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अफसरों-कर्मचारियों की जातिगत संस्थाओं को मिलीं जमीनें:विधानसभा में पूछे सवाल में खुलासा, गहलोत सरकार ने आचार संहिता से 10 दिन पहले किए थे आवंटन


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अफसरों-कर्मचारियों की जातिगत संस्थाओं को मिलीं जमीनें:विधानसभा में पूछे सवाल में खुलासा, गहलोत सरकार ने आचार संहिता से 10 दिन पहले किए थे आवंटन

अफसरों-कर्मचारियों की जातिगत संस्थाओं को मिलीं जमीनें:विधानसभा में पूछे सवाल में खुलासा, गहलोत सरकार ने आचार संहिता से 10 दिन पहले किए थे आवंटन

जयपुर : प्रदेश की पिछली कांग्रेस सरकार ने जयपुर विकास प्राधिकरण (JDA) की बेशकीमती जमीनें कई ऐसी संस्थाओं को बांट दीं, जो जातिगत आधार पर सरकारी अफसरों ने बनाई थीं। इन जमीनों का आवंटन विधानसभा चुनाव आचार संहिता से 8-10 दिन पहले मात्र 5 से 10 प्रतिशत की दर से किया गया। अधिकांश जमीनें जयपुर के आसपास प्रदेश के सबसे महंगे इलाकों में हैं।

यह खुलासा हुआ है बीजेपी विधायक कालीचरण सराफ द्वारा विधानसभा में लगाए गए एक सवाल के जवाब में। हमारे मीडिया कर्मी ने सवाल लगाने वाले विधायक से यह पूरा प्रकरण समझा और रिटायर्ड अफसरों की मदद से जाना कि जमीन आवंटन मामले में नियम क्या कहते हैं? पढ़िए इस रिपोर्ट में…

जातिगत संगठनों को जमीन आवंटन का यह पहला मामला
राज्य सरकार विभिन्न सामाजिक संस्थाओं को सामाजिक कार्यों के लिए JDA के माध्यम से पहले भी जमीनें आवंटित करती रही हैं, लेकिन जातिगत आधार पर बने सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों के संगठनों को जमीन आवंटन का यह पहला मामला सामने आया है।

मालवीय नगर (जयपुर) विधायक कालीचरण सराफ ने विधानसभा में प्रश्न लगाकर जमीन आवंटन मामले में जवाब मांगा था।
मालवीय नगर (जयपुर) विधायक कालीचरण सराफ ने विधानसभा में प्रश्न लगाकर जमीन आवंटन मामले में जवाब मांगा था।

विधानसभा में सवाल लगाने वाले मालवीय नगर (जयपुर) विधायक एवं पूर्व मंत्री कालीचरण सराफ ने हमारे मीडिया कर्मी को बताया- पिछली कांग्रेस सरकार ने अपने अंतिम वर्ष के कार्यकाल में चुनाव आचार संहिता से ठीक पहले आनन-फानन में इन संस्थाओं को जमीनें आवंटित की हैं। बहुत सी संस्थाएं सामाजिक स्तर पर अच्छा काम भी कर रही हैं, लेकिन जातिगत आधार पर सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों के संगठनों को जमीनें रियायती आधार पर क्यों दी जानी चाहिए? इसलिए उन्होंने विधानसभा में प्रश्न लगाकर जवाब मांगा था, जिसका जवाब आ गया है।

सराफ ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने राजनीतिक लाभ के लिए ऐसा किया था। राज्य सरकार में 8 लाख अधिकारी और कर्मचारी हैं। उनमें से कई लोग अपनी-अपनी जाति या समाज के नाम पर जैसे- जैन अधिकारी कल्याण संघ, ब्राह्मण ऑफिसर्स क्लब, राजपूत अधिकारी-कर्मचारी कल्याण परिषद जैसी संस्थाएं बना ली हैं, तो क्या इन्हें सरकार जमीनें बांट सकेगी।

किन्हें मिली हैं जमीनें?
राज्य की पिछली कांग्रेस सरकार ने 1 जनवरी-2023 से 9 अक्टूबर-2023 को चुनाव आचार संहिता लगने के बीच कुल 45 विभिन्न संस्थाओं को जेडीए रीजन में जमीनें आवंटित की थीं। इनमें से 36 संस्थाओं को चुनाव आचार संहिता लागू होने से ठीक 8-10 दिन पहले (30 सितंबर-2023 या 5 अक्टूबर 2023 को जमीनें आवंटित की गई हैं। इनमें 3 संस्थाएं ऐसी हैं, जो सरकारी कर्मचारियों-अफसरों की जातिगत आधार पर बनाई गई हैं। अधिकांश जमीनों की आरक्षित दर 10 हजार रुपए प्रति वर्ग गज है। हालांकि यहां बाजार भाव इससे कई गुना अधिक है।

1. गुर्जर कर्मचारी अधिकारी कल्याण परिषद

इस संस्था को मेट्रो एनक्लेव योजना (बी-टू बाईपास) में 906.07 वर्ग मीटर जमीन आवंटित की गई है। यह जमीन आरक्षित दर के 10 प्रतिशत पर की गई है। इसे 30 सितंबर-2023 को आवंटित किया गया है। संस्था ने जमीन पर ट्रेनिंग भवन, छात्रावास, सूचना केन्द्र, विश्राम स्थल व ऑडिटोरियम बनाने का उद्देश्य बताया है।

2. आदिवासी मीना कर्मचारी विकास समिति (बस्सी)

इस संस्था को 600 वर्गमीटर जमीन विराजपुरा (बस्सी) जेडीए रीजन में दी गई है। यह जमीन आरक्षित दर की 10 प्रतिशत दर पर दी गई है। इसका आवंटन 30 सितंबर-2023 को हुआ है। संस्था ने इस जमीन पर सामाजिक, सांस्कृतिक व शैक्षणिक गतिविधियां चलाने का उद्देश्य बताया है।

जमीन आवंटन की प्रति। जातिगत आधार पर अफसरों-कर्मचारियों की ऐसी तीन संस्थाएं हैं, जिन्हें जमीनें आवंटन की गई थीं।
जमीन आवंटन की प्रति। जातिगत आधार पर अफसरों-कर्मचारियों की ऐसी तीन संस्थाएं हैं, जिन्हें जमीनें आवंटन की गई थीं।

3. रैगर ऑफिसर्स क्लब समिति

इस संस्था को 5000 वर्गमीटर जमीन सिरोली-गोनेर गांव के पास जेडीए रीजन में दी गई है। यह जमीन आरक्षित दर की 5 प्रतिशत दर पर दी गई है। इसका आवंटन 9 मार्च-2023 को हुआ था। समिति ने इस जमीन पर बालिका छात्रावास निर्माण का उद्देश्य बताया है।

एक विचित्र मामला यह भी

राज्य सरकार ने 25 अप्रैल-2023 को नोहर नागरिक समिति नामक संस्था को 1500 वर्गमीटर जमीन विद्याधर नगर सेक्टर-4 में आवंटित की है। इस संस्था को जमीन 50 प्रतिशत की दर पर मिली है। संस्था ने इस जमीन को उपयोग सामाजिक कार्यों व संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बताया है। संस्था नोहर (हनुमानगढ़) के जयपुर में रह रहे नागरिकों ने बनाई है।

मंत्री बोले- जांच रिपोर्ट जल्दी ही आने वाली है
राज्य में भाजपा सरकार के गठन के बाद जनवरी-2024 में नगरीय विकास विभाग ने इन संस्थाओं को जमीनें आवंटन करने की तिथियों, संस्थाओं के उद्देश्यों, आवंटन प्रक्रिया, नियमों आदि की जांच भी शुरू की थी। नगरीय विकास विभाग मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने हमारे मीडिया कर्मी को बताया कि कांग्रेस सरकार ने जिन संस्थाओं को अपने अंतिम छह महीनों के कार्यकाल में रियायती दरों पर आवंटन किया है, उनकी जांच करवाई जा रही है। जल्द ही रिपोर्ट मिलेगी।

सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों के संगठनों को मिलती हैं जमीनें, लेकिन वे जाति-समाज पर आधारित नहीं होते

राज्य सरकार ने जयपुर में राजस्थान प्रशासनिक सेवा (आरएएस) अफसरों के क्लब को, राजस्थान पुलिस सेवा (आरपीएस) वे लेखा सेवा के अधिकारियों के संगठनों को भी जेएलएन मार्ग और झालाना सांस्थानिक क्षेत्र में जमीनें आवंटित की हैं। इन जमीनों पर उन संगठनों के क्लब या कार्यालय कई वर्षों से संचालित हो रहे हैं। लेकिन उन संगठनों को रैंक और काडर आधारित होने के कारण जमीनें मिली हैं, न कि जाति या समाज आधारित होने पर।

क्या कहते हैं नियम?

राजस्थान सिविल सेवाएं (वर्गीकरण नियंत्रण व अपील) नियम-1958 के तहत सरकारी अधिकारी कर्मचारी किसी जाति या समाज आधारित संस्था के सदस्य पदाधिकारी या संस्थापक नहीं हो सकते। ऐसा करना सरकारी सेवा नियमों का उल्लंघन माना जाता है। सामाजिक, शैक्षणिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न रजिस्टर्ड संस्थाओं को राज्य सरकार प्रदेश भर में रियायती दरों पर जमीनें आवंटित करती है। यह आवंटन नगरीय विकास विभाग, स्वायत्त शासन विभाग, राजस्व विभाग, पंचायत राज विकास आदि विभागों के तहत जमीनों पर किया जाता है।

जयपुर विकास प्राधिकरण, हाउसिंग बोर्ड, यूआईटी, नगर निकाय संस्था या ग्राम पंचायत द्वारा आवेदन पत्रों की पूरी छानबीन के बाद राज्य सरकार के पास प्रकरण को भेजा जाता है। राज्य सरकार में कोई एक व्यक्ति या पदाधिकारी आवंटन नहीं कर सकता, चाहे वे विभाग के मंत्री या मुख्यमंत्री ही क्यों न हों। आवंटन के विषय में मंत्रिमंडल (कैबिनेट) या कैबिनेट द्वारा एम्पॉवर्ड कमेटी ही संबंधित संस्था को जमीन आवंटित कर सकती है।

संस्थाओं को जमीन आवंटन के नियम बने हुए हैं। नियमानुसार सरकारी कर्मचारी-अफसर जाति-समाज आधारित संस्थाओं के पदाधिकारी या सदस्य नहीं हो सकते।
संस्थाओं को जमीन आवंटन के नियम बने हुए हैं। नियमानुसार सरकारी कर्मचारी-अफसर जाति-समाज आधारित संस्थाओं के पदाधिकारी या सदस्य नहीं हो सकते।
  • संस्था का राज्य सरकार के नियमों के तहत पंजीकृत व संबंधित कार्यक्षेत्र के सरकारी विभाग से मान्यता प्राप्त होना आवश्यक है।
  • संस्थान पूर्णत: गैर राजनीतिक आधार पर गठित हो।
  • सभी सदस्यों का सहमति पत्र और वैध दस्तावेज संस्था के पास हों।
  • संस्था अपने पंजीकरण की तिथि के 3 वर्ष बाद रियायती दरों पर जमीन आवंटन के लिए आवेदन कर सकती है।
  • संस्था की नियमित प्रति वर्ष वित्तीय ऑडिट होती हो।
  • संस्था या उसके संस्थापकों पर किसी तरह का आपराधिक मामला नहीं हो।
  • संस्था में सरकार के मुख्यमंत्री, कोई मंत्री, विभागाध्यक्ष आदि पदाधिकारी नहीं हो।
  • देश विरोधी, आतंकी या वैमनस्य फैलाने वाली गतिविधियों से जुड़ाव नहीं हो।
  • संस्था के संसाधनों, वित्तीय स्त्रोत व काम-काज के आधार पर राज्य सरकार जमीन आवंटित करती है।

यह लोकतंत्र का दुरुपयोग है : पीएन भंडारी
राजस्थान में अतिरिक्त मुख्य सचिव रहे रिटायर्ड आईएएस अफसर पीएन भंडारी का कहना है कि सरकारी जमीन का अर्थ सरकार की जमीन कभी नहीं होता। सरकारी जमीन का अर्थ है जनता की जमीन। सरकार उसकी केवल ट्रस्टी या केयर टेकर होती है। इसलिए सरकारी जमीनों का आवंटन बहुत सोच-समझकर व समस्त नियमों को पूरा करते हुए किया जाना चाहिए। किसी पार्टी की सरकार या उसके मुखिया सरकारी जमीन के मालिक नहीं हैं कि जिसे चाहे आवंटित कर दें।

सामाजिक संस्थाएं अगर नियम पूरे करती हैं, तो रियायती जमीनों के लिए आवेदन कर सकती हैं, लेकिन राज्य सरकार को यह देखना ही चाहिए कि संस्थाओं की प्रकृति क्या है, उन्हें बनाया किसने है, उनका उद्देश्य क्या है? अगर सरकारी अधिकारी-कर्मचारी अपनी-अपनी जाति या समाज के आधार पर संस्था बना लें, राज्य सरकार को उन्हें जमीन रियायती दर पर क्योंं आवंटित करनी चाहिए। उनसे तो बल्कि यह पूछा जाना चाहिए कि आपने संगठन या संस्था बनाने का आधार जाति-समाज को क्यों बनाया है। इस आधार पर तो फिर सैकड़ों-हजारों संस्थाएं सरकारी कार्मिक बना सकते हैं।

इससे सरकारी तंत्र पर से लोगों का विश्वास खत्म हो जाएगा : पूर्व आईपीएस
आरपीएस क्लब (झालाना) के संस्थापक सदस्य और पूर्व अध्यक्ष रहे रिटायर्ड आईपीएस अफसर बहादुर सिंह राठौड़ का कहना है कि सरकारी तंत्र जिसके तहत लाखों लोग काम करते हैं। वे अगर इस तरह से अपनी जाति-समाज के संगठन-संस्था आदि बनाएंगे तो फिर लोगों का सरकारी तंत्र से विश्वास खत्म हो जाएगा। सरकार ने अगर ऐसी संस्थाओं को रियायती जमीनें दी हैं, तो यह जन संसाधनों का दुरुपयोग है।

सरकार से जमीन मिलने से ऐसी संस्थाओं को बढ़ावा मिलता है। कई संगठन खड़े हो जाएंगे कि उन्हें भी जमीन चाहिए। ऐसे ही राजस्थान के हर गांव-कस्बे के नागरिकों ने संस्थाएं जयपुर में बना रखी हैं। वे अपने निजी संसाधनों से जमीन खरीदें, लेकिन सरकार रियायती जमीन देगी तो यह अंधी बंदरबांट कभी खत्म नहीं हो सकेगी।

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