजों ने सबको चौंकाया है। जैसलमेर विधानसभा में जनता ने निर्दलीय रविंद्र सिंह भाटी को 33 हजार 316 वोटों की लीड देकर पूरी लोकसभा क्षेत्र में जैसलमेर से आगे रखा। यहां बीजेपी की सबसे बुरी स्थिति रही। यहां तक कि बीजेपी के एमएलए छोटूसिंह भाटी के गांव पूनम नगर से भी कैलाश चौधरी पीछे रहे। पूनम नगर गांव से उनको केवल 37 वोट मिले।
दरअसल, जैसलमेर विधानसभा ने 6 महीने पहले पहले भाजपा को करीब 18 हजार वोटों से जीत दर्ज करवाई थी, वहीं अब भाजपा का 26 साल में सबसे खराब प्रदर्शन देखने को मिला है। इन चुनावों में जैसलमेर विधानसभा में भाजपा के सिर्फ 25 हजार 273 वोट मिले। कुल मतदान का यह केवल 12.32% यानि विधानसभा चुनावों की तुलना में 40% वोट शेयर गिर गया।

कांग्रेस का भी प्रदर्शन नहीं रहा अच्छा
दूसरी तरफ कांग्रेस का प्रदर्शन भी जैसलमेर में अच्छा नहीं रहा। गत विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को 85 हजार 949 वोट मिले थे और इन चुनावों में 67 हजार 647, यानि 18,500 वोट कम मिले। वोट शेयर की बात करें तो 10% कम वोट मिले। इस बार चुनावी मैदान में उतरे निर्दलीय प्रत्याशी रविंद्र सिंह ने दोनों पार्टियों के वोट काटे और 49.22% वोट शेयर के साथ 1 लाख 963 वोट हासिल किए। निर्दलीय रविंद्र को जैसलमेर से 33 हजार 316 वोटों की लीड मिली जो कि उनकी सर्वाधिक लीड रही। वे अपने खुद के विधानसभा क्षेत्र में केवल 2078 वोट ही आगे रहे। कुल मिलाकर जैसलमेर ने उनका पूरा साथ दिया। हालांकि उनके समर्थकों को यहां से 40 हजार वोटों से अधिक की लीड की उम्मीद थी।
विधायक के गांव से बीजेपी को 37 वोट मिले
जैसलमेर विधायक छोटूसिंह भाटी अपने मूल गांव पूनम नगर में भी भाजपा को वोट नहीं दिला पाए। इन चुनावों में पूनम नगर के दोनों बूथों में भाजपा को सिर्फ 37 वोट मिले। जबकि गत विधानसभा चुनावों में भाजपा को यहां से 1564 वोट मिले थे। इस बार गांव में 2 बूथ थे। बूथ 29 में रविंद्र सिंह को 656, उम्मेदाराम को 32 और कैलाश चौधरी को 17 वोट आए। वहीं बूथ नं. 30 में रविन्द्र को 769, उम्मेदाराम को 4 और कैलाश को 20 वोट मिले।

तीनों लोकसभा चुनाव में बीजेपी से किनारा
गौरतलब है कि 2014 से 2024 तक हुए 3 लोकसभा चुनावों में जैसलमेर विधानसभा भाजपा के साथ नहीं रही। 2014 में निर्दलीय जसवंत सिंह के साथ रही और उन्हें यहां से 26 हजार के लगभग बढ़त मिली। वहीं 2019 में कांग्रेस के मानवेन्द्र सिंह का साथ दिया और उन्हें 12 हजार के करीब वोटों की बढ़त दी। इस बार कांग्रेस व भाजपा दोनों का साथ नहीं दिया। यहां निर्दलीय रविंद्र सिंह भाटी भाजपा से 75 हजार 690 वोट ज्यादा लाए।
केवल शहर में भाजपा को बढ़त मिली
एक बार फिर जैसलमेर शहर भाजपा के साथ ही रहा। 2018 के विधानसभा चुनावों में शहर ने कांग्रेस को बढ़त दी थी, लेकिन 2023 में फिर से भाजपा को बढ़त मिल गई। इन चुनावों में भाजपा ने बढ़त बनाए रखी। शहर में भाजपा को 9941, रविंद्र सिंह को 7081 व उम्मेदाराम को 4957 वोट मिले हैं। जैसलमेर विधानसभा में भाजपा का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन इस बार रहा। हालांकि गत 2 लोकसभा चुनावों में भी भाजपा पिछड़ी थी, लेकिन इतना खराब प्रदर्शन नहीं था कि केवल 12 प्रतिशत वोट मिले। इससे पहले 1998 के विधानसभा चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन कमजोर था, लेकिन उस समय वोट शेयर 14.48 प्रतिशत रहा था। हालांकि उस समय भाजपा को 18 हजार के लगभग वोट मिले थे।
कांग्रेस, निर्दलीय व भाजपा के जीतने व हारने के मुख्य कारण-
मुस्लिम व एससी वोटों में मामूली सेंध
- निर्दलीय रविंद्र सिंह के समर्थकों को जैसलमेर से अच्छी खासी उम्मीदें थी और करीब 40 हजार की बढ़त के कयास लगाए जा रहे थे। वे मुस्लिम व एससी वोटों में सेंध चाहते थे, लेकिन राजनीतिक जानकारों के अनुसार रविंद्र सिंह को 10 हजार वोट भी मुस्लिम व एससी के नहीं मिले।
ओबीसी वोटों में लगाई सेंध
- ओबीसी वर्ग हमेशा से ही अधिकांश रूप से भाजपा के साथ रहा, लेकिन इस बार निर्दलीय प्रत्याशी ने ओबीसी में सेंध लगाई और कई क्षेत्रों में इनके अच्छे खासे वोट लिए ।
भाजपा का वोट बैंक खिसक गया
- राजपूत वर्ग को भाजपा का कोर वोटर माना जाता है। इस बार भी राजपूत वर्ग पूरी तरह से भाजपा से खिसक गया। यहां 95 प्रतिशत से ज्यादा वोट रविंद्र सिंह भाटी को मिले। इसी वजह से भाजपा को सिर्फ 25 हजार 273 वोट ही मिले।
कांग्रेस ने केडर वोट हासिल किए
- विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की गुटबाजी के चलते भाजपा को जीत मिली थी। एक अनुमान के मुताबिक विधानसभा चुनावों में 20 हजार से अधिक मुस्लिम मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिया और भाजपा जीत गई। इस बार गुटबाजी नहीं दिखी और पूरी कांग्रेस एक साथ नजर आई। इसके चलते यहां कांग्रेस 32.97% वोट लाने में कामयाब रही। त्रिकोणीय मुकाबले में कांग्रेस के केडर वोट खिसकने का डर था, लेकिन मामूली नुकसान ही हुआ।
शहर में कांग्रेस को 5 हजार वोट कम मिले
- गत विधानसभा चुनावों की बात करें तो कांग्रेस को 5 हजार और भाजपा को 3 हजार वोट कम मिले। यहां भी निर्दलीय प्रत्याशी रविन्द्र का प्रदर्शन अच्छा रहा। उन्हें 7081 वोट मिले। जबकि कांग्रेस को 4957 वोट और भाजपा ने बढ़त के साथ 9941 वोट लिए।