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खेतड़ी कस्बे में जंगली जानवर का आतंक:13 दिनों में पाँच हमले 14 बकरियों को उतारा मौत के घाट


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खेतड़ी कस्बे में जंगली जानवर का आतंक:13 दिनों में पाँच हमले 14 बकरियों को उतारा मौत के घाट

ग्रामीणों ने लगाया वन विभाग पर लापरवाही का आरोप, प्रशासन व जनप्रतिनिधि मौन

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : विजेन्द्र शर्मा 

खेतड़ी : खेतड़ी कस्बा इन दिनों जंगली जानवर के आतंक से सहमा हुआ है। बीते 13 दिनों में पांच घटनाएं घटित हो चुकी है जिनमें अलग-अलग जगहों पर 14 बकरियों को अज्ञात जानवर ने मौत के घाट उतार दिया। लगातार हो रहे इन हमलों ने कस्बे वासियों की रातों की नींद उड़ा दी है और दिन में भी लोग भय के साये में जीने को मजबूर हैं। 13 दिनों में पांच घटनाएं घटित हो चुकी है लेकिन वन विभाग केवल खानापूर्ति के सिवाय कुछ भी ठोस कदम नहीं उठा रहा केवल खानापूर्ति के लिए कैमरे लगाकर अपनी फॉर्मलटी पूरी कर रहे हैं।

मंगलवार को रात के सन्नाटे में हमला कर चार बकरियों को मौत के घाट उतारा

मंगलवार रात खेतड़ी कस्बे के टोडी मोहल्ले में रामचंद्र वाल्मीकि के बाड़े में जंगली जानवर ने घुसकर चार बकरियों को मौत के घाट उतार दिया। घटना की सूचना मिलते ही वन विभाग की टीम मौके पर तो पहुँची, लेकिन ग्रामीणों का आरोप है कि विभाग हर बार सिर्फ औपचारिकता निभा रहा है।

कस्बे वासियों का कहना है कि वन विभाग इस हमले को जंगली जानवर की बजाय आवारा कुत्तों का हमला बताकर अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रहा है। इसी लापरवाही के विरोध में कस्बेवासियों ने दो दिन पहले सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया था और उपखंड अधिकारी को ज्ञापन दिया था। लेकिन अब तक इन घटनाओं को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। कांग्रेस जिला उपाध्यक्ष गोकुलचंद सैनी ने कहा कि कस्बेवासियों ने प्रशासन को सात दिन का समय दिया था। यदि इस अवधि में जंगली जानवर को पकड़कर दूसरी जगह नहीं छोड़ा गया और पीड़ित परिवारों को उचित मुआवजा नहीं दिया गया तो ग्रामीणों को मजबूरन फिर से सड़कों पर उतरना पड़ेगा।

जीवन अस्त-व्यस्त, लोग घरों में कैद

ग्रामीणों ने बताया कि लगातार हो रहे हमलों के चलते अब लोग सुबह-शाम खेतों या बाड़ों में जाने से डरने लगे हैं। बच्चों को स्कूल भेजने में भी डर लग रहा है। कई घरों में पशुपालकों की आजीविका पूरी तरह चरमरा गई है। मवेशियों के मरने से आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ रहा है और मुआवजे की कोई व्यवस्था नहीं की जा रही।

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