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धर्म और सियासत


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लाइफस्टाइल

धर्म और सियासत

धर्म की सड़क पर सियासत का मेला है,
इंसानियत बीच में खड़ी अकेली, हताश और बेसहारा है।
नमाज़ छत पर नहीं पढ़ सकते, सड़क पर भी नहीं,
क्योंकि नियमों की दीवारें वहाँ खड़ी दिखती हैं कहीं।
पर कांवड़ लेकर झूमना, डीजे बजाना,
सड़क जाम करना, सब माफ है – यही तो सियासत का कारनामा है।
कोई गटर में मस्ती करे, कोई नदियों में ढोल बजाए,
कोई सड़कों को अखाड़ा बनाए,
सत्ता मुस्कुरा कर ताली बजाए।
क्या यही धर्म है? क्या यही आस्था का रूप?
या फिर यह भीड़ की राजनीति का महज एक झूठा भूत?
इंसानियत की चीखें कोई नहीं सुनता,
शिक्षा, अस्पताल, रोज़गार सब कहीं खो जाता।
पर सड़कों पर आस्था के नाम पर जो हो, सब चलता है,
क्योंकि वोट वहीं से मिलता है, सत्ता का प्यासा वहीं पलता है।
कहने को बहुत कुछ है, पर कलम कांप जाती है,
कहीं फिर से कोई FIR ना लग जाए, यही डर सताती है।
आओ, सोच बदलें, आस्था को घर में रखें,
और इंसानियत को दिल में जगाएं।
क्योंकि सड़कों पर भगवान नहीं,
मासूमों की दुआएं रोती नज़र आती हैं।

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