राजपूत मंच द्वारा आयोजित इतिहास बचाओ महासभा आयोजित हुई
काल्पनिक संस्थापक पर सभागी राजपूत समाज का 'रण':बोले- इतिहास से छेड़छाड़ नहीं सहेगा समाज, कानूनी लड़ाई और जन आंदोलन की चेतावनी

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : चंद्रकांत बंका
झुंझुनूं : इतिहास को लेकर उपजे विवाद के बीच झुंझुनूं के शार्दुल छात्रावास में रविवार को सहभागी राजपूत समाज की ओर से एक बड़ी महासभा आयोजित की गई। सीकर, चूरू, नागौर, हनुमानगढ़ और जयपुर सहित प्रदेशभर से हजारों की संख्या में समाज के लोग इस सभा में पहुंचे। मंच से एकजुटता के साथ ऐलान हुआ कि सरकार अगर एक काल्पनिक चरित्र को झुंझुनूं के संस्थापक के रूप में स्थापित करने की कोशिश करती है, तो समाज कानूनी और जन आंदोलन दोनों स्तरों पर इसका विरोध करेगा।
महासभा की अगुवाई कर रहे सहभागी समाज के अध्यक्ष इंजीनियर महावीर सिंह शेखावत ने कहा कि सरकार ने हाल ही में झुंझुनूं जिले की एक सर्किल का नाम झुंझार सर्किल के नाम पर रख दिया है, जिसकी ऐतिहासिक प्रमाणिकता संदिग्ध है। “ऐसे व्यक्ति को संस्थापक बताया जा रहा है, जिसका जन्म 17वीं या 18वीं सदी के आसपास बताया जा रहा है, लेकिन सरकार के पास कोई ठोस दस्तावेज या ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है,
“फर्जी पात्र को जबरन थोपने की कोशिश”
शेखावत ने सवाल उठाया कि जब तक किसी व्यक्ति के जन्म, कार्यकाल और भूमिका को लेकर स्पष्ट ऐतिहासिक आधार न हों, तब तक उसे जिले या शहर का संस्थापक कैसे घोषित किया जा सकता है? “यह एक सुनियोजित साजिश लगती है। सरकार तथ्यों की जगह भावनाओं और कल्पनाओं पर आधारित फैसले ले रही है, जिससे न केवल इतिहास से अन्याय हो रहा है, बल्कि समाज की भावनाएं भी आहत हो रही हैं,
महासभा में शामिल वक्ताओं ने कहा कि किसी भी ऐतिहासिक निर्णय को लेने से पहले विशेषज्ञों, इतिहासकारों और स्थानीय समाज की राय लेना जरूरी है। लेकिन इस पूरे मामले में सरकार ने एकतरफा फैसला लेकर एक विवादित नाम को संस्थापक के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया है।
न्यायपालिका का रुख और आंदोलन की चेतावनी
समाज के नेताओं ने साफ किया कि यदि सरकार ने इस मुद्दे पर पुनर्विचार नहीं किया और प्रमाणिकता साबित नहीं की, तो न्यायालय की शरण ली जाएगी। साथ ही, अगर किसी स्तर पर न्यायिक प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करने की कोशिश हुई, तो समाज सड़कों पर उतरने से भी पीछे नहीं हटेगा।
“यह केवल एक नाम का सवाल नहीं है, यह हमारे इतिहास, हमारी अस्मिता और हमारे सम्मान का सवाल है,” शेखावत ने कहा। उन्होंने कहा कि इस मसले पर जल्द ही एक विधिक समिति गठित की जाएगी जो दस्तावेजों की जांच कर अदालत में चुनौती पेश करेगी।
राजनीतिक और सामाजिक सशक्तिकरण की भी उठी बात
महासभा में यह भी तय किया गया कि अब समय आ गया है कि समाज केवल विरोध की मुद्रा में न रहे, बल्कि राजनीति, प्रशासन और आर्थिक व्यवस्थाओं में भागीदारी भी सुनिश्चित करे। इंजीनियर शेखावत ने कहा कि सहभागी समाज को हर स्तर पर मजबूत करना जरूरी है, ताकि ऐसी किसी भी ऐतिहासिक या सामाजिक अन्याय की स्थिति में सामूहिक और प्रभावी प्रतिक्रिया दी जा सके।
इस दौरान आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) को स्थानीय निकायों और शहरी निकायों में आरक्षण देने की मांग भी जोरदार ढंग से उठाई गई। वक्ताओं ने कहा कि यदि सरकार ने आगामी पंचायत और नगरीय चुनावों से पहले EWS आरक्षण की व्यवस्था लागू नहीं की, तो राजधानी में विधानसभा का घेराव किया जाएगा।
कायमखानी समाज के साथ एकता का ऐलान
महासभा में सामाजिक समरसता की दिशा में भी पहल की गई। वक्ताओं ने कहा कि कायमखानी समाज को मिला आरक्षण यथावत रहना चाहिए, और इस दिशा में सहभागी समाज गांव-गांव जाकर जनजागृति अभियान चलाएगा। “हम आरक्षण को लेकर किसी समाज के खिलाफ नहीं, बल्कि अपने अधिकारों की रक्षा के लिए मैदान में हैं,” मंच से यह स्पष्ट संदेश दिया गया।
झुंझुनूं से उठी आवाज, अब पूरे राजस्थान में गूंजेगी
महासभा में यह निर्णय लिया गया कि यह संघर्ष केवल झुंझुनूं तक सीमित नहीं रहेगा। सीकर, नागौर, चूरू, जयपुर सहित राजस्थान के अन्य जिलों में भी भ्रमण कर समाज को संगठित किया जाएगा और लोगों को जागरूक किया जाएगा। इस क्रम में एक राज्यव्यापी जनसंवाद यात्रा शुरू करने की घोषणा भी की गई।
कार्यक्रम के अंत में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि किसी भी प्रकार के ऐतिहासिक तथ्य और निर्णय बिना प्रमाण और स्थानीय सहमति के सार्वजनिक नहीं किए जाएं। “सरकार को इतिहास के साथ खिलवाड़ करने का अधिकार नहीं है,” यह बात एक स्वर में रखी गई।