तिरंगे में लपेटकर नहीं, एंबुलेंस में भेजा पार्थिव शरीर:मां बोली- न सम्मान मिला, न शहीद का दर्जा, जानिए- अग्निवीर को लेकर क्यों है शेखावाटी में आक्रोश
तिरंगे में लपेटकर नहीं, एंबुलेंस में भेजा पार्थिव शरीर:मां बोली- न सम्मान मिला, न शहीद का दर्जा, जानिए- अग्निवीर को लेकर क्यों है शेखावाटी में आक्रोश

‘मैं अग्निवीर स्कीम की वजह से लोकसभा चुनाव हार गया…योजना से युवा हताश थे- शुभकरण चौधरी’
‘कांग्रेस, आरएलपी सहित कम्युनिस्टों ने अग्निवीर योजना के खिलाफ माहौल बनाया। वोटिंग से पहले बदलाव की घोषणा हो जाती तो मैं जीत जाता- सुमेधानंद सरस्वती’
ये दोनों स्टेटमेंट शेखावाटी बेल्ट की झुंझुनूं और सीकर लोकसभा से चुनाव हारने वाले प्रत्याशियों के हैं। इन बयानों से एक बात साफ नजर आती है, सेना को सबसे ज्यादा जवान देने वाले शेखावाटी में अग्निवीर योजना को लेकर गहरी नाराजगी है।
अग्निवीर और परमानेंट सैनिकों में फर्क को लेकर परिवारों में आक्रोश है। इस आक्रोश को समझने के लिए हम हाल ही में लद्दाख के आयुध डिपो में ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वाले नंदू शेखावत के घर पहुंचे। साथ ही 50 से ज्यादा सैनिक देने वाले एक गांव पहुंचकर वहां के पूर्व सैनिकों से बात की। पढ़िए- ग्राउंड रिपोर्ट में…

सूरजगढ़ के स्यालू कलां गांव में दाखिल हुए। एंट्री में ही अमर शहीद नंदू सिंह शेखावत के पोस्टर लगे हुए थे। लिखा था शहीद का दर्जा दो….। नंदू सिंह शेखावत के घर पहुंचे तो बाहर तिरंगा झंडा लगा था और अंदर नंदू की तस्वीर के पास बैठा परिवार आंसू बहा रहा था।
छात्रसंघ अध्यक्ष बनने के बाद अग्निवीर में हुआ सिलेक्शन
ओमप्रकाश शेखावत नंदी सिंह के बड़े भाई हैं। उन्होंने बताया कि 2022 में नंदू सिंह शेखावत सूरजगढ़ कॉलेज का अध्यक्ष बना था। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए कॉलेज अध्यक्ष रहते हुए नंदू ने सेना में जाने के लिए तैयारी शुरू कर दी थी। तभी अग्निवीर योजना शुरू हुई थी।
मई-2023 में उसका सिलेक्शन होने के बाद लेह-लद्दाख में आर्मी के गोला बारूद डीपो में उसको तैनात किया गया। आर्मी जॉइन किए उसे करीब 13 महीने ही हुए थे। परिवार के लोग नौकरी लगने के बाद शादी के लिए लड़की भी देखने लग गए थे।

ड्यूटी के दौरान मौत, लेकिन शहीद का दर्जा नहीं
नंदू शेखावत की ड्यूटी लेह-लद्दाख में 41 आर्म डिपो में थी। एक दिन मेजर ने फोन कर बताया कि नंदू एक्सपायर हो चुका है। वो हैंड ग्रेनेड को डिफ्यूज करने के बाद उनके खोल को इकट्ठे कर रहा था। इसी दौरान एक हैंड ग्रेनेड में जबरदस्त विस्फोट हुआ, जिसमें वह गंभीर घायल हो गया। गंभीर हालत में नंदू को पीजीआई चंडीगढ़ रेफर किया गया। इलाज के दौरान 14 मई को नंदू ने दम तोड़ दिया।
ओमप्रकाश ने बताया कि हम उस वक्त चौंक गए जब वहां मौजूद सैन्य अधिकारियों ने हमें कहा कि शव ले जाने की व्यवस्था आपको खुद करनी होगी। हमने तो आजतक यही देखा था कि सैन्यकर्मी की पार्थिव देह को तिरंगे में लपेटकर सम्मान के साथ पहुंचाया जाता है। सेना उसे सलामी देती है। उसे शहीद का दर्जा दिया जाता है। इसी गर्व को महसूस कर परिवार के लोग उस गम को भुला पाते हैं।
हमारे छोटे भाई नंदू को शहीद का दर्जा तो दूर मान-सम्मान नहीं दिया गया। ~~ओमप्रकाश शेखावत, भाई
हमारे नंदू को शहीद का दर्जा तो दूर मान-सम्मान नहीं दिया गया। कोई आर्थिक सहायता नहीं दी गई। परिवार ने विरोध भी किया लेकिन किसी ने नहीं सुनी। अब हम तिरंगा यात्रा निकालकर हमारे भाई के सम्मान की जंग लड़ रहे हैं।
बहन बोली- एंबुलेंस में आया शव, शहीद का दर्जा तक नहीं दिया
गंगानगर में ब्याही नंदू की बड़ी बहन सुनीता कंवर ने बताया कि 24 अप्रैल को भाई नंदू ने फोन किया था। उसने कहा था तुम बच्चों को लेकर रक्षाबंधन पर आना। भाई-बहन एक साथ त्योहार मनाएंगे। अचानक 14 मई की सुबह हमें भाई की शहादत की खबर मिली।

हकीकत में मेरे भाई को शहीद का दर्जा तो छोड़िए उनकी पार्थिव देह को भी सम्मान भी नहीं दिया गया। एक साधारण एंबुलेंस में उनकी पार्थिव देह परिवार को सौंप दी गई। क्या मेरे भाई ने सेना की सेवा नहीं की थी। तो फिर क्यों उसे शहीद का दर्जा नहीं दिया जा रहा। भाई को शहीद का दर्जा मिले और परिवार को आर्थिक सहायता मिले, यही चाहते हैं।
मां बोली : मुझे न्याय दिलाओ, ढाई घंटे पड़ा रहा बेटा
मां सुनीता कंवर ने बताया कि मेरा एक ही बेटा था। पति की दो शादी हुई थी। पहली पत्नी से चार बच्चे हैं। बड़े संघर्ष से मैंने उसे पाला था। ब्लास्ट हुआ तो उसकी किसी फौजी ने मदद नहीं की। समय पर इलाज नहीं हुआ। वहीं पर ही ढाई घंटे तक तड़पता रहा। उसने सेना में काम करते हुए जान गंवा दी। मैं सवाल पूछती हूं क्या वो सेना का जवान नहीं था। उसे शहीद भी नहीं बताया।
सेना में ड्यूटी करते हुए मेरे बेटे ने जान गंवाई है, तो क्या उसे शहीद नहीं मानना चाहिए? ~~सुनीता कंवर, मां
गोकुलपुरा में 50 से ज्यादा जवान, अब बच्चों ने दूसरी राह पकड़ी
अग्निवीर को लेकर सेना से जुड़े परिवार क्या समझते हैं, यह जानने के लिए हम सीकर जिले के गोकुलपुरा गांव पहुंचे। छोटे से गांव से 50 से 55 जवान सेना में हैं। 15 से ज्यादा रिटायर्ड होकर घर आ चुके हैं। हम गांव में दाखिल हुए तो तीन चार पूर्व सैनिक और गांव के कुछ लोग एक साथ चर्चा करते हुए मिल गए।
सेना के रिटायर्ड जवान मुकेश खीचड़ ने बताया कि वे जाट रेजिमेंट में थे। 2023 में 19 साल की सर्विस के बाद रिटायर्ड हुए हैं। उन्होंने बताया कि अग्निवीर योजना को सही तरीके से आम लोगों को समझाया नहीं गया।
स्कीम के कई फायदे भी हैं तो कई नुकसान भी। आमजन को डिफेंस अपनी पूरी योजना नहीं बता सकता है। एक बच्चा थोड़ी तैयारी करके सेना में जा सकता है। उसे 4 साल बाद परमानेंट भी किया जा सकेगा। कुछ युवक जो नॉन परफॉर्मर होते हैं वे अग्निवीर तो क्या परमानेंट सर्विस में भी ट्रेनिंग को छोड़ कर भाग आते हैं। वे ट्रेनिंग भी नहीं कर पाते हैं।

पास ही बैठे जितेंद्र खीचड़ ने बताया कि अग्निवीर योजना लागू होने के बाद युवा अब दूसरे ऑप्शन तलाश रहे हैं। पहले यहां डेली युवा हमारे गांव के पूर्व सैनिकों से टिप्स लेकर तैयारी करते थे। अब वो स्थिति नहीं रही। अग्निवीर में पेंशन नहीं, शहीद का दर्जा भी नहीं यही बातें सोचकर गांव के युवा प्राइवेट व अन्य सर्विस की ओर जा रहे हैं।
सुनील सैनी ने बताया कि रामू का बास का रहने वाला हूं। वे बोले कि युवा पूरी तरह से कन्फ्यूज हैं कि वो अग्निवीर में जाएं या नहीं। अग्निवीर के आने के बाद से युवाओं अब सेना में भविष्य नहीं दिख रहा। क्योंकि 4 साल के बाद वापस आकर क्या करेगा? कुछ अनहोनी हुई तो मां-बाप को कुछ नहीं मिलेगा।

पूर्व सांसद ने मीडिया से कहा- अग्निवीर में पहले ही संशोधन कर देते तो चुनावों में लाभ मिलता
गोकुलपुरा में पूर्व सैनिकों से बातचीत के बाद हमने अग्निवीर योजना को लेकर सीकर के पूर्व सांसद और प्रत्याशी सुमेदानंद सरस्वती से बात की। उन्होंने बताया कि सीकर, कुचामन, झुंझुनूं में काफी डिफेंस एकेडमी थी, जो बंद हो गई हैं। युवाओं ने अग्निवीर में 4 साल के लिए जाने के लिए मन नहीं बनाया। हम स्कीम को पूरी तरह से क्लियर नहीं कर पाए। 50 प्रतिशत युवाओं को अर्धसैनिक बलों में भेजा जाना था। 25 प्रतिशत परमानेंट किए जाएंगे। कांग्रेस और आरएलपी सहित कम्युनिस्टों ने अग्निवीर के खिलाफ माहौल बनाया।
कांग्रेस और आरएलपी सहित कम्युनिस्टों ने अग्निवीर के खिलाफ माहौल बनाया। ~~ सुमेधानंद सरस्वती पूर्व सांसद, सीकर
सुमेधानंद ने कहा- पूरे भारत में एक सैनिक एकेडमी मोहाली पंजाब में थी। हम सीकर में भी एकेडमी लेकर आए। अग्निवीर स्कीम में पहले ही कुछ संशोधन किए जाते तो चुनावों में हमें लाभ मिलता। लेकिन आगे भी पंचायत के चुनाव होंगे। नगरपालिका से लेकर 5 उपचुनाव भी हो रहे हैं। अगर अभी भी संशोधन होता है तो युवाओं के हित में भी होगा और पार्टी के हित में भी रहेगा।
क्या है अग्निवीर योजना?
केंद्र ने सेना में भर्तियों के लिए अग्निवीर योजना 2022 में शुरू की थी। इसमें 4 साल के लिए कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर थल सेना, नौसेना और भारतीय वायुसेना में भर्ती होती है। पहले 6 महीने की ट्रेनिंग होती है। इसके बाद सिलेक्ट अभ्यर्थी चार साल के लिए अग्निवीर की नौकरी पर रखा जाता है। इन्हीं में से परफॉर्मेंस के आधार पर 25 प्रतिशत सैनिकों को परमानेंट करने का प्रावधान है।

परमानेंट जवान और अग्निवीर को मिलने वाली सुविधाओं में कितना फर्क
दोनों में सबसे बड़ा अंतर पेंशन का है। रिटायरमेंट के बाद परमानेंट सैनिक को हर महीने सेना की ओर से पेंशन मिलती है। वहीं चार साल तक सेवा देने के बाद अग्निवीर को कुछ नहीं मिलेगा। हां इतना जरूर होगा कि 25% अग्निवीर सेना में परमानेंट जॉब के लिए क्वालीफाई होंगे, जिन्हें बाद में सारे बेनिफिट मिलेंगे।
- युद्ध में हताहत होने की स्थिति में, एक नियमित सैनिक के परिवार को उदारीकृत पारिवारिक पेंशन मिलती है, जो ताउम्र मिलने वाली सैलरी के बराबर होती है। इस अमाउंट पर कोई इनकम टैक्स नहीं लगता है। जबकि अग्निवीर का परिवार केवल 48 लाख रुपए की गैर-अंशदायी बीमा राशि के लिए पात्र है। परमानेंट सैनिक को प्रतिवर्ष सेवा के लिए 15 दिन की ग्रेच्युटी मिलती है और 50 लाख का बीमा होता है।
- अगर कोई परमानेंट सैनिक किसी ऑपरेशन के दौरान विकलांग हो जाता है तो उसके ग्रेजुएशन लेवल तक के बच्चों को शिक्षा भत्ता दिया जाता है। अग्निवीरों को ऐसा कोई बेनिफिट नहीं मिलता है। आर्मी में एक सैनिक की शुरुआती सैलरी 40 हजार रुपए प्रतिमाह होती है, जबकि अग्निवीरों को 30 हजार रुपए प्रतिमाह दिए जाते हैं।
- अगर अग्निवीर ड्यूटी के दौरान विकलांग होता है तो उसे विकलांगता के स्तर के आधार पर मुआवजा राशि और चार साल में जितनी नौकरी बची है उसके आधार पर राशि का भुगतान होता है। वहीं परमानेंट सैनिक को पात्रता के आधार पर पेंशन और कई तरह के लाभ मिलते हैं।
- सेना के शहीदों की पत्नियों या परिजनों के लिए पुनर्वास महानिदेशालय (DGR) कई योजनाएं चलाता है। उन्हें पेट्रोल पंप का आवंटन होता है। शहीद के परिजन को LPG गैस एजेंसी लेने पर भी छूट मिलती है, लेकिन अग्निवीरों को ऐसी कोई योजना का लाभ नहीं मिलता।