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कारगिल विजय के 25 वर्ष:7 साल बाद समझ आया कि पिता कारगिल शहीद तो गर्व हुआ… गम कि आंखें उन्हें देख तक नहीं पाईं


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कारगिल विजय के 25 वर्ष:7 साल बाद समझ आया कि पिता कारगिल शहीद तो गर्व हुआ… गम कि आंखें उन्हें देख तक नहीं पाईं

वे बच्चे जो पिता की शहादत के वक्त मां के गर्भ में थे, आज उन्हीं की कहानी...

जयपुर : 26 जुलाई को कारगिल विजय के 25 साल पूरे हो रहे हैं। इस सैन्य ऑपरेशन में राजस्थान के 60 जवान शहीद हुए थे। इनमें 8 जवान ऐसे भी थे, जिनकी पत्नियां गर्भ से थीं। पिता की शहादत के बाद बच्चों का जन्म हुआ। भास्कर ने 4 बच्चों से मुलाकात की। इन्होंने पिता को तस्वीरों-मूर्तियों या संभाल कर रखे उनके सामान में ही देखा। ऐसी ही चार कहानियां पढ़िए, जो गर्व और गम दोनों को सहेजे हुए है।

पापा को देखा नहीं, कारगिल दिवस पर उन्हें चिट्ठी लिखी

झुंझुनूं के ही इंदरसर के सिपाही राजकुमार 2 जुलाई 1999 को शहीद हुए थे। बेटी नीरू का जन्म 4 महीने बाद हुआ। नीरू कहती हैं- मैं कभी पापा को पापा कहकर बुला नहीं पाई। उन्हें छुआ नहीं। दुलार मिला नहीं। सब कहते हैं कि मैं पापा जैसी हूं, वो कैसे थे ये नहीं पता। पापा की हैंडराइटिंग को कॉपी करती हूं। पिता की यादों को एक रजिस्टर, तिरंगे और उनके बर्तन और कपड़ों में देखती हूं।

राजस्थान के 60 शहीद

सैनिक कल्याण बोर्ड के अनुसार राजस्थान के 60 जवान शहीद हुए, इनमें 38 सिपाही, 15 नॉन कमिश्नड अफसर, 6 जूनियर कमिश्नड अफसर और एक अफसर शामिल हैं।

देश का गौरव 674 शहीद

नेशनल वॉर मेमोरियल के मुताबिक मई 1999 में शुरू हुआ ऑपरेशन विजय 67 दिन चला था। 674 सैनिक शहीद हुए। सर्वोच्च बलिदान और साहस के लिए 97 पदक दिए।

पिता नहीं, उनकी कब्र देखी

ब्यावर के शहीद मोहन काठात का शव क्षत-विक्षत हो गया था वीरभूमि पर ही सुपुर्द-ए-ख़ाक किया गया। पिता की शहादत के 4 दिन बाद बेटी हुई… नाम रखा कमला, उसने पिता की कब्र ही देखी। कहती हैं- मेरे पति भी एक फौजी हैं और मुझे उन पर भी गर्व है।

शहीद का बेटा बड़ी जिम्मेदारी

मैनपुरा उदयपुरवाटी झुंझुनूं के शहीद रणवीर सिंह की शहादत के तीन महीने बाद बेटे पवन का जन्म हुआ। एमबीबीएस कर रहे पवन कहते हैं- पिता की बात चलते ही गर्व होता है, लेकिन लोगों ने इसे दया भाव से जोड़ दिया। शहीद का बच्चा होने पर बड़ी जिम्मेदारी का अहसास कराया। अपने हिस्से की गलतियां करने का हक भी छीन लिया गया। उम्मीदें बोझ लगने लगीं। पढ़ाई के बाद फौज में जाने की तैयारी भी करूंगा।

मुझ में ‘अंकित’ मेरे पापा

भालोट (झुंझनूं) के सिपाही नरेश 7 जुलाई को 22 साल की उम्र में शहीद हुए थे। चार महीने बाद प|ी ने बेटे को जन्म दिया, अंकित नाम रखा। घर में पिता की बात चलती है तो अंकित की आंखों में चमक भी आती है और नमी भी। कहते हैं- मैं सेना में नहीं जा पाया, अपने बच्चे को जरूर भेजूंगा।

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