चिरंजीवी योजना, बिजली सब्सिडी में बदलाव भाजपा को पड़ा भारी?:ERCP को जहां मुद्दा बनाया वहां एक भी सीट नहीं; पेपरलीक माफिया पर कार्रवाई का मिला फायदा
चिरंजीवी योजना, बिजली सब्सिडी में बदलाव भाजपा को पड़ा भारी?:ERCP को जहां मुद्दा बनाया वहां एक भी सीट नहीं; पेपरलीक माफिया पर कार्रवाई का मिला फायदा

पिछले दो लोकसभा चुनाव में 25 में से 25 सीटें जीत रही भाजपा को इस बार 11 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा, जबकि 6 महीने पहले ही हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 114 सीटों के साथ बहुमत हासिल किया था।
केंद्र से लेकर प्रदेश के नेतृत्व को भरोसा था कि भाजपा इस चुनाव में भी 25 सीटों की हैट्रिक बनाएगी, लेकिन रिजल्ट के बाद तस्वीर साफ हो गई है। साथ ही कई सवाल भी खड़े हो गए हैं…
- क्या गहलोत की सरकारी योजनाओं ने नुकसान पहुंचाया ?
- क्या ओपीएस को लेकर कर्मचारियों में नाराजगी थी ?
- पेट्रोल-डीजल के दामों को लेकर जनता के हित में बड़ा फैसला नहीं करना भारी पड़ा ?
दूसरी ओर, पेपरलीक माफिया पर हुई ताबड़तोड़ कार्रवाई का फायदा भी मिला है।
स्पेशल रिपोर्ट में पढ़िए कौन से फैसलों से फायदा मिला और कौन से मुद्दे पड़े भारी…

सबसे पहले बात फायदे की… पेपरलील माफिया पर लगातार हो रही कार्रवाई का अच्छा मैसेज गया
राजनीतिक एक्सपर्ट का मानना है कि भजनलाल सरकार के एक फैसले का फायदा उसे इन चुनावों में मिलता दिखा। वो है पेपर लीक माफिया पर की गई सख्त कार्रवाई। दरअसल, भजनलाल सरकार ने सत्ता में आते ही पहला फैसला पेपर लीक को लेकर एसआईटी गठन का लिया था। इसके बाद से एसआईटी लगातार पिछली सरकार में हुए पेपर लीक की जांच करके आरोपियों की धरपकड़ कर रही है। वहीं जिस तरह से एसआईटी ने एसआई भर्ती में कार्रवाई की है, उसकी चर्चा पूरे देश में है। पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी भर्ती परीक्षा में नियुक्ति पाने के बाद अभ्यर्थियों पर कार्रवाई की गई हो।

अब बात नुकसान की… ईआरसीपी और यमुना जल समझौते का नहीं दिखा असर
गहलोत सरकार ने ईआरसीपी को पूरा नहीं करने का आरोप केंद्र पर लगाया। विधानसभा चुनाव में भी ये मुद्दा बना। प्रदेश में भाजपा सरकार बनते ही दिल्ली में 28 जनवरी को केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत की मौजूदगी में सीएम भजनलाल शर्मा और मध्य प्रदेश के सीएम मोहन यादव ने एमओयू पर सहमति जताई।
बीजेपी ने कहा- अगर मजबूत इच्छा शक्ति हो तो कोई भी काम असंभव नहीं है। सीएम भजनलाल और बीजेपी के नेताओं ने ईआरसीपी को लागू करने का श्रेय लेने की भरपूर कोशिश इस लोकसभा चुनावों में की।
जनता को कहा गया- पहले ईआरसीपी का फायदा 13 जिलों को मिलना था, लेकिन अब वो 21 जिलों को मिलेगा। इधर, विपक्ष की मांग के बाद भी ईआरसीपी-पीकेसी के एमओयू को सार्वजनिक नहीं किया।

ईआरपीसी-पीकेसी के एमओयू के करीब 20 दिन बाद ही 17 फरवरी को सीएम भजनलाल ने हरियाणा के निर्वतमान सीएम मनोहर लाल खट्टर से मिलकर सालों पुराने यमुना जल समझौते को हल करने का दावा किया।
इस जल समझौते से शेखावाटी क्षेत्र में आने वाले जिलों के लोगों को पीने के पानी और सिंचाई के पानी की जल्द उपलब्धता होने की बात कही गई। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि इस जल समझौते में राजस्थान के हितों को ध्यान में नहीं रखा गया। हरियाणा को पूरे पानी का मालिक बना दिया गया है। इससे राजस्थान के हित प्रभावित होंगे।
अब बात इन जिले के परिणामों की
ईआरसीपी में 9 लोकसभा सीटें आती हैं। इनमें जयपुर, जयपुर ग्रामीण, अजमेर, कोटा, दौसा, भरतपुर, करौली-धौलपुर, टोंक-सवाईमाधोपुर और बारां-झालावाड़ शामिल है।
भाजपा ने ईआरसीपी और यमुना जल समझौते से पूर्वी राजस्थान और शेखावाटी वाले दोनों क्षेत्रों को इन लोकसभा चुनाव में साधने की तैयारी की।
इनमें से 4 सीटें दौसा, भरतपुर, करौली-धौलपुर और टोंक-सवाई माधोपुर सीट हार गईं। इसी तरह शेखावाटी में सीकर, झुंझुनूं और चूरू सीट बीजेपी हार गई। यमुना जल समझौते का पानी इन तीनों जिलों को ही मिलना है।
राजनीतिक एक्सपर्ट और वरिष्ठ पत्रकार महेश शर्मा ने बताया कि सरकार इन दोनों योजनाओं को ठीक से जनता को नहीं समझा पाई। योजना में कितना पानी मिलेगा, इसका स्वरूप क्या होगा। इसे लेकर जनता को नहीं बताया और न पारदर्शिता रखी गई। इसी का नुकसान भाजपा को हुआ।
गहलोत सरकार की योजनाओं को रोकने से नुकसान
भजनलाल सरकार ने आते ही सबसे पहले इंदिरा रसोई का नाम बदलकर पुरानी राजनीतिक परिपाटी को दोहराने का काम शुरू कर दिया। उन्होंने इंदिरा रसोई का नाम बदलकर श्री अन्नपूर्णा रसोई कर दिया। हालांकि सरकार ने दावा किया कि हमने इसमें भोजन की मात्रा भी बढ़ाई है।
इसके उलट लोकसभा चुनाव से पहले चिरंजीवी योजना का नाम बदलकर उसे केन्द्र की आयुष्मान योजना के साथ मर्ज करना, राजनीतिक एक्सपर्ट भजनलाल सरकार की बड़ी राजनीतिक भूल मान रहे हैं। प्रदेश में अब इस योजना को मुख्यमंत्री आयुष्मान आरोग्य योजना (MAA) के नाम से जाना जाता है।
सरकार ने इसका नाम ही नहीं बदला। नाम बदलने के साथ ही चिरंजीवी में मिलने वाले फायदे का दायरा भी कम कर दिया। चिरंजीवी में 25 लाख रुपए तक के मुफ्त इलाज की सुविधा थी। जो आयुष्मान आयोग्य योजना योजना में घटकर 5 लाख रह गई। हालांकि सीएम भजनलाल शर्मा का कहना है कि वे इस योजना का दायरा जल्द बढ़ाकर 10 लाख करेंगे। वहीं बाद में इसे 25 लाख तक लेकर जाएंगे।
सरकार बदलते ही चिरंजीवी योजना में निजी अस्पतालों का भुगतान रुक गया। इससे अधिकतर अस्पतालों ने इस योजना में इलाज करना ही बंद कर दिया। एक्सपर्ट की मानें तो इन बदलावों से लाभान्वित परिवारों को फायदा मिलना बंद हो गया और इसका नुकसान भाजपा को हुआ।
इसी तरह से बिजली की सब्सिडी को भजनलाल सरकार ने रोका तो नहीं लेकिन इसमें नए रजिस्ट्रेशन को बंद कर दिया गया। इसमें जो नए लोग जुड़ना चाहते थे, वे जुड़ नहीं पाए। इसी वजह से एक तबके में इसे लेकर नाराजगी भी रही।

ओपीएस को लेकर कर्मचारी वर्ग में असमंजस या नाराजगी
भजनलाल सरकार कर्मचारियों में ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) को लेकर पैदा हुए असमंजस को दूर नहीं कर सकी। चुनावों से पहले लगातार विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाया कि बीजेपी सरकार ओपीएस को बंद कर देगी। इसके उलट सरकार और बीजेपी ने कभी भी खुलकर यह नहीं कहा कि हम ओपीएस को बंद नहीं करेंगे। ऐसे में लगातार कर्मचारियों में इसे लेकर असमंजस की स्थिति बनी रही।
चुनावों के दौरान जयपुर आई वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी ओपीएस को लेकर केन्द्र सरकार की स्थिति स्पष्ट नहीं की। उन्होंने ओपीएस के सवाल के जवाब मे कहा कि ओपीएस को लागू करने वाली कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में इसे शामिल क्यों नहीं किया।

राजीव गांधी युवा मित्रों को हटाया, लेकिन नई भर्ती नहीं
भजनलाल सरकार ने आते ही कांग्रेस सरकार में काम कर रहे राजीव गांधी युवा मित्रों को हटा दिया। इससे सरकार की युवाओं और रोजगार के प्रति नकारात्मक छवि गई। युवा मित्र धरने पर बैठ गए। इस मुद्दे को विपक्ष ने जमकर भुनाया। विधानसभा में भी हंगामा हुआ, लेकिन सरकार अपने स्टैंड पर कायम रही।
इसके अलावा सरकार ने बजट (लेखा अनुदान मांग) में नई भर्तियों की घोषणा जरूर की, लेकिन लोकसभा चुनावों की आचार संहिता लगने से पहले ऐसी कोई बड़ी भर्ती नहीं आई। इससे सरकार की रोजगार देने की मंशा जाहिर होती हो।
साथ ही महात्मा गांधी स्कूलों को बंद करने का मुद्दा इन चुनावों में सरकार पर हावी रहा। गहलोत सरकार ने अंग्रेजी मीडियम के महात्मा गांधी स्कूल खोले थे। जिन्हें बंद करने की तैयारी करने का आरोप विपक्ष ने सरकार पर लगाया। जिसका भी कोई ठोस जवाब सरकार नहीं दे सकी।

घोषणाएं धरातल पर लागू नहीं हो सकीं
राज्यपाल के अभिभाषण पर विधानसभा में जवाब देते हुए सीएम भजनलाल शर्मा ने 30 जनवरी को कई घोषणाएं की थीं। इसमें किसान सम्मान निधि का दायरा 12 हजार रुपए तक बढ़ाने की घोषणा की गई थी। पहले चरण में इसे बढ़ाकर 8 हजार करने की घोषणा हुई। इसी तरह गेहूं की फसल पर एमएसपी पर 125 रुपए बोनस देने की घोषणा भी की गई।
सामाजिक पेंशन में 150 रुपए बढ़ाने की घोषणा भी भजनलाल सरकार ने बजट में की थी। लेकिन यह सभी घोषणाएं आचार संहिता लगने से धरातल पर लागू नहीं हो सकीं। इसका फायदा जनता को नहीं मिला। संभवत यह भी एक कारण है कि बीजेपी को लोकसभा चुनावों में इन घोषणाओं का अधिक फायदा नहीं मिल सका।
पेट्रोल-डीजल में राहत दी, लेकिन दाम पड़ोसी राज्यों से ज्यादा
विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी ने राजस्थान में पेट्रोल-डीजल के दाम सबसे ज्यादा होने का आरोप लगाया था। प्रदेश में सत्ता पर काबिज होने के साढ़े तीन माह तक बीजेपी ने जनता को पेट्रोल-डीजल के दामों में राहत नहीं दी।
आचार संहिता लगने से दो दिन पहले 14 मार्च को सरकार ने पेट्रोल-डीजल से 2 प्रतिशत वैट कम किया। इसके बाद भी राजस्थान की तुलना में पड़ोसी राज्यों गुजरात, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में दरें काफी कम हैं।
इसका भी विपक्ष ने मुद्दा बनाया था। विपक्ष का कहना था कि सत्ता पाने के लिए बीजेपी ने जनता से झूठा वादा किया। उन्हें दरें पड़ोसी राज्यों के समकक्ष करनी चाहिए थी। लेकिन आचार संहिता लगने के दो दिन पहले ऊंट के मुंह में जीरे के समान जनता को राहत दी गई है।
राजीनितक एक्सपर्ट नारायण बारहठ का कहना है कि जैसे ही सरकार बदली और लोगों का वास्ता अस्पताल और अन्य सरकारी सेवाओं से पड़ा, तो उन्हें वो सुविधाएं नहीं मिलीं। जो पिछली सरकार की योजनाओं से मिल रही थीं।
सबसे ज्यादा सीट कम होने की वजह मैं चिंरजीवी योजना को बंद करने का मानता हूं। इसके अलावा सरकार के चेहरे का भी इसमें बड़ा रोल है।