क्या होगा 6 दिग्गजों का राजनीतिक भविष्य?:सीएम की राह में चुनौतियां, मुख्यधारा में आएंगी राजे, गहलोत-डोटासरा का बढ़ेगा कद, जोशी का जा सकता है पद
क्या होगा 6 दिग्गजों का राजनीतिक भविष्य?:सीएम की राह में चुनौतियां, मुख्यधारा में आएंगी राजे, गहलोत-डोटासरा का बढ़ेगा कद, जोशी का जा सकता है पद

लोकसभा चुनाव के परिणाम सामने आ चुके हैं। इस परिणाम को 2 लाइनों से समझा जा सकता है।
भाजपा राजस्थान में 25 सीटों की हैट्रिक नहीं बना पाई। वहीं कांग्रेस तीन चुनाव में पहली बार भाजपा को टक्कर देती नजर आई।
प्रदेश के 6 बड़े नेताओं मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी और कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा की प्रतिष्ठा इन चुनावों में दांव पर थी। इनमें भी गहलोत और वसुंधरा राजे ऐसे नाम हैं, 25 साल से जिनके इर्द-गिर्द राजस्थान की राजनीति घूम रही है। वहीं पायलट, डोटासरा और जोशी पिछले डेढ़-दो दशक से मजबूती से उभरे हैं। इनमें सबसे ज्यादा चौंकाने वाला नाम है मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का। भजनलाल छह महीने पहले पहली बार विधायक और फिर मुख्यमंत्री बने।
हमारे मीडिया कर्मी ने एक्सपट्र्स से बात कर जाना कि परिणामों के बाद क्या होगा इन दिग्गजों का राजनीतिक भविष्य…

मुख्यमंत्री भजनलाल : कठिन चुनौतियां आएंगी सामने
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के सामने सबसे ज्यादा और कठिन चुनौतियां आने वाली हैं। भजनलाल दिसंबर-2023 में हुए चुनावों में पहली बार विधायक बने थे और विधायक बनते ही भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया था। वर्ष 2014 में भाजपा ने प्रदेश की सभी 25 सीटें जीती थीं, तब प्रदेश में भाजपा की ही सरकार थी। इसके बाद 2019 में राजस्थान में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद भाजपा सभी 25 सीटें जीती। मोदी लहर और दूसरे फैक्टर को देखते हुए इस बार भी सीएम भजनलाल और भाजपा 25 सीटें जीतने के दावे कर रहे थे, लेकिन उम्मीद के मुताबिक परिणाम नहीं आया।
जाहिर है कि बतौर मुख्यमंत्री उनके प्रदर्शन और सरकार के काम-काज की समीक्षा पार्टी के स्तर पर की जाएगी। राजनीतिक टिप्पणीकार वेद माथुर का कहना कहते हैं- हालांकि भजनलाल शर्मा को सीएम की कुर्सी संभाले मात्र 5 महीने ही हुए हैं। इस बीच आचार संहिता भी लागू रही। ऐसे में सरकार के स्तर पर कोई बहुत बड़े काम नहीं किए जा सके, लेकिन पार्टी के भीतर और बाहर उनके विरोधी पुरजोर प्रचार करेंगे कि पिछले 3 लोकसभा चुनावों में सरकार होते हुए यह भाजपा का सबसे कमजोर प्रदर्शन है। ऐसे में आने वाले दिनों में भजनलाल शर्मा को बतौर मुख्यमंत्री बहुत कुछ ऐसा करना पड़ेगा, जिससे उनकी छवि एक मजबूत और चुनाव जिताने वाले नेता के रूप में बन सके।
क्या उप चुनाव, लोकसभा परिणाम का दबाव बनेगा?
राजनीतिक हलकों में यह सवाल तेजी से फैल रहा है कि राजस्थान में भाजपा की सरकार बनते ही करणपुर विधानसभा का उप चुनाव हुआ था। चुनाव से पहले ही भाजपा के प्रत्याशी सुरेन्द्र पाल सिंह टीटी को मंत्री बना दिया गया था। इसके बावजूद वे कांग्रेस प्रत्याशी के सामने चुनाव हार गए थे। अब लोकसभा चुनावों में उम्मीद के मुताबिक परिणाम नहीं मिला। चुनाव परिणाम के बीच कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा ने भी इस्तीफे के संकेत देते हुए ट्वीट किया। अगर उन्होंने इस्तीफा दिया तो इस बात की पूरी संभावना है कि उसका दबाव मुख्यमंत्री शर्मा पर भी पड़ेगा।

पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे : मिल सकती है तवज्जो
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पिछले कुछ समय से पार्टी की मुख्यधारा में नहीं हैं। साल 2019 उनके पुत्र दुष्यंत सिंह लगातार चौथी बार सांसद बने थे, लेकिन उन्हें केन्द्र में मंत्री नहीं बनाया गया था। दुष्यंत सिंह तब लगातार 4 बार जीतने वाले एकमात्र सांसद थे। वे लगातार पांचवीं बार भी चुनाव जीत गए हैं। वहीं खुद राजे को भाजपा ने 2023 के चुनावों में मुख्यमंत्री का चेहरा भी नहीं बनाया था। इस बीच राजे के किसी बड़े संवैधानिक पद पर जाने की चर्चाएं भी होती रहीं, लेकिन वे सच साबित नहीं हुईं।
इस बार जो परिणाम आए हैं, उनकी तुलना निश्चित तौर पर 2004 (भाजपा 21 सीट) और 2014(भाजपा 25 सीट) के परिणामों से होगी, जब वसुंधरा राजे सीएम थीं। ऐसे में परिणामों के बाद वसुंधरा को फिर से पार्टी में तवज्जो मिल सकती है। उन्हें किसी तरह का संवैधानिक पद दिया जा सकता है या उनके पुत्र दुष्यंत को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है। वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ का कहना है कि यह चुनाव परिणाम यह दिखाने वाले हैं कि किसी भी राजनीतिक पार्टी को अपने कद्दावर नेताओं को सहेज कर रखना चाहिए न कि उन्हें राजनीतिक रूप से ध्वस्त करना चाहिए। कांग्रेस के लिए अशोक गहलोत और भाजपा के लिए वसुंधरा राजे इसी तरह के एसेट लीडर हैं। दोनों ही पार्टियों को दोनों दिग्गजों की अब ज्यादा जरूरत है।

पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत : बेटे की हार के बावजूद बढ़ेगा कद
वैभव गहलोत लगातार दूसरी बार लोकसभा चुनाव हार गए हैं, फिर भी पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को इन चुनाव परिणामों का निश्चित तौर पर राजनीतिक फायदा मिलेगा। क्योंकि देश में अब अगले पांच वर्ष गठबंधन की राजनीति चलेगी और इसमें गहलोत कांग्रेस के लिए उपयोगी साबित हो सकते हैं। राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर के पूर्व कुलपति प्रोफेसर के. एल. शर्मा का कहना है कि गहलोत को यह फायदा दो कारणों से होगा।
एक तो वे उस कमेटी में सदस्य बनाए गए थे, जो कांग्रेस के लिए सहयोगी दलों का एलाएंस बनाने में जुटी थी। दूसरा यह कि यह गहलोत की ही सलाह थी कि सीकर, नागौर और बांसवाड़ा सीटों पर अन्य दलों के साथ गठबंधन किया जाए। गहलोत की इस सलाह से पूरे राज्य में कांग्रेस के प्रदर्शन पर सीधा असर पड़ा है। कांग्रेस अब देश भर में अपने वर्तमान सहयोगियों सहित नए सहयोगी जुटाना चाहेगी। ऐसे में कांंग्रेस के लिए गहलोत उपयोगी साबित होंगे। वे दो बार राजस्थान में मिली-जुली सरकार चला चुके हैं। गहलोत कांग्रेस की केन्द्रीय और प्रदेश स्तरीय राजनीति में आज भी बड़े नेता हैं, जिसका फायदा उन्हें मिलेगा।

गोविंद सिंह डोटासरा : फीडबैक सही साबित हुआ
चार बार से लगातार विधायक गोविंद सिंह डोटासरा के प्रदेशाध्यक्ष रहते दिसंबर-2023 में विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 70 सीटें (बाद में एक सीट उप चुनाव में भी) हासिल की। इससे पहले कांग्रेस जब 2003 और 2013 में सत्ता से बाहर हुई थी तो उसे मात्र 56 और 21 सीटें ही मिली थी। ऐसे में डोटासरा के प्रदर्शन को बेहतर माना गया। साथ ही एक जाट नेता के रूप में उनकी छवि पूरे राजस्थान में असरकारी साबित हुई। पार्टी ने नागौर, सीकर, चूरू, झुंझुनूं जैसे जाट बहुल जिलों में अच्छा प्रदर्शन किया था। लोकसभा चुनावों में वे लगातार कह रहे थे कि कांग्रेस 12-13 सीटों पर बेहद मजबूत है और चुनाव जीत सकती है।
3 जून को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश द्वारा वीडियो कांफ्रेंसिंग पर लिए गए फीडबैक में भी डोटासरा ने पुरजोर तरीके से बाकायदा सीटों के नाम बताकर दावा किया था कि कांग्रेस 12-13 सीटों पर चुनाव जीतेगी। उनका यह दावा करीब-करीब सही साबित हुआ है। ऐसे में राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कांग्रेस में उनका कद बढ़ना तय है। वे विधानसभा के भीतर और बाहर भी भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री को कई बार घेर चुके हैं। कांग्रेस पार्टी अब उन्हें जाटों के बीच वोट पुलर के रूप में तो आगे बढ़ाएगी ही, साथ ही अगले विधानसभा चुनावों तक उनको भरपूर अहमियत और तव्वजो मिलना तय है।

सचिन पायलट : मिल सकती है बड़ी जिम्मेदारी
पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट राजस्थान के सबसे कम आयु के ऐसे नेता हैं, जो एक बार केन्द्र, एक बार राज्य सरकार में मंत्री रह चुके हैं। वे दो बार के सांसद और दो बार के विधायक भी हैं। प्रदेशाध्यक्ष भी रह चुके हैं। ऐसा पॉलिटिकल बायोडाटा वर्तमान में प्रदेश के किसी और नेता का नहीं है।
उनके प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए ही वर्ष 2018 में कांग्रेस सत्ता में आई थी। अब चूंकि उनकी आयु अभी 47 वर्ष है, तो पार्टी निश्चित रूप से उनमें भविष्य की संभावनाओं को देखती है। वरिष्ठ पत्रकार सन्नी सेबेस्टियन का कहना है कि इन चुनावों में कांग्रेस के लिए अशोक गहलोत, गोविंद सिंह डोटासरा और सचिन पायलट तीनों ने मिलजुलकर अच्छा काम किया है।
ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं कि कांग्रेस 2028 के विधानसभा चुनावों में फिर से सत्ता में आने के लिए पायलट को कोई बड़ी जिम्मेदारी सौंप सकती है। यह जिम्मेदारी साल डेढ़ साल बाद पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष या नेता प्रतिपक्ष के रूप में भी हो सकती है।

सीपी जोशी : खुद जीत की हैट्रिक बनाई, लेकिन पार्टी की हैट्रिक नहीं बनवा पाए
भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी तीसरी बार सांसद का चुनाव जीते, लेकिन तीन चुनावों में पहली बार उनके प्रदेशाध्यक्ष रहते भाजपा 25 में से 25 सीटें नहीं जीत पाई। ऐसे में उनके पद पर भी संकट आ सकता है। हालांकि दिसंबर-2023 में उनके प्रदेशाध्यक्ष रहते ही पार्टी को चुनावों में जीत मिली थी।
राजनीतिक टिप्पणीकार वेद माथुर का कहना है कि अब चूंकि सीएम और प्रदेशाध्यक्ष दोनों ही ब्राह्मण समाज से हैं। ऐसे में हो सकता है कि सीपी जोशी के बजाय किसी और नेता को प्रदेशाध्यक्ष की कमान सौंपी जाए। सीपी को केन्द्र में या राज्य में दूसरी जिम्मेदारी दी जा सकती है।