एमएसपी पर सरकार के प्रस्ताव का ध्यान भटकाने वाला:सरकार की छल पूर्ण नई चाल से भ्रमित नहीं होंगे किसान : रामपाल जाट
एमएसपी पर सरकार के प्रस्ताव का ध्यान भटकाने वाला:सरकार की छल पूर्ण नई चाल से भ्रमित नहीं होंगे किसान : रामपाल जाट

जयपुर : किसान महापंचायत ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी के कानून बनाने के स्थान पर भारत सरकार द्वारा 5 वर्षों के लिए अरहर, उड़द, मसूर, कपास एवं मक्का की खरीद हेतु भारत सरकार की सरकारी / अर्द्ध सरकारी – नेफेड एवं कपास निगम संस्थानों से शत प्रतिशत खरीद का अनुबंध करने का प्रस्ताव किसानों के साथ छलावा एवं फूट डालकर भटकाने वाला है।
महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा कि सरकार जनमत को साधने के लिए इस प्रकार का प्रस्ताव देकर आंदोलन को कमजोर करने का काम कर रही है। यानी सरकार एक तीर से दो शिकार करना चाहती है। वह किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी का कानून भी नहीं देना चाहती और जनमत अपने पक्ष में करना चाहती है, जिससे सरकार यह प्रकट कर सके कि सरकार तो किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने को तैयार है किंतु किसान ही न्यूनतम समर्थन मूल्य लेने को तैयार नहीं है। किसानों का आंदोलन सरकार के प्रति दुर्भावना पूर्ण है ।
उन्होंने कहा कि अभी तक 22 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया जाता है। उनमें से मात्र पांच फसलों का ही चयन भेदभाव एवं पक्षपात पूर्ण है। इससे राजस्थान की प्रमुख फसले मूंग, चना, सरसों, बाजरा को इस परिधि से बाहर कर दिया गया है । जबकि देश के कुल उत्पादन में से राजस्थान में सरसों एवं मूंग का उत्पादन लगभग आधा तथा चने के उत्पादन में भी राजस्थान मध्य प्रदेश के उपरांत दूसरे स्थान पर है । कभी-कभी दूसरा स्थान महाराष्ट्र का भी हो जाता है । इसी प्रकार देश में ज्वार उत्पादन में महाराष्ट्र एवं रागी उत्पादन में कर्नाटक प्रथम है।
पौष्टिक मोटे अनाजों को इस प्रस्ताव से बाहर रखना गलत
भारत सरकार की पहल पर वर्ष 2023 को मोटा अनाज वर्ष घोषित किया गया तथा मोटे अनाजों को श्री अन्य की संज्ञा देकर केंद्र सरकार ने श्रेय भी लिया । तब भी बाजरा, ज्वार, रागी जैसे पौष्टिक मोटे अनाजों को इस प्रस्ताव से बाहर रख दिया गया ।
भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए चावल एवं गेहूं प्रथम स्थान पर है । इनमें भी खाद्यान्न के रूप में सर्वाधिक उपयोग में आने वाला चावल ही है । भारत सरकार द्वारा मक्का के चयन का आधार एथेनॉल के लिए पेट्रोलियम कॉर्पोरेट रिलायंस उद्योग एवं मक्का की हाइब्रिड बीज का व्यापार करने वाली अमेरिका की चार बहुराष्ट्रीय कंपनियां को सहायता करने का प्रयोजन ही मुख्य प्रतीत हो रहा है।
रोचक तथ्य यह है कि बिहार, केरल एवं मणिपुर को छोड़कर देश के सभी राज्यों में कृषि उपज मंडी अधिनियम प्रभाव में है । जिसमें अनेको राज्यों में घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों पर क्रय -विक्रय को रोकने के प्रावधान है। इनमें से अधिकांश राज्यों में यह प्रावधान ऐच्छिक है जिसे आज्ञापक बनाने के लिए एक शब्द (may को shall) को बदलने की आवश्यकता है। क्रियान्वित के लिए ‘नीलाम बोली न्यूनतम समर्थन मूल्य से आरंभ होगी’ जोड़ने की आवश्यकता है । इससे किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्त होना सुनिश्चित हो जाएगा।
देश के किसान भ्रमित होने वाले नहीं
इस प्रकार के खरीद की गारंटी का कानून बनाने में केंद्र सरकार की हिचक समझ से परे है। यह स्थिति तो तब है जब भारत सरकार ने वर्ष 2000 से आरंभ कर 17 वर्षों के विचार मंथन के उपरांत आदर्श कृषि उपज एवं पशुधन विपणन (संवर्धन एवं सुविधा) अधिनियम 2017 का प्रारूप तैयार कर सभी राज्यों को उसके आधार पर कानून बनाने के लिए प्रेषित किया हुआ है। सरकार आयात -निर्यात नीति को किसानों के पक्ष में रखकर भी किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्ति की सुनिश्चितता कर सकती है । किंतु सरकार इस दिशा में भी गंभीर नहीं है, जबकि भारत सरकार की संस्था कृषि लागत एवं मूल्य आयोग ने आयात – निर्यात नीति किसानों के हितों के विरोध में होने का उल्लेख अपने प्रतिवेदनो में किया हुआ है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून देश के सर्वसाधारण किसानों के साथ राष्ट्रभक्त बुद्धिजीवों की भी आवाज है। सरकार की इस छलपूर्ण नई चाल से देश के किसान भ्रमित होने वाले नहीं है फिर जो हजारों की संख्या में किसान हितों के लिए घर बार छोड़कर स्वयं को संकट में डालकर दिल्ली कूच में सड़कों पर है, उनके भ्रमित होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता, क्योंकि वे देश के किसानों की भावनाओं को समझते हैं। इस अवसर पर संघर्षरत सहित सभी किसानों से विनती है कि वे न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी के कानून से कम से किसी भी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करें। सरकार से भी पूर्वाग्रह को छोड़कर उनके द्वारा गठित समिति एवं आयोगों की अनुशंसाओं के अनुसार देश के ललाट से किसानों की आत्महत्या के कलंक को धोने के लिए किसानों को उनकी उपज के उचित दाम देने हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून बनावे।