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पेपर लीक जैसे संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति करने से बाज आएं


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पेपर लीक जैसे संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति करने से बाज आएं

पेपर लीक जैसे संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति करने से बाज आएं

राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक

झुंझुनूं : केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित नेट और नीट परीक्षा के पेपर आउट होते ही पेपर लीक प्रकरण एक राष्ट्रीय समस्या बन गई । ज्यों ही नीट व नेट के पेपर लीक हुए केन्द्र सरकार ने आनन-फानन एक कानून बना दिया जिसके तहत आरोपियों को पांच साल तक की सजा व दस लाख रूपये तक जुर्माने का प्रावधान है । केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय के अधीन काम करने वाली एनटीए की विफलता के बाद ही शायद केन्द्र सरकार को आभास हुआ कि यह राज्यों की समस्या न होकर राष्ट्रीय समस्या है । देश में फैले शिक्षा माफिया के जाल ने प्रतियोगी परीक्षाओं का मजाक बनाकर छोड़ दिया है । इसमें देश में फैले कोचिंग संस्थानों के मकड़जाल का विशेष योगदान रहता है जिनके तार हर राज्य के गिरोह से जुड़े रहते हैं ।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कार्यकाल मे सत्रह परीक्षाओं के पेपर लीक हुए थे । उस समय गहलोत ने कहा था कि इसको लेकर राष्ट्रीय स्तर पर कार्रवाई होनी चाहिए व केन्द्र सरकार एक कानून लेकर आए जिससे इस शिक्षा माफिया जो पेपर लीक में लिप्त है उस पर अंकुश लगाया जा सके । राजस्थान में इस मुद्दे को लेकर राजनीति होती रही व गहलोत की बात नहीं सुनी गई । पेपर लीक प्रकरण को लेकर गहलोत सरकार को सता गंवानी पड़ी थी । अब गहलोत की बाते स्वीकार्य है कि राज्यों में फैला शिक्षा माफिया का जाल इन पेपरों को लीक करता है । ऐसा नहीं कि राजस्थान में ही पेपर लीक हुए थे इस रोग से यूपी, पंजाब व गुजरात जैसे राज्य भी अछूते नहीं रहे थे । राजस्थान में पेपर लीक को लेकर भाजपा ने विधानसभा से सड़कों तक आंदोलन किया था जो राजनीति से प्रेरित था । अब जब नीट और नेट के पेपर लीक हुए है तो भाजपा के मुंह में दही जमा हुआ है ।

केन्द्र सरकार नेट की परीक्षा तो रद्द कर चुकी है और नीट परीक्षा पर भी रद्द होने के बादल मंडरा रहे हैं । यदि यह दोनों परीक्षाएं रद्द होती है तो लाखों विधार्थीयो व उनके अभिभावकों को भारी परेशानी होगी । विदित हो इन प्रतियोगी परीक्षाओं को लेकर लाखों रूपये खर्च करके कोचिंग लेते हैं नीट परीक्षा वाले विधार्थी डाक्टर बनने का सपना देखते हैं । जो डाक्टर बनने का सपना देख रहे थे उनके सपनों पर कुठाराघात हुआ है । जब इस परीक्षा के बलबूते डाक्टर बनते हैं तो डाक्टरों की काबिलियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है जो ग़लत हंथकडे अपना पर बेइमानी से डाक्टर की डिग्री हासिल करते हैं ।

सरकार को इस बात को लेकर गंभीरता से सोचना होगा कि प्रतियोगी परीक्षाओं की गुणवता बनी रहे व परीक्षार्थी को विश्वास बना रहे कि वह कोई अनहोनी का शिकार नहीं बना है । राजनितिक दलों के लिए राजनीति करने के बहुत से मुद्दे हैं ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर राजनीति करने से बाज आना चाहिए ।

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