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महिला चिकित्सक पर नव प्रसूता से जबरन बाहरी जांच करवाने और पैसे नहीं देने पर सीकर रेफर करने की धमकी देने का आरोप


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महिला चिकित्सक पर नव प्रसूता से जबरन बाहरी जांच करवाने और पैसे नहीं देने पर सीकर रेफर करने की धमकी देने का आरोप

सीएमएचओ को दी गई लिखित शिकायत, परिजनों ने की निष्पक्ष जांच की मांग

जनमानस शेखावाटी संवाददाता :  रविन्द्र पारीक

नवलगढ़ : नवलगढ़ के जिला अस्पताल में चिकित्सा व्यवस्था पर एक बार फिर सवाल उठ खड़े हुए हैं। अम्बेडकर नगर वार्ड नं. 23 निवासी संदीप कुमार मालपूरियां ने महिला चिकित्सक डॉ. माया सैनी पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि 19 जून 2025 को उनकी पत्नी को प्रसव के लिए नवलगढ़ जिला अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। डिलीवरी प्रक्रिया सफलतापूर्वक होने के बाद, अगले दिन महिला चिकित्सक द्वारा अस्पताल के बाहर की एक निजी लैब से जांच करवाने के लिए दबाव डाला गया।

संदीप कुमार के अनुसार, डॉ. माया सैनी ने अस्पताल में कार्यरत स्टाफ के जरिए दो युवकों को फोन करके बुलवाया, जिन्होंने उनकी पत्नी का ब्लड सैंपल लेकर बाहर की लैब में जांच करवाई। इसके बदले में 1100 रुपये की मांग की गई। जब परिजनों ने जांच का खर्च वहन करने से इनकार किया, तो चिकित्सक ने सीधे तौर पर सीकर रेफर करने की धमकी दी।

संदीप का आरोप है कि डॉक्टर ने उनकी पत्नी से अस्पताल के फोन से बात करवाते हुए कहा, “अगर पैसे नहीं दिए तो मैं तुम्हें सीकर रेफर कर दूंगी।” यह सुनकर परिजन आक्रोशित हो उठे। बाद में इस पूरे मामले की लिखित शिकायत जिला मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) को सौंपी गई।

परिजनों की मांग:

मामले की निष्पक्ष जांच की जाए।

दोषी महिला चिकित्सक के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।

सरकारी अस्पताल में बाहरी लैब से जबरन जांच करवाने की प्रवृत्ति पर रोक लगाई जाए।

स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी:

मामले की शिकायत मिलने के बावजूद अभी तक स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। वहीं अस्पताल प्रशासन ने भी इस पूरे मामले पर चुप्पी साध रखी है।

सवालों के घेरे में चिकित्सा व्यवस्था:

सरकारी अस्पतालों में मुफ्त जांच और इलाज की सुविधा के दावों के बीच यदि मरीजों को निजी लैब की ओर जबरन मोड़ा जाता है और आर्थिक दबाव बनाया जाता है, तो यह स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

यह घटना न केवल मरीजों की सुरक्षा और अधिकारों को लेकर चिंता उत्पन्न करती है, बल्कि सरकारी अस्पतालों में व्याप्त निजी लाभ की मानसिकता पर भी सवाल खड़े करती है।

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