
जनमानस शेखावाटी संवाददाता : राजेश कुमार गुप्ता
मदर्स डे स्पेशल : मां शब्द का मूल अर्थ यह सामने आता है कि अपने बच्चों को अपने आंचल में छुपा कर उन्हें काबिल बनाकर भारत निर्माण में भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करना।
जनमानस शेखावाटी मदर्स डे पर ऐसी ही माता की कहानी आपके सामने ग्राउंड जीरो से लेकर आया है जिसमें एक मां जिसने देश सेवा में कार्य करने वाले अपने पति को प्राण न्योछावरकर वीरांगना होते हुए अपने दो बच्चों को काबिल बनाकर मां होने का फर्ज अदा किया और एक सक्सेस स्टोरी आमजन को जागरूक करने के लिए मिसाल के रूप में सामने आई।
आज हम बात कर रहे हैं बीलवा गांव के शहीद बनवारी लाल की वीरांगना सिंपल कंवर की जिन्होंने पति की शहादत के बाद न केवल घर की जिम्मेदारी उठाई बल्कि खुद पढ़ लिख कर एक लेक्चरर बनी और अपने दो बच्चों को भी अपने पैरों पर खड़ा कर सरकारी नौकरी दिलवाई है। नायक बनवारी लाल 25 राजपूत में 28 जून 1996 को भर्ती हुए जम्मू कश्मीर के गुलमर्ग में 8 फरवरी 2010 को पदोन्नति के लिए ट्रेनिंग के दौरान बर्फबारी होने की वजह से हादसा होने पर 17 जवानों के एक साथ शहीद हो जाने में देश सेवा में अपनी शहादत दी।
इस दौरान वीरांगना सिंपल कंवर पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। बेटी सुधा कुमारी उस समय मात्र 10 वर्ष की थी जो कक्षा पांचवी में अध्ययनरत थी जबकि बेटा निखिल दूसरी कक्षा में पढ़ाई कर रहा था वह मात्र 7 वर्ष का था। सिंपल कंवर ने स्वयं की पढ़ाई जारी रखी और 2014 में आरपीएससी का कंपटीशन तोड़कर लेक्चरर के पद पर नौकरी ज्वाइन की साथ ही बच्चों को भी मन लगाकर पढाया। आज बेटी सुधा एक डॉक्टर है और जो उदयपुर में पीजी की तैयारी कर रही है, तो वही बेटा निखिल इंडियन एयरफोर्स में नौकरी कर रहा है।
जब जनमानस शेखावाटी संवाददाता ने वीरांगना सिंपल कंवर से बात की तो सामने आया कि जब अचानक से 8 फरवरी 2010 को सूचना मिली कि उनके पति की शहादत हो गई है ऐसे में उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और इस समय बेटे को देश सेवा में भेजने का निश्चय किया स्वयं ने भी पढ़ाई कर नौकरी की तो वही दोनों बच्चों को भी पढ़ा लिखा कर एक काबिल बना दिया उन्होंने बताया कि कारगिल युद्ध के दौरान जम्मू कश्मीर में नौसेना में उनके पति की पोस्टिंग थी उस समय देश के कई जवान शहीद हो गए तब उन्होंने पति से बात की तो उन्होंने हौसला बढ़ाते हुए सिंपल कंवर को इतना ही कहा था कि हम तो देश के सेवक हैं देश सेवा में ही प्राण न्यौछावर कर देंगे लेकिन तुम दोनों बच्चों को पढ़ा लिखा कर एक काबिल अफसर बनाना उन्हीं के सपने को पूरा करने के लिए लगातार मेहनत करती रही और आज सफलता के मुकाम पर दोनों बच्चों को लाकर खड़ा कर दिया है। कहीं दूर आसमान में देखती है तो आज पति के सपने को पंख लगने पर आंखें तो नम होती है लेकिन कहीं ना कहीं फक्र भी महसूस होता है।