‘मुझे गाता देख शाहरुख बोले- 10 हिरोइन संग डांस करूंगा’:ऑस्कर पर सुखविंदर बोले- रहमान ही मुझे लोगों के सामने लाए, ये किसी अवॉर्ड से बड़ा
'मुझे गाता देख शाहरुख बोले- 10 हिरोइन संग डांस करूंगा':ऑस्कर पर सुखविंदर बोले- रहमान ही मुझे लोगों के सामने लाए, ये किसी अवॉर्ड से बड़ा

जयपुर : फेमस सिंह सुखविंदर सिंह रविवार को जयपुर में रहे। उन्होंने राजस्थान के लिए एक गाना भी तैयार किया। जिसे उन्होंने राजस्थान की शौर्य गाथा नाम दिया है। इस दौरान मीडिया से सुखविंदर ने ऑस्कर में क्रेडिट नहीं मिलने से लेकर गानों के बोल पर सेंसरशिप और अपनी जर्नी के बारे में बात की। उन्होंने बताया कि जब उन्होंने दर्दे डिस्को रिकॉर्ड किया तो पांच माइक लगवाए थे। ये देखकर शाहरुख खान ने कहा था कि जब सुखी 5 माइक पर गा सकता है। मैं भी 10 हिरोईन के साथ डांस करूंगा।
एआर रहमान पर बात करते हुए उन्होंने बताया- उनके पिता के गुरु राजस्थान से ही थे। उनके पास राजस्थान का ही संगीत है। वैसे उनका यहां पर एक छोटा सा घर भी है, लेकिन वे बताते नहीं है।
उन्होंने कहा- मेरे गानों में नेशन प्रायोरिटी रहा है। इसी के चलते उन्होंने कर ‘हर मैदान फतेह’, ‘चक दे इंडिया’ और ‘जय हो’ जैसे गाने गाए। उन्होंने यह भी कहा कि जयपुर में आमेर फोर्ट के नीचे छोले-कुल्चा हमेशा खाता हूं। आगे पढ़िए सुखविंदर सिंह का पूरा इंटरव्यू…
सवाल: राजस्थान की शौर्य गाथा पर आपने गाना बनाया है, किस तरह की झलक दिखेगी?
सुखविंदर: जब भी हम राजस्थान के किसी भी शहर में आते है तो यहां के खान-पान, रहन-सहन, कल्चर और इतिहास के बारे में बातचीत की जाती है। मैंने मंथन किया कि शौर्य गाथा कही जाती है, गाई जाती है, क्यों न इसे बड़े पैमाने पर प्रस्तुत किया जाए। ऐसे में मैंने राजस्थान मेरी जान, भारत पर दिल कुर्बान गाना लिखा है। इसे हम जयपुर में परफॉर्म करने वाले हैं। मेरे कुछ गानों में नेशन प्रायोरिटी पर रहा है। ‘कर हर मैदान फतेह’, ‘जय हो’, ‘चक दे इंडिया’ जैसे गानों में देशप्रेम की झलक दिखती है।
ऐसे में खेल युवा महोत्सव में राजस्थान की शौर्य गाथा को प्रस्तुत किया जाएगा। मेरा खेलों से विशेष जुड़ाव रहा है। मैं खुद भी स्पोटर्स पर्सन रहा हूं। मैंने बचपन से जितना रियाज और संगीत की तरफ ध्यान दिया है। उतना ही मैंने बतौर एथलीट स्पोर्ट्स के लिए भी ध्यान दिया है। स्पोर्ट्स का मतलब ईश्वरीय है। ऐसे में वह चमक कॉन्सर्ट में दिखेगी।
उन्होंने कहा- मुझे तीन नेशनल अवॉर्ड मिलने की खुशी है। जब अवॉर्ड मिल रहे थे, तब कहा गया था कि आपको ऐसा लगता होगा कि हम आपके गीतों के लिए यह श्रेय दे रहे है, लेकिन कही न कहीं आपका जब भी बायोडेटा आया है, आपने जन्म स्थान पर भारत नाम लिखा है। मैं ये तालियां बटोरने के लिए नहीं कहता।

सवाल: जयपुर में छोले कुल्चे नहीं छोड़ते, क्या राज है?
सुखविंदर: यहां एक चचा है, जो इस बात पर नाराज रहते है कि खुल्ले पैसे देकर चले जाते हो। उन्होंने पहली दफा जिस मोहब्बत के साथ बनाया था, वो स्वाद आज तक बरकरार है। हमारा ब्रेकफास्ट अब वहीं होने वाला है। उस ठेले पर ही। आमेर किले के नीचे ही ठेला है। कागज के प्लेट पर वह स्वाद है, जो और कही नहीं मिल सकता। इज्जत अफजाई के साथ वहां मुझे खाना मिलता है।
सवाल: वियना (ऑस्टिया) को संगीत का मक्का कहते है और आपने रिसर्च की है कि पंजाब और राजस्थान से वहां संगीत आगे बढ़ा है?
सुखविंदर: ब्रिटिश जब आए, उससे पहले डच लोग आए। उनका पार्टी डेस्टिनेशन कच्छ था। उनके लिए जो मनोरंजन करते थे, वे जर्मनी से आते थे। वे कांजोर कम्यूनिटी के थे। वे गाते थे, तमाशे करते थे। पंजाब और राजस्थान से देशी गाने वाले थे। जो लोक गीत गाते थे। सुर संगीत से जुड़ी जमीनी लोगों काे कच्छ बुलाते थे। जब कच्छ में डच और ब्रिटिश की संधी हुई तो डच लोगों को ऑस्टिया और नॉर्वे, हॉलेंड चले जाने के लिए कहा गया। वे अपने साथ यहां के कलाकारों को ले गए। इनमें राजस्थान और पंजाब के सिंगर सबसे ज्यादा थे। ऑस्टिया में अपनी आवाज की परफॉर्मेंस दी। पीढ़ी दर पीढ़ी आज भी वे कलाकार मौजूद हैं। उनके पास तब की यादें भी है, जो मैंने उनसे सुनी है।

सवाल: छैंया छैंया से जय हो तक की जर्नी कैसी रही, रहमान से किस तरह जुड़ाव है?
सुखविंदर: एआर रहमान साहब ही थे, जिन्होंने मुझे बॉलीवुड में चांस दिया। जब तारीफ की बात आती है तो कंजूसी नहीं करनी चाहिए। वे सच मायने में मेरे गॉड फादर हैं। उन्होंने छैंया छैंया गाने से मुझे फिल्म इंडस्ट्री में लॉन्च किया। मैंने उस वक्त गाने का पंजाबी वर्जन सुनाया था। पीर बाबा बुल्ले शाह का कलाम था। हारमोनियम और तबले पर सुनाया था। तबले वाला राजस्थान के सीकर का था। हारमोनियम वाला भी सीकर से ही था। तब उन्होंने मुझे गाना दिया। बड़ा उपकार दिया। पंजाबी वर्जन को उन्होंने गुलजार साहब ने स्थानीय भाषा में लिखा। वही धुन का इस्तेमाल किया गया।
आगे गाने चलते रहे, छोटी-छोटी महफिलें भी सजाते रहे। इसके बाद ‘जय हो’ भी साथ में किया। ऑस्कर तक गाना गया। पहले म्यूजिक डायरेक्टर है, जिन्होंने 25 साल से पूरा माहौल ही चेंज किया है। चेन्नई का रहने वाला एक तमिल पर्सन है। इसके खून में राजस्थानी संगीत है। जब भी रहमान की बोर्ड या हारमोनियम बजाते हैं। सबसे पहले संगीत राजस्थान का ही निकलकर आता है। इस पर मैंने खूब रिसर्च भी की। डोसा वाले आदमी दालबाटी चूरमा का स्वाद कैसे दे रहा है? पता चला कि पिता के गुरु राजस्थान से ही थे। उनके पास राजस्थान का ही संगीत है। वैसे उनका यहां पर एक छोटा सा घर भी है, लेकिन वे बताते नहीं है।

सवाल: जय हो काफी पॉपुलर रहा, लेकिन आपको क्रेडिट बहुत लेट मिला?
सुखविंदर: रहमान साहब अंदर से जैसे व्यक्ति हैं, वो ही चेहरे पर दिखते हैं। वे दोषपूर्ण व्यक्ति है। कभी-कभी कोई सलाहकार मिल जाते है। शायद उन्हीं की वजह से उनसे यह मिस्टेक हुई। ऑस्कर के अचीवमेंट को एक तरफ तराजू में रखता हूं। दूसरी तरफ रहमान साहब को रखता हूं। मैं यह भूल नहीं सकता कि 23 साल पहले उन्होंने ही मुझे लॉन्च किया। ऑस्कर हर साल होता है, रहमान सर ही लोगों के सामने सुखविंदर को लाए थे। यह रिवॉर्ड किसी भी अवॉर्ड से बड़ा है। मेरे माथे पर शिकन नहीं आती है। वे यूनिवर्सल आदमी है। राजस्थान और पंजाब का रिवाज अलग है। हम लोग गिनवाते नहीं कि कितनी रोटी खा गए। मौज कर, हम तो उस कौम के लोग हैं। उसके बारे में कोई बोखलाट नहीं है।
सवाल: दर्दे डिस्को गाने को आपने जूते उतार कर गाया था, क्या कहानी है?
सुखविंदर: यह गाना गुलजार साहब ने लिखा था, जब यह आया तो मैंने गुलजार साहब को फोन कर कहा- कमाल लिखा है। शाहरुख के साथ बात की। मैंने स्टूडियो में कहा- यार चार पांच माइक लगा। 15 गुलदस्ते ला। वो कहते नखरे कर रहा है। मैंने कहा- आज तमाशा करने का मन कर रहा है। टेक्निकली माइक एक लगता है, लेकिन उस दिन पांच लगे। मैं रिकॉर्डिंग से पहले हमेशा जूते उतारता हूं। इस गाने के लिए स्पेशली मैंने जूते निकाले हुए थे, क्योंकि चाहता था कि मेरी उछल-कूद की आवाज में जूतों की आवाज न आ जाए। चारों तरफ गुलदस्ते रखे थे। फूल गिरे हुए थे। मैं नाचते-नाचते गा रहा था। लोग वीडियो बना रहे थे। शाहरुख को वीडियो भेज रहे थे। शाहरुख बहुत खुश हो रहा था। बोल रहा था, इतने नाच गाने के बाद भी एक जगह भी वॉइस में मॉड्यूल नहीं हुआ। शाहरुख अपने साथी लोगों की बहुत सराहना करता है। मेरी परफॉर्मेंस के बाद शाहरुख ने कहा था कि सुखी चार माइक लगवा सकता है तो मैं भी 10 हीरोइनों के साथ डांस करूंगा।
सवाल: आपके स्टूडियो में चाय लेकर आए एक बच्चे को बांसुरी थमाई थी, आज जाना-माना ड्रमर है?
सुखविंदर: हां उसने चाय बनाई थी, मैंने देखा कि वह बहुत छोटा है। चाय बना रहा है। पांच-छह साल का था। चाय बेचना गुनाह नहीं था, उम्र बहुत छोटी थी। मैं क्या दे सकता था। मैं भीख नहीं देना चाहता था। मैंने उसे कहा कि तू किसी साज को चूज कर ले। वह ड्रम पर ठक ठक करने लगा। उसे बांसुरी दी। आज वह इंडिया का बेस्ट ड्रमर है। आज वह कभी कभी मुझे पूछ लेता है कि किसी चीज की जरूरत तो नहीं। यह देखकर मुझे भी अच्छा लगता है।
सवाल: आपने कब सोचा कि म्यूजिक की तरफ जाना है?
सुखविंदर: उस समय बहुत छोटा था, स्कूल में गाता था। एक कॉम्पिटिशन में मुझे गाने के लिए कहा गया। जजेज मना करते रहे कि यह बहुत छोटा है। कुछ हो गया तो। कुछ लोगों की मदद से जजेज मान गए। उस वक्त जो गाना मैंने गाया था, वह जजेज ने चार बार सुना था। आज भी शिमला के एक व्यक्ति के पास है। वो व्यक्ति यही कहते हैं कि जब यह वीडियो तुम्हे दे दिया तो तुम मेरे पास कैसे आओगे। वहां लोगों ने कहा कि ट्रॉफी इसे दे दो। मैं उस वक्त नाचने लगा। जब ट्रॉफी मुझे दी गई तो मैंने उसे धक्का मार दिया। लोगों को लगा कि बच्चा तो बड़ा बदतमीज है। मैंने उस वक्त कहा कि मुझे तो टॉफी चाहिए। टॉफी के चक्कर में नाच रहा था। टॉफी मिली तो वह लेकर भाग गया। मैंने यह रहमान को भी कहा था कि टॉफी ही मेरी ट्रॉफी है। तुम ही मेरी टॉफी हो।
सवाल: रियलिटी शो कितने फायदेमंद है, कितना टैलेंट निकलता है?
सुखविंदर: मेरे पास इतना समय नहीं रहता कि मैं रियलिटी शो जज करूं। स्पेशल एपिसोड के लिए जरूर जाता रहता हूं। रियलिटी शो बिजनेस की तरह है। कभी-कभी जाता हूं तो कुछ परफॉर्मेंस को देखकर हैरान हो जाता हूं। मैं हमेशा अपने से बेहतर सिंगर को सुनता हूं। इसके दो कारण हैं। एक तो वो मुझे सीखा जाते हैं। दूसरा मेरा घमंड से परहेज रहता है। जब मैं उन्हें सुनता हूं। लगता है कि हमारे इस पौधे में कुछ और पौधे आने वाले हैं। बगिया खिलने वाली है। महक बढने वाली होती है, लेकिन उनमें से गायब होने वाले ज्यादा रहते है। इन टैलेंट को सही मेंटोर नहीं मिल पाता। मेरे मेंटोर रहमान हैं। मैं कहां तक पहुंच गया। मैं तकनीक उनसे सीखता हूं। सिंगिंग स्टाइल उनसे सीखता हूं। मेंटोर का फर्ज बनता है कि कंटेंस्टेंट को अच्छे काम के लिए सलाह देनी चाहिए। मैं जिस दिन जज बनकर आ गया, रियलिटी शो की तस्वीर बदल दूंगा।
सवाल: गीतों में अपशब्द को लेकर कई बार आपत्तियां आती है, क्या गानों पर सेंशरशिप होनी चाहिए?
सुखविंदर: मैं कितने साल से इस विषय पर बोल रहा हूं। फिल्म लगती है तो सेंसरबोर्ड वाले देखते ही होंगे। क्या वहां गाने नहीं चलते। गाने तो चलते ही होंगे। सेंसरबोर्ड उन्हें नहीं सुन रहा। एक बंदा तो सारी फिल्में नहीं देखता है। बीच में तो ऐसे गाने बहुत ज्यादा आ रहे थे। लोग रात को काला चश्मा पहनकर। दिन में रंगीन कपड़े पहनकर ऐसे गाने लाते है। मैंने कभी ऐसे गाने नहीं गाए। ऐसे गाने बनाने वाले भी मुझसे दूर ही रहे।