250 साल पुराना मंदिर, मां को चढ़ाते हैं हथकड़ी-बेड़ियां:डाकुओं की थी मन्नत की ये परंपरा, अब गुजरात-दिल्ली से आते हैं जमानत की अर्जी लेकर
250 साल पुराना मंदिर, मां को चढ़ाते हैं हथकड़ी-बेड़ियां:डाकुओं की थी मन्नत की ये परंपरा, अब गुजरात-दिल्ली से आते हैं जमानत की अर्जी लेकर
प्रतापगढ़ : माता के मंदिर में आपने सुहाग का सामान, नारियल, चुन्नरी और मिठाई चढ़ाने की परंपरा के बारे में तो सुना ही होगा। आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां भक्त माता को प्रसन्न करने के लिए हथकड़ी और बेड़ियां चढ़ाते हैं।
राजस्थान का ये मंदिर 250 वर्ष पुराना है। बताया जाता है कभी डाकू इस मंदिर में माता से मन्नत मांगते थे, पूरी होने पर हथकड़ी और बेड़ियां चढ़ाने आते थे। तभी से मंदिर में यह परंपरा चली आ रही है।
आजकल लोग जेल से रिहाई, जमानत और कानूनी दांव-पेंच से निजात पाने के लिए मन्नत मांगने आते हैं और पूरी होने पर पुरानी परंपरा के अनुसार हथकड़ी और बेड़ियां चढ़ाने आते हैं। तो चलिए आपको भी रूबरू करवाते हैं इस अनोखी परंपरा वाले मंदिर से।
कोर्ट के चक्कर लगाने वाले बन जाते हैं भक्त
हाल ही में हमारी मीडिया टीम राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के मौके पर प्रतापगढ़ स्थित उस स्थान पर पहुंची थी, जहां माता सीता ने अपना वनवास काटा था। वहां हमें इस अनोखे मंदिर की भी जानकारी मिली। सीतामाता अभ्यारण्य से करीब 60 किलोमीटर दूर यह दिवाक माता का मंदिर है।
प्रतापगढ़ से इसकी दूरी करीब 35 किलोमीटर है। जिले की जोलर ग्राम पंचायत में स्थित दिवाक माता मंदिर तक कार, बाइक या अपने वाहन से आसानी से पहुंचा जा सकता है। करीब 500 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर बेहद प्राचीन है। यहां दिवाक माता दो अन्य देवियों के साथ विराजमान हैं।
कहा जाता है कि इस मंदिर में जो भी मन्नत मांगी जाती है, वह जरूर पूरी होती है। यही कारण है कि यहां दूसरे राज्यों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं। यहां अधिकांश ऐसे भक्त आते हैं, जो किसी न किसी आरोप में कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं। ऐसे भक्त यहां मन्नत मांगते हैं और पूरी होने पर हथकड़ी चढ़ाते हैं।
कानूनी दांव- पेंच से मुक्ति के लिए लगती है अर्जी
मंदिर के पुजारी नाथजी भाई के अनुसार आज के दौर में भी दिवाक माता के चमत्कार और श्रद्धालुओं के विश्वास में कमी नहीं आई है। अब यहां आने वाले श्रद्धालु कानूनी दांव-पेंच से बचने के लिए मंदिर में अर्जी लगाते हैं। इसके लिए यहां आने वाले श्रद्धालु माता से मन्नत मांगते हैं और पूरी होने पर हथकड़ी चढ़ाते हैं। इसी कारण यहां पर राजस्थान ही नहीं मध्यप्रदेश और गुजरात से भी लोग आते हैं। उन्होंने बताया कि राजा-महाराजा के समय से यह परंपरा चली आ रही है।
सरपंच का चुनाव जीता तो बनवाया मंदिर
वर्ष 2000 में हुए पंचायत चुनाव के दौरान डूंगरपुर के पूनमचंद निनामा ने यहां मन्नत मांगी थी कि अगर वो सरपंच का चुनाव जीता तो पहाड़ी पर माताजी का मंदिर बनवाएगा। इसे संयोग कहें या माताजी का चमत्कार, पूनमचंद चुनाव जीत गया। उन्होंने 2007 में पहाड़ी पर दिवाक माता का भव्य मंदिर बनवाया।
वर्तमान में मंदिर की यह नई इमारत है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि पूनमचंद ने पहले दिवाक माता और नाहरसिंग माता और बाद में कालिका-शीतला माता की मूर्ति स्थापित की थी।
पहले मंदिर के चारों और घना जंगल था और तक पहुंचने के लिए 500 मीटर ऊंची पहाड़ी पर पैदल ही जाना होता था। अब नया और भव्य मंदिर बन गया है। श्रद्धालु मंदिर तक कार से पहुंच सकते हैं।
डाकुओं ने शुरू की थी अनोखी परंपरा
स्थानीय लोगों के अनुसार मालवा और मेवाड़ इलाके में प्राचीन समय में डाकुओं का बोलबाला था। तब डाकू हमेशा मां के उपासक हुआ करते थे और इस मंदिर पर मन्नत लेने आते थे। मन्नत पूरी होने और पकड़े नहीं जाने पर वे दिवाक माता के मंदिर में हथकड़ी और बेड़ियां चढ़ाकर जाते थे। यहां पहले घना जंगल था और उस दौरान आसपास में डाकू ही शरण लेते थे। इसी वजह से मंदिर में डाकू ही देवी की पूजा करने आते।
मंदिर में मन्नत पूरी होने को लेकर कई दंतकथाएं भी प्रचलित हैं। रियासत काल में पृथ्वीराणा नाम का एक कुख्यात डाकू हुआ करता था। बताते हैं पृथ्वीराणा ने जेल में बंद होने के दौरान दिवाक माता की मन्नत ली थी कि अगर वह जेल से बाहर आ गया तो वह सीधे यहां माता के दर्शन करने आएगा।
कहा जाता है कि उसकी बेड़ियां अपने आप ही टूट गई और वह जेल से भाग गया। इसके बाद वह मंदिर पहुंचा और यहां बेड़ियां चढ़ाई। स्थानीय नागरिक रूपा ने बताया कि जेल से छूटने पर लोग यहां हथकड़ी चढ़ाने दूर-दूर से आते हैं। मन्नत पूरी हाेती है, तभी तो यहां दिल्ली से भी लोग आते हैं और मन्नत मांगते हैं।
250 वर्ष पुराना है मंदिर, 200 साल पुराने त्रिशूल पर चढ़ती है बेड़ियां
मान्यता के अनुसार यह मंदिर करीब 250 वर्ष पुराना है। पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर में पहले माता की मूर्ति खुले में पत्थर के रूप में थी, जिसकी पूजा की जाती थी। यहां नवरात्रि पर विशेष पूजा अर्चना होती है।
मंदिर परिसर में एक प्राचीन त्रिशूल गढ़ा हुआ है, जो 200 वर्ष पुराना बताया जाता है। इस त्रिशूल पर भक्तों ने कई हथकड़ियां और बेड़ियां चढ़ा रखी हैं। यहां चढ़ाई गई कई बेड़ियां 50-100 साल से भी पुरानी बताई जाती हैं। कहा जाता है कि यह रिसायत काल के दौरान से मंदिर प्रांगण में रखी हुई हैं।
दिवाक माता के प्रति आस्था के कारण नहीं काटते जंगल
प्रतापगढ़ जिले की जोलार ग्राम पंचायत में स्थित इस मंदिर के आस-पास के इलाके में आबादी होने के बावजूद यहां आज भी घना जंगल है। मंदिर के प्रति श्रद्धा के चलते ग्रामीण इस इलाके में पेड़ नहीं काटते हैं। हालांकि अब इलाके में बाहर से आकर भी लोग बस गए हैं, वे इस आस्था को नहीं मानते हैं।
इसको लेकर कई बार विवाद भी हो जाता है। मंदिर के चारों और हरियाली है। बारिश के मौसम में यहां का नजारा देखने लायक होता है। मंदिर के पास ही एक बड़ा तालाब है, जिसमें साल भर पानी रहता है।