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सिंघाना-कॉपर एरिया में रेलवे की संपत्ति पर अवैध कब्जा, लोगों ने रेलवे ट्रैक समेत प्लेटफार्म पर भी कर लिया अतिक्रमण


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सिंघाना-कॉपर एरिया में रेलवे की संपत्ति पर अवैध कब्जा, लोगों ने रेलवे ट्रैक समेत प्लेटफार्म पर भी कर लिया अतिक्रमण

1976 में चली थी मालगाड़ी, 1995 में बंद हुई, 2004-05 में पटरियों को उखाड़ दिया गया

खेतड़ीनगर : जिस समय बड़े शहरों में ही रेल की सुविधा होती थी उस समय भी खेतड़ी, खेतड़ीनगर, सिंघाना व आस-पास के गांव व ढाणियों में इंजन की सीटी सुनाई देती थी। लेकिन अब रेल तो दूर रेल की पटरियां भी दिखाई नहीं दे रही। करीब 32 किमी रेलवे लाइन के दोनों तरफ की जमीन पर लोगों ने कच्चे पक्के निर्माण कर अवैध कब्जा कर लिया।

गौर से देखिए यहां कभी ट्रेन चलती थी; अब रेलवे की इस जमीन पर अतिक्रमण हो चुका है

इन अवैध कब्जों को हटाने को लेकर कई बार शिकायत कर चुकी हैं, लेकिन आज तक इस संबंध में रेलवे की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई। रेलवे की जमीन पर अवैध कब्जे को लेकर 2015-16 में शिकायत पर एक बार रेलवे कर्मचारी सिंघाना क्षेत्र में आए थे, लेकिन खानापूर्ति करके चले गए। इसके बाद आज तक रेलवे की जमीन से अवैध कब्जा हटाने की कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।

नानूवाली बावड़ी के पास बना पुलिया। इसके ऊपर से जाती थी रेल।

1973-74 में बिछाई गई थी रेल लाइन खेतड़ीनगर में स्थापित एचसीएल के माल की दुलाई के लिए वर्ष 1973-74 में नीमकाथाना के डाबला से सिंघाना (झुंझुनूं) तक 32 किलोमीटर की रेलवे लाइन बिछाई गई थी। रास्ते के कई गांवों में स्टेशन बनाए गए थे। मालगाड़ी चलती थी। इसमें सवारियों का एक डिब्बा जुड़ा होता था। इस डिब्बे में आमजन यात्रा करते थे। रास्ते के कई गांवों में स्टेशन बनाए गए थे।

जमीन टूटा पड़ा खेतड़ी नगर रेल्वे स्टेशन का साइन बोर्ड

कॉपर से तैयार तांबा सीधा सेना, रेलवे, दूरसंचार, इलेक्ट्रिकल कंपनियों को मालगाड़ी से ही भेजा जाता था। उस दौरान यहां खाद का कारखाना खोला गया था। उसके लिए कच्चा माल बाहर से मंगवाया जाता था। लेकिन सल्फ्यूरिक एसिड से खाद बनाने में खर्चा अधिक आने लगा तो खाद बनाना बंद कर एसिड को ही भेजने का काम करने लगे। धीरे – धीर रेल लाइन से आयात निर्यात बंद कर दिया। इस बीच उधर, डाबला में मीटर गेज की जगह ब्रॉडगेज लाइन बिछ गई। ऐसे में डाबला-सिंघाना रेल लाइन का औचित्य नहीं रहा और वर्ष 2004-05 में पहले रेल बंद की गई, फिर उसकी पटरियों को भी हटा लिया गया।

फर्टिलाइजर प्लांट के लिए कच्चा माल लाने का कार्य करती थी मालगाड़ी एचसीएल के स्मेल्टर प्लांट में तांबा गलाने की प्रक्रिया के दौरान सल्फूरिक एसिड उत्पन्न होता था जिससे खाद बनाने का काम चालू किया गया था। वर्ष 1974 में खाद उत्पादन के लिए केसीसी में फर्टिलाइजर प्लांट बनाया गया। खाद बनाने की प्रक्रिया में एसिड कम पड़ने पर सल्फर मंगाया जाता था। फर्टिलाइजर बनाने के लिए रॉक फास्फेट की आवश्यकता होती थी, जिसे पहले मोरक्को से मंगवाया जाता था। मोरक्को से मंगाए गए रॉक फास्फेट से ट्रिपल सल्फर फास्फेट बनाया जाता था जो दाने और पाउडर फॉर्मेट में तैयार किया जाता था। बाद में उदयपुर से रॉक फास्फेट मंगाया जाने लगा जिससे सिंगल सुपर फास्फेट बनाया जाता था। यह महंगा पड़ने लगा तो आयात बंद करना पड़ा।

“रेल की लाइन बिछाने के बाद सभी सामान रेलवे से ही आता था। तांबा भी तैयार करके सीधा सेना, रेलवे, दूरसंचार, इलेक्ट्रिकल कंपनियों व अन्य जगह मालगाड़ी से ही भेजा जाता यह मामला रेलवे के संज्ञान में है। यह जमीन रेलवे के नाम से है, इससे रेलवे के काम लिया जाएगा। इसके लिए रेवेन्यु अथॉरिटी को अधिकृत कर रखा है। जिला कलेक्टर ने बुहाना तहसीलदार को मनोनीत कर रखा है।”

~~ मुकेश मीना, सीनियर डिवीजनल रेलवे कॉर्डिनेटर

तीस किलोमीटर दूरी की पटरी को मात्र 5 करोड़ में बेच डाला – केसीसी के पूर्व स्मेल्टर अधिकारी जेसी ओला के मुताबिक “30 किलोमीटर दूरी की पटरी को मात्र पांच करोड़ में बेच डाला केसीसी प्रोजेक्ट में सामान लाने व ले जाने के लिए रेलवे शुरू की थी, लेकिन केसीसी प्रोजेक्ट का फर्टिलाइजर प्लांट बंद होने के बाद माल गाड़ी आना बंद हो गई जिसके चलते 2004 में रेलवे लाइन की पटरियों को मात्र पांच करोड़ रुपए में बेच दिया गया।”

~~ जेसी ओला, पूर्व स्मेल्टर अधिकारी, केसीसी

पटरियों की खाली जगह पर कब्जा
अब पटरियों की खाली जगह पर लोगों ने कब्जा कर लिया है। जहां चिकनी मिट्टी थी, वहां की मिट्टी ईंट भट्टे वाले ले गए। अंतिम रेलवे स्टेशन सिंघाना का था, वहां पर अब रेलवे की जमीन पर प्लॉटिंग हो चुकी है। कई जगह कच्चे/पक्के मकान तक बन गए।

लालू प्रसाद यादव ने किया था वादा
वर्ष 2007 में रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव थे। वे खेतड़ी के ठाठवाड़ी में विधानसभा के चुनाव में प्रचार करने आए थे। तब उन्होंने हरियाणा के नारनौल के पास जोरासी से ठाठवाड़ी होते हुए सूरजगढ़ तक रेलवे लाइन जोडऩे की घोषणा की थी। जिसके बाद एक टीम सर्वे के लिए भी आई थी, लेकिन उसके बाद फाइल लाल फीते में बंद हो गई।

“खेतड़ी में फिर से रेल सेवा शुरू करवाने के लिए प्रधानमंत्री व रेल मंत्री को पत्र लिख रहे हैं। जल्द ही हमारा शिष्टमंडल रेल मंत्री से मिलेगा। अगले बजट में रेल की घोषणा करवाने की मांग की जाएगी। जनमानस शेखावटी का यह अभियान जनहित से जुड़ा हुआ है। सभी को इसमें आगे आना चाहिए।”
-अनिल गुप्ता, अध्यक्ष रेल लाओ संघर्ष समिति खेतड़ी

पटरियां उखाड़ने के बाद इनके दोनों तरफ रहने वाले लोगों में इस बेशकीमती जमीन पर कब्जा करने की होड़ शुरू हुई। अब पटरियों की खाली जगह के साथ ही पटरियों के दोनों तरफ की रेलवे की जमीन पर सैकड़ों लोगों ने कच्चा पक्का निर्माण कर कब्जा कर लिया। इस लाइन का अंतिम रेलवे स्टेशन सिंघाना था, वहां पर अब उसके आसपास रहने वाले लोगों ने अवैध कब्जा कर लिया है। कई जगह कच्चे पक्के मकान तक बन गए। रेलवे की जमीन पर प्लॉटिंग तक हो चुकी है।

फर्टीलाइजर संयंत्र के लिए उदयपुर से आता था माल – डाबला से सिंघाना तक रेल लाइन डालने का मुख्य कारण एचसीएल में माल सप्लाई का था। हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड में फर्टीलाइजर का संयंत्र लगाया गया था जिसका कच्चा माल उदयपुर से आता था। यहां से तैयार खाद व तांबा सप्लाई किया जाता था। सड़क मार्ग से ट्रांसपोर्ट महंगा पड़ता था। इसलिए कम लागत पर ज्यादा माल सप्लाई करने के मकसद से रेल की पटरियां बिछाई गई थी।

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